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दिल्ली में सबके पास नहीं प्रदूषण से बचने का सामान

१४ नवम्बर २०१८

प्रदूषण से निपटने के लिए दिल्लीवासी रोज नए उपाय ढूंढ रहे हैं. कुछ इसमें कामयाब हो जाते हैं लेकिन कई ऐसे हैं, जिनके लिए रोजाना मेडिकल बिल का खर्च उठाना संभव नहीं है. इनके लिए प्रदूषण और बड़ा संकट बन कर आया है.

Indien Moderator verteilt Atemmasken gegen Smog
तस्वीर: Getty Images/AFP/P. Singh

हर दिल्लीवासी की तरह दीपा तांपी भी दिल्ली की प्रदूषित होती जा रही हवा से परेशान हैं. दिल्ली में बतौर गारमेंट एक्सपोर्टर काम करने वाली दीपा के दोनों बच्चों को सांस से जुड़ी बीमारियां हैं. प्रदूषण के डर से उन्होंने बच्चों को बाहर खेलने से मना कर दिया है और पिछले चार वर्षों में दो स्कूल बदल चुकी हैं. यह सब सिर्फ इसलिए ताकि वे इनडोर गेम्स खेल सकें. दिल्ली की जहरीली होती हवा के चलते वह सुनिश्चित करती हैं कि घर और कार में एयर प्यूरीफायर चलता रहे और बच्चे जब बाहर जाएं तो मास्क जरूर लगाएं. वह कहती हैं, ''हर साल सर्दियों के मौसम में हमें इनहेलर या नेब्यूलाइजर का इस्तेमाल करना पड़ता है.'' प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए दीपा जागरूक हैं. हालांकि सबसे अहम यह है कि उनकी आर्थिक हालत ऐसी है कि वे अपने बच्चों को बचाने के उपाय कर सकें. लेकिन सभी दिल्लीवासी इतने खुशनसीब नहीं. 

मेडिकल बिल कैसे चुकाए?

2 करोड़ की आबादी वाले दिल्ली में कई लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें हर दिन काम और खाने के लिए जूझना पड़ता है. 35 साल के रवि शंकर शुक्ला ड्राइवर हैं. उनका आठ साल का बेटा एक सरकारी स्कूल में पढ़ता है. बेटा पिता से शिकायत करता है कि उसे प्रदूषण की वजह से आंखों में तकलीफ हो रही है और नाक भी बंद है. उसने कभी मास्क नहीं पहना है. यही हाल केटरिंग फर्म में काम करने वाले राजेश कुमार का है. वह बताते हैं कि प्रदूषण की वजह से उनके दोनों बच्चों को अक्टूबर में खांसी की समस्या हो गई. राजेश का कहना है, ''इस मौसम में हमारा मेडिकल बिल का खर्च बढ़ जाता है. स्कूल ने बच्चों को मास्क पहनने को दिए हैं, लेकिन बच्चों को इसमें जकड़न महसूस होती है. साथ ही यह डर भी होता है कि लोग उनका मजाक उड़ाएंगे.''

स्कूलों में बढ़े मरीज

गाजियाबाद के सिल्वर लाइन प्रेसटिज स्कूल की प्रिंसिपल माला कपूर भी स्कूल के बच्चों की सेहत को लेकर चिंतित हैं. वह बताती हैं कि सर्दियों में स्कूल के तकरीबन 10 फीसदी बच्चों को सांस से जुड़ी तकलीफें शुरू हो जाती हैं. व्यस्त फ्लाईओवर, ऊंची इमारतों और फैक्टरियों के करीब स्थित यह स्कूल 1989 में बना और आज यहां करीब तीन हजार बच्चे पढ़ते हैं. ऐसी जगह स्कूल होने के बारे में कपूर का कहना है, "यह एक खराब प्लानिंग का नतीजा है. मैंने इस स्कूल को फैक्टरियों के बीच नहीं बनाया बल्कि स्कूल बनने के बाद ये सारा निर्माण हुआ."

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारतीय स्कूलों में 10 फीसदी से ज्यादा बच्चों को दमा की शिकायत है. दिवाली के दौरान पटाखे-फुलझड़ी जलाने के वजह से दिल्ली के प्रदूषण स्तर में बढ़ोतरी देखी गई. चेस्ट सर्जन अरविंद कुमार कहते हैं, ''हमारे अस्पताल में बाल रोग विशेषज्ञों के पास सांस की तकलीफ की शिकायत लेकर आने वाले बच्चों की संख्या बढ़ गई है.''

जागरूकता अभियान चल रहे

दिल्ली-एनसीआर में बढ़ रहे प्रदूषण को लेकर सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं जागरूकता अभियान चला रही हैं. 'ब्रीद ईजी स्टे टफ' नाम की संस्था दिल्ली के 30 से भी अधिक स्कूलों में बच्चों और टीचरों को वायु प्रदूषण के बारे में जागरूक कर रही है. उन्हें बताया जा रहा है कि कैसे इसका असर शरीर पर पड़ता है और बचाव के क्या उपाय है. पिछले महीने केंद्र सरकार ने दमे से जुड़ी एक गाइडबुक लॉन्च की है, जो 11 भाषाओं में है. इसमें दमे की बीमारी को लेकर हो रही मौतों, जागरूकता आदि के बारे में बताया गया है.  

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