दिल्ली में ऐसे कई सरकारी अस्पताल हैं जहां ना सिर्फ केवल स्थानीय मरीज आते हैं बल्कि आसपास के इलाके से भी लोग इलाज के लिए आते हैं. लेकिन वहां डॉक्टरों की कमी आड़े आ रही है.
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दिल्ली में कई अस्पतालों में रिटायरमेंट के बाद भी लगभग 70 वर्ष की आयु सीमा तक डॉक्टर कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर प्रैक्टिस करते हैं हालांकि सरकारी अस्पतालों में ऐसी कोई व्यवस्था ना होने के चलते आज यहां 30 प्रतिशत डॉक्टरों की कमी है.
दिल्ली स्वास्थ्य विभाग के एक आधिकारी ने आईएएनएस से बातचीत के दौरान इस बात की पुष्टि करते हुए कहा कि 4,644 डॉक्टरों की भर्ती के स्थान पर आज भी 1,400 स्थान खाली हैं. ऐसे में इसका नकारात्मक प्रभाव स्वास्थ्य विभाग पर निश्चित तौर पर पड़ रहा है.
यूपीएससी से डॉक्टरों की भर्ती एक लंबी प्रक्रिया है. डॉक्टरों की कमी के बारे में अधिकारियों का कहना है कि ज्यादातर छात्र एमबीबीएस के बाद या तो आगे की पढ़ाई के बारे में सोचते हैं या अच्छी आमदनी के लिए प्राइवेट हॉस्पिटल जॉइन कर लेते हैं.
नए डॉक्टरों की भर्ती के बारे में एक अन्य स्वास्थ्य अधिकारी का कहना है कि यह व्यवस्था काफी जटिल है क्योंकि कुछ जनरल ड्यूटी मेडिकल अफसर होते हैं तो वहीं कुछ नॉन टीचिंग स्पेशलिस्ट होते हैं, कुछ ऐसे भी हैं जो टीचिंग स्पेशलिस्ट हैं. भर्ती की प्रक्रिया जारी है और जल्दी ही ऐसे लोगों को जगह दी जाएगी.
जब इन्हीं सरकारी अस्पतालों में कॉन्ट्रैक्ट के तौर पर डॉक्टरों की भर्ती के बारे में पूछा गया तो जवाब में केन्द्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि कॉन्ट्रैक्ट पर डॉक्टर्स की भर्ती को बीते साल केन्द्र संचालित अस्पतालों द्वारा स्वीकृत किया गया हालांकि राज्य द्वारा जिन अस्पतालों का संचालन किया जाता है उनके यहां डॉक्टर्स की भर्ती का तरीका कुछ हद तक भिन्न होता है.
पिछले साल दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आदेश जारी किया था कि जब तक कुछ सरकारी संस्थाओं के माध्यम से स्थायी भर्ती प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाता तब तक कॉन्ट्रैक्ट बेसिक पर रिक्त पदों पर डॉक्टरों की भर्ती की जाए. इस महीने यूपीएससी ने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के अन्तर्गत जरनल ड्यूटी मेडिकल अफसर के पदों की घोषणा की है.
दिल्ली में इन सरकारी अस्पतालों को चलाने में राज्य सरकार के अलावा कुछ अन्य संस्थाओं का भी योगदान है जिनमें स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, एनडीएमसी और दिल्ली केन्टोंमेंट या छावनी विभाग प्रमुख हैं. इनके अलावा इस कार्य में कुछ अन्य संस्थाओं का भी योगदान है. इन सभी के साथ-साथ निजी क्षेत्र भी अन्य कई एनजीओ के साथ मिलकर मरीजों को स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करा रही हैं.
सोमरीता एवं निवेदिता सिंह/आईएएनएस
यह ट्रेन कर चुकी है एक लाख से ज्यादा ऑपरेशन
यह ट्रेन कर चुकी है एक लाख से ज्यादा ऑपरेशन
सफर के लिए ट्रेन का इस्तेमाल तो आपने बहुत बार किया होगा. लेकिन क्या ट्रेन में अपना इलाज कराया है. देश में चलने वाली इस लाइफलाइन एक्सप्रेस में मरीजों का न सिर्फ प्राथमिक इलाज होता है बल्कि यह ट्रेन ऑपरेशन भी करती है.
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लाइफलाइन एक्सप्रेस
लाइफलाइन एक्सप्रेस भारतीय रेलवे में साल 1991 में शामिल हुई थीं. मकसद था दूर-दराज के इलाकों में मोतियाबिंद, पोलियो, जैसे रोगों के मरीजों की सर्जरी और इलाज में मदद करना. साल 2016 से इसकी सेवाओं में विस्तार में हुआ. अब इस ट्रेन में स्तन और गर्भाशय के कैंसरों की सर्जरी भी होने लगी है.
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दस लाख से अधिक मरीज
लाइफलाइन एक्सप्रेस पिछले तीन दशकों से दूर-दराज के इलाकों में मुफ्त चिकित्सा सेवाएं दे रही है. अब तक यह ट्रेन दस लाख से अधिक लोगों की मदद कर चुकी है. अपने इस सफर में यह ट्रेन एक जिले में करीब महीने भर तक रुकती है. कोशिश है सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को बेहतर करना.
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डॉक्टर और स्टाफ
इस ट्रेन अस्पताल में दो ऑपरेशन थियेटर और 20 लोगों का स्टाफ है. अधिकतर डॉक्टर यहां मुफ्त में काम करते हैं. इसमें काम करने वाली महक सिक्का कहती हैं कि उन्होंने हेल्थ सेंटर्स की खराब हालत को देखने के बाद इस ट्रेन अस्पताल को ज्वाइन किया.
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जागरुक बनाना है उद्देश्य
महक कहती हैं कि ग्रामीण इलाकों में महिलाओं के लिए स्वास्थ्य सेवाएं नहीं है. यहां तक कि महिलाओं कि किसी स्त्रीरोग विशेषज्ञ तक पहुंच ही नहीं है. उन्होंने कहा कि हमारी कोशिश न सिर्फ मरीज का इलाज करना है बल्कि स्थानीय डॉक्टरों और लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में जागरुक बनाना भी है.
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स्थानीय डॉक्टर की भूमिका
ट्रेन में ऑपरेशन थियेटर की साफ-सफाई का भी खासा ध्यान रखा जाता है. जब इस ट्रेन के ऑपरेशन थियेटर में कोई ऑपरेशन हो रहा होता है तो एक स्थानीय डॉक्टर को भी अपने साथ रख जाता है. ताकि मरीज को आगे के इलाज में समस्या न आए.
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लोगों को भरोसा
ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी स्वास्थ्य केंद्र ही सबसे अहम हैं. लेकिन देश की एक बड़ी आबादी स्वास्थ्य क्षेत्र में बुनियादी ढांचे और डॉक्टरों की कमी से जूझ रही है. ट्रेन के कर्मचारी बताते हैं कि पहले लोग ट्रेन में होने वाले ऑपरेशन को लेकर काफी चिंतित होते थे. लेकिन सब सुविधाओं को देखने के बाद अब उनका विश्वास बढ़ा है.
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ट्रेन में 1.30 लाख ऑपरेशन
ट्रेन अस्पताल के डिप्टी प्रोजेक्ट डायरेक्टर अनिल दारसे के मुताबिक लॉन्च के बाद से ट्रेन में करीब 1.30 लाख ऑपरेशन हो चुके हैं. और यह देश के करीब 191 जगहों को पार कर चुकी है.
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ये चलाते हैं
इस लाइफलाइन एक्सप्रेस को एक गैर सरकारी संस्था इम्पैक्ट इंडिया फाउंडेशन, सरकार के साथ मिलकर चला रही है. इस पहल को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) समेत संयुक्त राष्ट्र की बाल कल्याण संस्था यूनिसेफ का भी सहयोग मिल रहा है. अब दूसरी लाइफलाइन एक्सप्रेस चलाने की भी तैयारी की जा रही है.