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दिल्ली में नहीं चमकेंगे ये सितारे

अनवर जे अशरफ (संपादन: एस गौड़)७ सितम्बर २०१०

एथेंस के ओलंपिक में राइफल के सटीक निशाने से रजत पदक लपकने वाले राज्यवर्धन राठौड़ हाल के बरसों में एक बड़ा सितारा बन कर उभरे हैं. लेकिन राठौड़ और फर्राटा धावक उसैन बोल्ट को दर्शक कॉमनवेल्थ में नहीं देख पाएंगे.

राज्यवर्धन राठौड़तस्वीर: AP

दुनिया उन्हें एक पक्के निशानेबाज के रूप में जानने लगी है. हालांकि बीजिंग ओलंपिक में राठौड़ कुछ खास नहीं कर पाए लेकिन फिर भी उनका बड़ा नाम बना रहा. पर ऐन मौके पर उन्होंने कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारी से खुद को अलग कर लिया.

पुणे में जब निशानेबाजी का ट्रायल चल रहा था, तो राठौड़ गायब हो गए. बिना किसी को बताए. भारतीय निशानेबाजी संघ ने पहले ही साफ कर दिया था कि जो खिलाड़ी ट्रायल में हिस्सा नहीं लेंगे, उनके नाम पर विचार ही नहीं किया जाएगा. राठौड़ शामिल नहीं हुए, उनका नाम काट दिया गया.

चीन ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाले अभिनव बिंद्रा और लंदन ओलंपिक में क्वालीफाई कर चुके गगन नारंग सहित दूसरे शूटरों की लिस्ट जारी हो गई. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राठौड़ का प्रदर्शन हाल के सालों में अच्छा नहीं रहा है और उन्हें ज्यादा प्रैक्टिस की जरूरत है. लेकिन कहा जाता है कि भारतीय राइफल एसोसिशन के साथ उनकी नहीं बन पा रही है, जिसकी वजह से उन्होंने गेम्स से दूर रहने का फैसला किया है.

उसैन बोल्टतस्वीर: AP

भारत सरकार ने न सिर्फ कॉमनवेल्थ गेम्स पर अरबों रुपये पानी की तरह बहाए हैं, बल्कि अच्छे प्रदर्शन के लिए भारतीय खिलाड़ियों की ट्रेनिंग पर भी काफी खर्च किया गया है. हो सकता है कि शूटिंग में बिंद्रा और नारंग की बंदूकें कुछ पदक पर निशाना साध लें, लेकिन 2006 में 16 स्वर्ण और सात रजत जीतने वाली भारतीय टीम के कुछ तमगे कट भी सकते हैं.

वैसे, दिल्ली को इस बात की भी निराशा है कि धरती का सबसे तेज इनसान भारत में नहीं दिखेगा. पलक झपकने से पहले 100 मीटर की दूरी पार कर लेने वाले जमाइका के उसैन बोल्ट ने कॉ़मनवेल्थ गेम्स को न कह दिया है. अपने ही वर्ल्ड रिकॉर्ड को बार बार तोड़ने की आदत रखने वाले बोल्ट को लेकर भारत में भी कम दीवानगी नहीं है.

बीजिंग ओलंपिक में उसैन ने 100 मीटर, 200 मीटर और 4X100 मीटर बाधा दौड़ में सोने का तमगा हासिल कर तहलका मचा दिया. भारत में कॉमनवेल्थ गेम्स की देख रेख कर रहे सुरेश कलमाड़ी को उम्मीद थी कि बोल्ट गेम्स में आ जाएंगे, लेकिन महीनों पहले ही उन्होंने साफ कर दिया कि कॉमनवेल्थ गेम्स से ज्यादा जरूरी उनके लिए 2012 का लंदन ओलंपिक है और वह उसी की तैयारी करेंगे. इससे पहले वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप होनी है और बोल्ट उसे भी कॉमनवेल्थ गेम्स से कहीं ज्यादा गंभीरता से ले रहे हैं.

स्टीफनी राइसतस्वीर: AP

घायल होने की वजह से बोल्ट ने 2006 के कॉमनवेल्थ गेम्स में भी हिस्सा नहीं लिया था. उनकी गैरमौजूदगी में जमाइका के असाफा पॉवेल ने मेलबर्न कॉमनवेल्थ गेम्स में 100 मीटर रेस जीती थी. कलमाड़ी कहते हैं कि बोल्ट नहीं आएंगे तो कोई फर्क नहीं पड़ता, दूसरे दौड़ाक भी कोई कमजोर नहीं. लेकिन खेल प्रेमियों को पता है कि अगर बोल्ट नाम का तूफान नहीं आया, तो दूसरा दौड़ाक शायद 10 सेकंड के अंदर 100 मीटर न भाग पाए.

24 साल के बोल्ट खुद मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर के दीवाने हैं और उनके साथ क्रिकेट खेलना चाहते हैं. लेकिन अपने करियर को देखते हुए उन्होंने गेम्स में हिस्सा न लेने का ही फैसला किया है.

कलमाड़ी और खेल प्रेमी अभी बोल्ट के झटके से उभरे भी ना थे की एक और बड़ा झटका लगा जब केन्या के कुछ ही दिन पहले बने 800 मीटर के विश्व रिकॉर्ड बनाने वाले डेविड रूदिषा ने भी दिल्ली आने से मना कर दिया. रूदिषा के अनुसार लगातार प्रतियोगिताएं में भागते आ रहे केन्या के स्टार अब कुछ आराम चाहते हैं. साथ ही ब्रिटेन के लम्बी दूरी के चैम्पियन धावक मोहम्मद फराह ने भी दिल्ली से नाम वापस ले लिया है.

जलपरी के नाम से मशहूर ऑस्ट्रेलिया की स्टार तैयार स्टेफनी राइस भी दिल्ली नहीं आ रही हैं. वह घायल हैं और उन्हें ऑपरेशन कराना पड़ रहा है. बीजिंग ओलंपिक्स में तीन सोने के तमगे हासिल करने वाली राइस को लेकर कॉमनवेल्थ आयोजन समिति बेहद उत्साहित थी, लेकिन ऐन मौके पर उन्होंने नहीं आने का फैसला किया है. 400 मीटर की तैराकी में वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने वाली राइस अपने देश में हुए पिछले कॉमनवेल्थ गेम्स में 200 मीटर का सोने का तमगा जीत चुकी हैं.

कॉमनवेल्थ गेम्स से बड़े खिलाड़ियों का दूर रहना कोई नई बात नहीं है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन खेलों की कोई खास साख नहीं है और बड़े स्टार यहां वक्त बर्बाद करने की जगह एक साल बाद होने वाले वर्ल्ड चैंपियनशिप या दो साल बाद होने वाले ओलंपिक्स की तैयारी करना पसंद करते हैं. कॉमनवेल्थ गेम्स की तारीखें अंतरराष्ट्रीय प्रैक्टिस की तारीखों से कई बार भिड़ जाती हैं.

शैली एन फ्रेजरतस्वीर: AP

कॉमनवेल्थ खेल पैसों के लिहाज से भी कोई बहुत फायदेमंद नहीं. ओलंपिक की बात अलग है. ओलंपिक चैंपियन को दुनिया पूजती है. लेकिन करोड़ों में खेलने वाले अंतरराष्ट्रीय स्टार सिर्फ एक स्वर्ण पदक, सर्टिफिकेट और 10 लाख रुपये के लिए कॉमनवेल्थ गेम्स में आना कम ही पसंद करते हैं. कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक जीतने वाले को 10 लाख रुपये, रजत पदक वालों को पांच लाख और कांस्य पदक के लिए तीन लाख रुपये दिए जाएंगे.

जमाइका की फर्राटा महिला दौड़ाक शैली एन फ्रेजर डोप टेस्ट में पकड़ी जाने के बाद कॉमनवेल्थ गेम्स में नहीं आ पा रही हैं. 24 साल की फ्रेजर के नाम 100 मीटर का वर्ल्ड रिकॉर्ड है. उनके अलावा चार बार के ओलंपिक चैंपियन स्कॉटलैंड के साइकलिस्ट क्रिस होए, दौड़ाक ड्वेन चैंबर्स, इंग्लैंड की जेसिका एनिस, जमाइका के वेरोनिका कैम्पबेल ब्राउन, ट्रैक साइकिल चैंपियन विक्टोरिया पेंडेलटन और यूरोप की चैंपियन जिमनास्ट डेनियल कीटिंग भी कॉमनवेल्थ खेलों के लिए दिल्ली नहीं आ रहे हैं.

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