भारत की राजधानी में सांस लेने से पहले एक बार फिर से सोचना चाहिए. प्रदूषण के मामले में यह चीनी राजधानी को टक्कर दे रहा है और एक बार फिर से विश्व प्रदूषण नगरी बनता दिख रहा है.
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अगर दिल्ली की सड़कों पर जाम लग जाए, तब तो सोने पर सुहागा. वायु प्रदूषण इतना ज्यादा हो सकता है कि धीमी ट्रैफिक में खांसते खांसते बुरा हाल हो जाए. वायु में धूल इतनी ज्यादा है कि सूर्य की किरणें धरती पर पहुंचने से पहले धूलकणों से टकरा कर लौट जाती हैं. वायु प्रदूषण पर नजर रखने वाले सेंसरों ने पिछले कुछ दिनों में कई बार प्रदूषण स्तर चिंताजनक बताया है.
हालांकि यह बात पक्के तौर पर नहीं कही जा सकती कि किस शहर में सबसे ज्यादा प्रदूषण है लेकिन इतना तो कहा जा सकता है कि चीन की राजधानी बीजिंग प्रदूषण स्तर को सुधारने का काम कर रहा है, जबकि दिल्ली ने हाल के दिनों में ऐसा कुछ नहीं किया. शायद इसकी एक वजह यह भी है कि लोगों में इस बात को लेकर चिंता और जागरूकता बहुत कम है.
कई तरह की बीमारी
आंकड़ों का तो पता नहीं, लेकिन डॉक्टरों की राय है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण की वजह से लगातार लोग बीमार पड़ रहे हैं. इसकी वजह से फेफड़े खराब हो रहे हैं, जबकि तनाव, अवसाद और दूसरी बीमारियों का तो कहना ही क्या. भारत में पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन के प्रमुख श्रीनाथ रेड्डी कहते हैं, "अजीब बात है कि दिल्ली में रहने वाले नेता और जजों को अपने परिवारों और बच्चों की चिंता नहीं है, जो इतने खराब वायु प्रदूषण के हालात में रह रहे हैं."
दो महीने पहले स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक नई समिति बनाई है, जिसमें रेड्डी भी शामिल हैं. इसका काम लोगों को खराब वायु स्तर से बचाव के रास्ते बताना है. रिपोर्ट आने में एक साल लग जाएगा.
दिल्ली और बीजिंग एशिया के दो महानगर हैं, जो अपने अपने देशों के विकास के इंजन रहे हैं. उन्होंने करोड़ों लोगों को रोजगार दिया है लेकिन बेतहाशा प्रदूषण भी फैलाया है. दशकों तक सरकारों ने प्रदूषण की बजाय विकास को ध्यान में रख कर नीतियां बनाईं, जिसका यह नतीजा हो रहा है. कारों की संख्या लगातार बढ़ रही है और धुएं छोड़ने वाले कारखानों की भी.
कितना है प्रदूषण
प्रदूषण मापने के कई तरीके हो सकते हैं, जिनमें फेफड़ों में कार्बन जमा होने का तरीका सबसे बेहतर समझा जाता है. दिल्ली में यह तयसीमा के चारगुना चला जाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2011 में हवा में मौजूद कणों की सीमा 20 रखी थी. इन कणों की चौड़ाई 10 माइक्रोमीटर है और इसलिए इन्हें पार्टिकुलेट मैटर या पीएम 10 कहा जाता है. दिल्ली में पीएम 10 का स्तर 280 है हालांकि कानूनी तौर पर यह 100 होना चाहिए.
जागरूकता के पैमाने पर चीनी शहर निश्चित तौर पर आगे है. वह लोगों को प्रदूषण, धुंध और कोहरे के अनुमान वाले दिनों में पहले सचेत कर देता है. ऐसे दिनों में स्कूल बंद हो सकते हैं या उद्योगों पर रोक लग सकती है. सरकारी वाहनों को सड़कों पर से हटा दिया जाता है. नई दिल्ली में इस तरह के इंतजाम नहीं हैं. हाल ही में धुंध के बारे में जानकारी देने का सिलसिला शुरू हुआ है लेकिन लगातार बिजली की कमी की वजह से सही वक्त पर आंकड़ा आना भी संभव नहीं है.
दुनिया की सबसे प्रदूषित जगहें
प्रदूषित मिट्टी, रासायनिक कचरा, इलेक्ट्रॉनिक कबाड़-ग्रीन क्रॉस फाउंडेशन के प्रदूषित पर्यावरण पर रिपोर्ट कहती है कि 20 करोड़ लोग सीधे तौर पर पर्यावरण प्रदूषण से सामना कर रहे हैं. देखिए दुनिया के 10 सबसे प्रदूषित जगहें.
तस्वीर: Blacksmith Institute
प्रदूषण में जीवन
करीब 20 करोड़ लोग सीधे तौर पर प्रदूषित पर्यावरण में जीने को मजबूर हैं. भारी धातुओं से दूषित मिट्टी, हवा में घुलने वाले रासायनिक कचरे या फिर नदी के पानी में इलेक्ट्रॉनिक कबाड़ का बहाना. खतरे की घंटी बजाने वाले ये कुछ खतरनाक उदाहरण हैं जिन्हें ग्रीन क्रॉस फाउंडेशन की रिपोर्ट में बताया गया है.
तस्वीर: picture alliance/JOKER
घाना
पश्चिम अफ्रीका के दूसरे सबसे बड़े इलेक्ट्रॉनिक कबाड़खाने में इस्तेमाल किए गए डिश एंटिना और टूटे टेलीविजन सेटों का अंबार लगा है. यह दुनिया की सबसे प्रदूषित जगहों में से एक है. कीमती तांबे को निकालने के लिए तारों को जलाया जाता है जिससे जहरीला धुआं उठता है. खास कर सीसे से सेहत को भारी खतरा रहता है.
तस्वीर: Blacksmith Institute
सीतारूम नदी, इंडोनेशिया
इंडोनेशिया की सीतारूम नदी में एल्यूमीनियम और लोहे की मात्रा पीने के पानी के मानदंड से 1,000 गुना ज्यादा है. इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं क्योंकि करीब 2,000 फैक्ट्रियां इस नदी के पानी का इस्तेमाल करती हैं और साथ ही कारखाने से निकलने वाला कचरा नदी के पानी में बहाया जाता है. इंडोनेशिया के लाखों लोग इस नदी पर निर्भर हैं.
तस्वीर: Adek Berry/AFP/Getty Images
जेयशिंस्क, रूस
रूस के रासायनिक उद्योगों में सबसे महत्वपूर्ण केंद्रों में से एक जेयशिंस्क है. 1930 और 1980 के बीच यहां 3,00,000 टन रासायनिक कचरे का निपटारा किया गया. रासायनिक कचरे की वजह से यहां भू-जल के साथ साथ हवा भी प्रदूषित है. जेयशिंस्क में महिलाओं की औसत उम्र 47 साल है जबकि पुरुष 42 साल की उम्र में बूढ़े हो जाते हैं.
तस्वीर: Blacksmith Institute
चेर्नोबिल, यूक्रेन
चेर्नोबिल के परमाणु हादसे को इतिहास की सबसे घातक परमाणु दुर्घटना माना जाता है. 25 अप्रैल 1986 को चेर्नोबिल परमाणु रिएक्टर में धमाका हुआ. आज भी चेर्नोबिल के 30 किलोमीटर के दायरे में कोई नहीं रहता है. परमाणु संयंत्र के पास की जमीन अब भी दूषित है. यहां अनाज पैदा करना जोखिम भरा काम है. चेर्नोबिल के नजदीक रहने वाले कई लोग कैंसर के शिकार हैं.
तस्वीर: Blacksmith Institute
हजारीबाग, बांग्लादेश
बांग्लादेश के हजारीबाग में सबसे ज्यादा चमड़े के कारखाने हैं. इनमें से ज्यादातर कारखाने पुराने तरीके से काम करते हैं और रोजाना करीब 22,000 लीटर जहरीला कचरा बड़ीगंगा नदी में बहाते हैं. ये ढाका के सबसे महत्वपूर्ण पानी के स्रोतों में से एक है. कैंसरकारी पदार्थ के कारण कई लोग त्वचा की बीमारियों से पीड़ित हैं.
तस्वीर: Blacksmith Institute
काबवे, जांबिया
जांबिया के दूसरे सबसे बड़े शहर काबवे में बच्चों के खून में भारी मात्रा में सीसा मिला है. यहां सदियों से सीसे की खानें हैं जिनसे भारी धातु धूल के कणों के रूप में निकलते हैं और जमीन में मिल जाते हैं.
तस्वीर: Blacksmith Institute
कालीमंतन, इंडोनेशिया
कालीमंतन इंडोनेशिया के बोर्नियो द्वीप का हिस्सा है. यह सोने की खदानों के लिए मशहूर है. सोने की खदानें को खोजने को लिए यहां पारे का इस्तेमाल किया जाता है. इस कारण हर साल 1,000 टन जहरीले पदार्थ पर्यावरण और भू-जल में मिल जाते हैं.
अर्जेंटीना की नदी मतांसा रियाचुएलो में करीब 15,000 कारखाने अपना कचरा बहाते हैं. विशेष रूप से रासायनिक उत्पादक नदी में एक तिहाई प्रदूषण के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं. नदी के पानी में भारी मात्रा में निकेल, जस्ता, सीसा, तांबा और अन्य भारी धातु मिले हुए हैं. इस इलाके में पेट की कई तरह की बीमारियां आम हैं.
तस्वीर: Yanina Budkin/World Bank
नाईजीरियाई डेल्टा, नाईजीरिया
यह नाईजीरिया के सबसे घनी आबादी वाले इलाकों में से एक है. नाईजीरिया की कुल आबादी का 8 फीसदी हिस्सा यहां रहता है. जहरीले तेल और हाइड्रोकार्बन की वजह से यहां की मिट्टी और भू-जल बेहद प्रदूषित हैं. तेल दुर्घटना या फिर चोरी के कारण औसतन हर साल यहां करीब 2,40,000 बैरल तेल पहुंचता है.
तस्वीर: Terry Whalebone
नोरिल्स्क, रूस
रूस के औद्योगिक शहर नोरिल्स्क में प्रदूषण के हालात ये हैं कि हर साल करीब 500 टन तांबा और निकेल ऑक्साइड के साथ 20 लाख टन सल्फर ऑक्साइड वातावरण में उत्सर्जित होते हैं. यहां कारखानों में काम करने वाले मजदूरों की औसत उम्र अन्य रूसियों से 10 वर्ष कम है और फेफड़े का कैंसर होने का खतरा बना रहता है.
तस्वीर: Blacksmith Institute
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दिल्ली में सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरमेंट सीएसई की अनुमिता रायचौधरी कहती हैं, "सरकार की जिम्मेदारी है कि वह लोगों को प्रदूषण के खतरों के बारे में आगाह करे. लोगों को पता होना चाहिए कि वे कैसी सांस ले रहे हैं. तभी तो वे इसे बेहतर करने की मांग कर सकते हैं." चीन की राजधानी ने इसके अलावा कारों की संख्या नियंत्रित करने पर भी जोर दिया है.
तुलना हो न हो
एक दशक पहले दिल्ली ने भी कुछ कदम उठाए थे, जिनमें उद्योगों को शहर से बाहर ले जाने और सबवे बनाने जैसे उपाय थे. लेकिन जैसे ही बात बीजिंग और दिल्ली के तुलना की होती है, भारतीय अधिकारी कन्नी काटने लगते हैं. वायु प्रदूषण समिति के प्रमुख एमपी जॉर्ज का कहना है, "वैज्ञानिक तौर पर दोनों की तुलना गलत होगी. दोनों शहरों के मौसम और पर्यावरण के मापदंड अलग हैं."
तर्क के आधार पर यह तय करने में शायद सैकड़ों साल लग जाएं कि कौन सा शहर ज्यादा प्रदूषित है लेकिन तथ्य के आधार पर इतना तो कहा ही जा सकता है कि इसका खामियाजा शहर में रहने वाले भुगत रहे हैं. हर साल दुनिया भर में 32 लाख लोग वायु प्रदूषण की वजह से जान गंवा रहे हैं.