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समाज

दिल्ली में नफरत के बीच इंसानियत की मिसालें

आमिर अंसारी
२८ फ़रवरी २०२०

दिल्ली में दो समुदायों की हिंसा के बाद अब हालात सामान्य हो रहे हैं लेकिन जो हिंसा और आगजनी हुई है उसके निशान लोगों के जेहन में अब भी कौंध रहे हैं.

Indien Neu Delhi | Zerstörung nach den Unruhen durch Proteste wegen Staatsbürgerschaftsgesetz
तस्वीर: DW/S. Ghosh

दिल्ली के उत्तर-पूर्वी इलाके को ऐसा जख्म मिला है जिसे भरने में लंबा वक्त लगेगा. दो समुदायों की हिंसा में किसी का बाप मर गया तो किसी का बेटा, किसी की बूढ़ी मां मर गई तो किसी को इतना पीटा गया कि वह मौत के मुहाने तक पहुंच गया. यहां के कई लोगों का कहना है कि वह अब भी रातें दहशत में गुजार रहे हैं. इस सबके बीच कुछ लोग ऐसे भी हैं जो भाईचारे की मिसाल पेश करते हुए दूसरे समुदायों को अपने यहां ठिकाना तक दे रहे हैं.

उत्तर-पूर्वी दिल्ली के करावल नगर के चमन पार्क में स्थित शिव मंदिर के बाहर बैठे कुछ मुस्लिम समुदाय के लोग दिल्ली में नफरत के बुलडोजर चलाने वालों के इरादे पर पानी फेर रहे हैं. मुस्लिम समुदाय के लोग शिव मंदिर की सुरक्षा के लिए बारी-बारी से खुद से ड्यूटी कर रहे हैं. गुरुवार को जब डीडब्ल्यू की टीम वहां पहुंची तो उसे वहां कुछ लोग मिले. उनमें से एक ने बताया कि वह किस तरह से और कैसे मंदिर को दंगाइयों की बुरी नजर से बचा रहे हैं.

मंदिर की सुरक्षा करने वाले हाजी जहीर अहमद ने डीडब्ल्यू को बताया, "इस कॉलोनी वालों ने मंदिर को बचाना अपनी जिम्मेदारी समझा और इसलिए हम यहां कभी दो या कभी चार लोग आकर बैठते हैं ताकि शरारती तत्वों से इसे बचाया जा सके.” हाजी अहमद की तरह कई स्थानीय लोग बारी-बारी से यहां आकर मंदिर की सुरक्षा करते हैं. हाजी अहमद कहते हैं, "कॉलोनी वालों ने अंदर के घरों को भी बचाया है. नहीं तो बाहर के लोग आकर कॉलोनी में दूसरे समुदाय के लोगों के घरों को नुकसान पहुंचा देते.”

रविवार से दिल्ली में हिंदू और मुसलमानों के बीच शुरू हुई हिंसा में अब तक 42 लोगों की मौत हो चुकी है और 300 के करीब लोग घायल हुए हैं. उत्तर-पूर्वी दिल्ली घनी आबादी वाला इलाका है और यहां छोटी-छोटी गलियां हैं जिनमें एक के बाद एक कई मकान हैं. गलियों में अलग-अलग धर्मों के लोगों की दुकान और व्यावसायिक केंद्र है लेकिन रविवार की हिंसा में अधिकतर दुकानों और व्यावसायिक केंद्रों को दंगाइयों ने आग के हवाले कर दिया, लूटपाट की और जो दिमाग में आया वह किया.

तस्वीर: DW/S. Ghosh

चमन पार्क के एक और निवासी मेहर आलम कहते हैं, "हमारे घर के बगल में ही हिंदुओं का मकान है और हम पिछले तीन दिनों से इस तरह से पहरा दे रहे हैं. हम मानते हैं कि हिंदू भी हमारे भाई हैं और यह भी एक धार्मिक स्थल है.” मंदिर के बाहर बैठे मोहम्मद नौशाद बताते हैं मंदिर की सुरक्षा का जिम्मा सभी लोगों ने उठाया है. वह कहते हैं, "हम लोग हिंदू और मुसलमान सभी को साथ जोड़कर रखना चाहते हैं. हमारी विचारधारा सबको साथ लेकर चलने की है.”

दो समुदायों के दंगों में इंसानियत खोते हुए भीड़ उन्मादी बन गई और दुकान, मकान, गाड़ी और स्कूलों को आग के हवाले कर दिया. दंगों में किसी का सुहाग उजड़ गया तो किसी की गोद. दंगाइयों ने बस इतना देखा कि अगला शख्स किसी और धर्म का है और उसे मार-मारकर बेहाल कर दिया या फिर उसे मौत के घाट उतार दिया.

कुछ लोग धार्मिक पहचान से उठकर दूसरों की मदद के लिए आगे आ रहे हैं और उन्हें अपने घर आश्रय दे रहे हैं. इनमें कई हिंदू और सिख धर्म के लोग भी हैं जो मुस्लिम अल्पसंख्यकों की मदद को आगे आए हैं और उन्हें रहने का ठिकाना दिया. कई हिंदुओं ने अपनी जान पर खेलकर मुस्लिम परिवारों की जान बचाई और उन्हें दंगाइयों से सुरक्षित बचाया. इंसानियत की मिसाल पेश करते हुए हिंदुओं ने अपने पड़ोस में रहने वाले मुस्लिम परिवारों को पनाह दी और उनकी रक्षा के लिए दंगाइयों से जा भिड़े.

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