दिल टुकड़े टुकड़े हो गया
३ नवम्बर २०१०छह महीने पहले जब से सुबह का हिन्दी प्रसारण इन्टरनेट पर हो रहा था उसी समय लग रहा था कि कुछ ही दिनों में शाम का प्रसारण भी इन्टरनेट पर ही होगा. और वह दिन आ ही गया. शुक्र है कि डॉयचे वेले हिन्दी को इन्टरनेट, मोबाइल पर जगह मिल गई. आज से हिन्दी रेडियो प्रसारण बन्द हो रहा है. यह मालूम होते हुए भी फिर से रेडियो पर सुई घुमाकर इसकी आज़माइश कर ली. शुक्र है मेरे पास इन्टरनेट है और कल से मैं इन्टरनेट पर डॉयचे वेले सुनूंगा. अगले महीने से मेरा रिशेप्शन रिपोर्ट भेजने का काम भी खत्म हो जाएगा. डॉयचे वेले की आगे की इन्टरनेट यात्रा के लिए मेरी ओर से शुभकामनाएं.
संदीप जावले
मारकोनी डी. एक्स क्लब, पर्ली वैजनाथ, महाराष्ट्र
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दुःख की बात है कि सबसे आसान तरीके रेडियो को दरकिनार कर इन्टरनेट को तरजीह दी जा रही है. यकीन मानें, डॉयचे वेले का मतलब रेडियो है. नेट पर आपका जादू चल पाए उम्मीद कम है, फिर भी इस कोशिश के लिए हौसला देता हूं. आप सब की बहुत याद आएगी. मेरा दिल अभी से भारी है. इतने बरसों से आदत में है डॉयचे वेले हिन्दी को सुनना.
सीमंत तिवारी
इंदौर
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आज निष्ठुर हो क्यों यारा
रेडियो पर हिन्दी सेवा का यूं हमसे रूठ जाना
मुश्किल क्या नामुमकिन है दिल से दर्द यह अब भूल पाना
मेरे जैसे कितने लोगों की इस ढलती उम्र का था जो सहारा
छीन ली लाठी वो तुमने बोलो कैसे अब करेंगे हम गुजारा
आंसू बरसाते नयन, यह छटपटाता दिल हमारा
सिसकियां लेता बदन, यह आहें भरता मन बेचारा
क्या तुम्हें कुछ भी नहीं महसूस हुआ दर्द हमारा?
क्यों दिया था प्यार इतना, आज निष्ठुर हो क्यों यारा?
एक दिन तुमने कहा था
दूर बहुत दूर तक साथ देना तुम हमारा
हम निभाते आ रहे थे उस वचन को
पर क्या हुआ वादा तुम्हारा?
बड़े बड़ों का साथ मिल गया
छोटों को अब पूछेगा कौन?
लेकिन याद रहे श्रीमान
छोटे बिना बड़ा है कौन?
प्रमोद महेश्वरी
फतेहपुर, शेखावटी, राजस्थान
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अन्तरा कार्यक्रम में 38 बरसों से महिलाओं की समस्या और महिलाओं को आत्म निर्भर बनाने के लिए संघर्ष कर रही संस्था सेवा के बारे में दी गई जानकारी बहुत ही सुन्दर लगी. महिलाओं की शक्ति का प्रतीक सेवा संगठन का इतिहास और भविष्य बहुत ही उज्ज्वल है.
महिलाओं के आत्म निर्भर बनाकर समाज के सम्मुख अनुकरणीय उदाहरण पेश कर रहा है सेवा संगठन. 38 वर्ष पूर्व की चिंगारी आज ज्वाला बन चुकी है और इसकी राह में जो भी अवरोधक आएगा, वह जल कर राख हो जाएगा.
अतुल कुमार
राजबाग लिस्नर्स क्लब
सीतामढ़ी, बिहार
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बिहार विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र मैं ऐसा बिहार चाहता हूं जहां भय का ऐसा वातावरण न हो जैसा आज चारों तरफ छाया है, जहां उत्पादन या व्यापार के कठिन कार्य में लगे ईमानदार लोग अधिकारियों, मंत्रियों और पार्टी आकाओं के हाथों बर्बाद होने के भय के बगैर अपना काम कर सकें. मैं ऐसा बिहार चाहता हूं जहां प्रतिभा और ऊर्जा के फलने-फूलने की पूरी गुंजाइश हो, इसके लिए विशेष मंजूरी हासिल करने की खातिर उन्हें अफ़सरों और मंत्रियों के आगे एड़ियां न रगड़नी पड़ें. मैं चाहता हूं कानून और नीतियों का लागू करने के लिए नियुक्त अधिकारी सत्तारूढ़ पार्टी के आकाओं के दबावों से मुक्त हों और उनमें वही निर्भीक ईमानदारी बहाल हो. मैं चाहता हूं कि हमें सरकारी व्यवस्था के नकारापन से मुक्ति मिले और निजी प्रबंधन की प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था मामलों को संभाल सके. सभी को असलियत में बराबर के अवसर मिलें. जहां किसानों को धमका कर या फुसला कर उनकी जमीनें देने के लिए मजबूर न किया जाए ताकि सहकारी खेती के ज़रिये हवा में किले बनाए जा सकें.
रवि शंकर तिवारी,
टीवी पत्रकारिता, जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी (नई दिल्ली)
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संकलन: कवलजीत कौर
संपादनः वी कुमार