दिल्ली पुलिस ने फेशियल तकनीक की मदद से पकड़ा अपराधी
४ अगस्त २०२०दुनिया के कई ऐसे देश हैं जो फेशियल रिकॉग्निशन या चेहरा पहचानने की डिजीटल तकनीक का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर करते हैं. अपराधियों की धर पकड़ हो या फिर किसी वांछित अपराधी की तलाश, पुलिस और सुरक्षा एजेंसियां इस तकनीक के सहारे उन तक पहुंचने में कामयाब हो रही है. दिल्ली में भी पुलिस ने इस तकनीक की मदद से आपराधिक मामला सुलझाया है.
भारत में सार्वजनिक स्थलों पर लगे कैमरों की मदद से फेशियल रिकॉग्निशन का इस्तेमाल बिछड़े बच्चों को परिवार से मिलाने, गुमशुदा बच्चों की तलाश, अपराध से जुड़े मामले, एयरपोर्ट और अन्य हाई सिक्युरिटी वाले स्थानों पर हो रहा है. फिलहाल देश में चेहरा पहचान वाली प्रणाली पूरी तरह से लागू नहीं हुई है. हाल ही में देश की राजधानी दिल्ली में पुलिस ने पहला मामला चेहरा पहचानने वाली तकनीक की मदद से सुलझा लिया है. दरअसल रविवार दो अगस्त को तीन अपराधी पुलिस टीम को चकमा देकर फरार हो गए थे.
तकनीक से अनजान थे अपराधी
पुलिसवालों ने एक बाइक पर सवार तीन लोगों को बिना मास्क और हेलमेट लगाए आते देखा तो उन्हें रुकने का इशारा किया. बाइक सवार लोगों ने यह जताने की कोशिश की कि वे मरीज हैं और अस्पताल से लौट रहे हैं. पुलिस ने जब उनका पहचान पत्र मांगा तो उनमें से एक ने पिस्तौल निकाल ली और पुलिस वाले पर तान कर उन्हें पीछे जाने को कहा. इसके बाद तीनों बाइक पर सवार होकर तेजी के साथ फरार हो गए. अपराधियों ने पीछा करती पुलिस पर फायरिंग की भी धमकी दी.
पुलिस ने अपराधियों को पकड़ने के लिए करीब 150 सीसीटीवी कैमरे खंगाले और क्राइम रिकॉर्ड अधिकारी को फेशियल रिकॉग्निशन तकनीक की मदद से अपराधियों की पहचान करने को कहा. चेहरा पहचानने वाली तकनीक की मदद से एक बाइक सवार की पहचान अमित के रूप में हुई. वह हाल ही में लूट के एक केस में गिरफ्तार हुआ था. पुलिस ने अमित के साथ उसके दो सहयोगियों को भी गिरफ्तार कर लिया.
फेशियल रिकॉग्निशन सॉफ्टवेयर
पिछले साल दिल्ली पुलिस ने स्मार्ट सिटी पहल के तहत फेशियल रिकॉग्निशन सॉफ्टवेयर हासिल किया था. यह सॉफ्टवेयर सीसीटीवी कैमरे से कंट्रोल रूम के माध्यम से फीड प्राप्त कर सकता है. इसी सॉफ्टवेयर की मदद से सीसीटीवी से मिली फीड का पुलिस रिकॉर्ड से मिलान कर पाना मुमकिन है. अगर चेहरा आपराधिक रिकॉर्ड वाले से मिल जाता है तो वह अलर्ट जारी करता है. इससे पहले दिल्ली पुलिस गुमशुदा बच्चों को माता-पिता से मिलाने के लिए इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर चुकी है.
दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के बाद पुलिस ने इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल परीक्षण के तौर पर किया था. इसी साल दिल्ली में हुए दंगों में शामिल आरोपियों की पहचान के लिए पुलिस ने इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया और 1,900 चेहरों की पहचान दंगा भड़काने या संदिग्धों के रूप में की. दिल्ली दंगों में 50 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी और 200 के करीब लोग जख्मी हुए थे.
21वीं सदी में चेहरा सिर्फ शरीर का दिखावटी हिस्सा नहीं है बल्कि इससे आप भुगतान कर सकते हैं, मोबाइल का लॉक खोल सकते हैं, एयरपोर्ट पर पैसेंजर की पहचान कर सकते हैं या फिर किसी अपराधी को पकड़ सकते हैं. यह मशहूर तकनीक इंसानी चेहरा का डाटा बेस इस्तेमाल करता है. डाटा कहां से इकट्ठा हो रहा है यह सबको मालूम नहीं होता. हो सकता है कि पास के सुपर मार्केट में लगा सीसीटीवी कैमरा भी डाटा बेस से जुड़ा हो.
निजता सुरक्षा पर बहस
फेशियल रिकॉग्निशन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने दुनिया भर में निजता को लेकर नई बहस छेड़ दी है. आलोचक कहते हैं कि तकनीक मौलिक अधिकार और डाटा निजता के नियमों का उल्लंघन कर सकता है. सुप्रीम कोर्ट की वकील और डाटा प्राइवेसी की विशेषज्ञ एनएस नप्पीनई कहती हैं, "यह जानना जरूरी है कि डाटा किस तरह से इकट्ठा किया जाएगा, कितने समय के लिए डाटा रखा जाएगा और भविष्य में किस तरह से इस्तेमाल किया जाएगा और सबसे अहम बात यह है कि इसको डिलीट कब किया जाएगा."
इसी साल मई के महीने में कोरोना वायरस लॉकडाउन के दौरान तेलंगाना पुलिस ने मास्क नियमों का पालन नहीं करने वालों की पहचान के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल किया. पुलिस ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित फेस मास्क की व्यवस्था लागू की और दो महीने के भीतर सर्विलांस कैमरे की मदद से ऐसे लोगों की पहचान की गई जो मास्क नहीं पहने हुए थे और नियमों का उल्लंघन कर रहे थे. नियमों की अनदेखी करने वालों को लेकर स्थानीय गश्ती दल को अलर्ट किया जाता है और पुलिस नियमों का उल्लंघन करने वालों को मास्क लगाने की हिदायत तो देती ही है साथ उनसे जुर्माना वसूलती है. यह तकनीक सबसे पहले हैदराबाद, साइबराबाद और रचकोंडा में लागू करने के बाद अब इसे पूरे राज्य में लागू कर दिया है.
फेशियल रिकॉग्निशन तकनीक को लेकर कुछ और चिंताएं भी हैं. इनमें से एक यह है कि सटीकता की कमी की वजह से गलत पहचान हो सकती है या फिर निर्दोष को सजा हो सकती है. इसके कई अनपेक्षित परिणाम भी हो सकते हैं. चूक के कारण सैन फ्रांसिस्को और कैलिफोर्निया में प्रशासन ने पुलिस और अन्य सरकारी एजेंसियों द्वारा इसके इस्तेमाल पर रोक लगा दी है. आलोचकों का कहना है कि फेशियल रिकॉग्निशन नागरिक अधिकारों और आजादी के लिए खतरा हो सकता है.
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