लकड़ी खाने वाला कीड़ा दीमक, जिससे ज्यादातर घरों में लोग परेशान रहते हैं, अब रेगिस्तानों को फैलने से रोकने का एक उपयोगी औजार साबित हुआ है. सूख रहे इलाकों में इससे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को नियंत्रित किया जा सकता है.
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'साइंस' जर्नल में प्रकाशित एक शोध में बताया गया है कि सवाना जैसे घास के मैदानों और अफ्रीकी, लैटिन अमेरिकी, एशियाई देशों के अर्ध-शुष्क इलाकों में दीमक एक अहम भूमिका निभा सकता है. दीमक अपने रहने के लिए जो टीले बनाते हैं उनमें आर्द्रता और कई तरह के पोषक तत्व भी कैद होते हैं. इसके अलावा टीले के अंदर बहुत सारी सुरंगनुमा डिजाइनें होती हैं, जिनमें से होकर पानी धरती में अच्छी तरह घुस पाता है. इसी कारण से इन टीलों पर कई तरह के पेड़ पौधों के उगने के लिए उपयुक्त स्थिति होती है. रेगिस्तानी जगहों पर दीमक के ये टीले हरियाली को शरण देने वाले केंद्रों के रूप में पूरी शुष्क पारिस्थितिकी को फायदा पहुंचा सकते हैं.
स्टडी की प्रमुख लेखिका प्रिंसटन यूनिवर्सिटी की कोरिना टार्निटा बताती हैं, "बारिश सब जगह एक सी ही है, लेकिन चूंकि दीमक के कारण धरती तक पानी ठीक से पहुंच पाता है, उस स्थान पर या उसके आसपास पौधे ज्यादा उगते हैं." टार्निटा आगे कहती हैं, "बेहद कठोर परिस्थिति में जब टीले पर कोई हरियाली ना हो, तब भी वहां वनस्पतियों का दुबारा उगना ज्यादा आसान होता है. जब तक टीले हैं तब तक पारिस्थितिकी के दुबारा अच्छे हो जाने की ज्यादा संभावना होती है."
एम्सटर्डम यूनिवर्सिटी में जलीय सूक्ष्मविज्ञान और थ्योरेटिकल इकोलॉजी के प्रोफेसर जेफ हुइसमान का मानना है कि पहले रेगिस्तानों के विस्तार के संकेत काफी सरल माने जाते थे, उनके बारे में जल्दी पता लगाने के लिए प्रकृति की इन तमाम जटिलताओं पर ध्यान नहीं दिया गया था. हुइसमान इस स्टडी का हिस्सा नहीं थे.
फिलहाल रेगिस्तान बनने के पांच प्रमुख तरीकों के बारे में जानकारी है. इसके पांच चरण माने जाते हैं और हर चरण में वनस्पतियों की वृद्धि के लक्षणों पर ध्यान दिया जाता है. इसके अलावा, वैज्ञानिक सैटेलाइट से मिले चित्रों का अध्ययन कर भी किसी इलाके में हो रहे रेगिस्तान के फैलाव के बारे में जानकारी इकट्ठा करते हैं. रिसर्चरों ने पाया कि दीमक के टीलों वाले अर्ध-शुष्क पारिस्थितिकीय इलाके और रेगिस्तानीकरण के पांचवे और अंतिम चरण के लक्षण काफी मिलते जुलते हैं. इसका अर्थ हुआ कि जिसे कई बार रेगिस्तान बनने का अंतिम चरण मान लिया जाता है वहां दीमकों की वजह से दुबारा हरियाली आने की संभावना बची होती है.
हुइसमान कहते हैं कि क्लाइमेट मॉडल बनाने में दीमक और सीपी जैसे छोटे जीवों पर भी ध्यान देना चाहिए. जो अपने पर्यावरण को इंजीनियर करने की क्षमता रखते हैं. इनके अलावा चिंटियां, प्रेयरी कुत्ते और टीले बनाने वाले अन्य जीव भी अपनी जगह बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं.
आरआर/एसएफ (एएफपी)
बड़े काम के कीड़े
कीड़े मकोड़े कभी तो परेशान करते हैं, कभी नुकसान पहुंचाते हैं और कभी बीमार कर देते हैं. लेकिन अधिकतर कीड़े बहुत काम के होते हैं. उनके कारण हमें खाना मिलता है. धरती साफ रहती है और वे हमें खतरे से भी आगाह करते हैं.
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डरावनी लेकिन अच्छी
तरह तरह की मकड़ियां. वैसे तो कीड़ा नहीं हैं लेकिन फिर भी बहुत फायदेमंद हैं. वे कई नुकसानदायक कीड़ों को खा जाती हैं खासकर मच्छरों, मक्खियों और खटमलों को.
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उनके बिना कुछ नहीं
कीड़े पत्तियां खाते हैं और काटने वाली मक्खी मच्छर भी. वे फल फूलों, सब्जियों के परागण में मदद करते हैं और अक्सर कचरा भी साफ करते हैं.
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मेहनती मददगार
फायदा पहुंचाने वाले कीड़ों में सबसे पहला नाम मधुमक्खियों का आता है. वे शहद बनाती हैं और उनके कारण कई फूलों, फलों, सब्जियों में परागण संभव हो पाता है. दुनिया भर में ये कीड़े खतरे में हैं. चीन के कुछ इलाकों में तो ये खत्म हो चुकी हैं. कारण है पौधों पर छिड़की जाने वाली दवाइयां.
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पसंदीदा गुबरैला
रंग बिरंगा यह कीड़ा शायद हम इसलिए पसंद करते हैं कि ये पेड़ों को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़े खा जाता है. एक मादा गुबरैला एक दिन में करीब 50 कीड़े खा जाती है और जीवन भर में हजारों.
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खुश किसान
कीड़े और खराब पत्ते खाने के कारण यह फसलों को कीड़े लगने से भी बचाते हैं. ये उन किसानों के बहुत काम आते हैं जो बिना केमिकल के नुकसानदायक कीड़ों से फसलों को बचाना चाहते हैं. .
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परजीवी
स्कॉर्पियन बर्रे भले ही इंसान के लिए नुकसानदायक नहीं हों लेकिन कुछ कीड़ो को ये खत्म कर देते हैं. ये अक्सर पतंगों, गुबरैले के अंदर घुस कर अंडे देते हैं. इसमें से निकलने वाला लार्वा कीड़ों को अंदर से खा कर बाहर आ जाता है.
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हमलावर
ग्राउंड बीटल कहे जाने वाले ये कीड़े उनका शिकार करते हैं जिन्हें हम नहीं चाहते. जैसे लकड़ी में पनपने वाले कीड़े, घोंघा, इल्ली को खा जाते हैं. आलू में होने वाले जिद्दी कीड़ों की भी इनके आगे कुछ नहीं चलती. वे दुनिया भर में पाए जाते हैं और कहीं कहीं इन्हें संरक्षित भी किया गया है.
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काले कीड़े
ये भी एक तरह का बीटल है. पहली नजर में ये रेंगने वाले कीड़े जैसा दिखता है लेकिन इनके पंख छिपे हुए होते हैं. दुनया भर में इसकी 50 हजार प्रजातियां पाई जाती हैं. जानवरों को ये बार्क बीटल अच्छे लगते हैं.
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शांत दैत्य
इन भौंरों को देख कर डर लगता है लेकिन इनका जहर सामान्य ततैये से बहुत कम होता है. बड़े भौंरे पेड़ों का रस चूसते हैं लेकिन छोटे भौंरे सभी तरह के मांस पर जिंदा रहते हैं. एक दिन में ये आधा किलो तक कीड़े खा जाते हैं.
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जिंदा रहने दें
मकड़ियों से डरें नहीं. उन्हें जिंदा रहने, खुश हों कि वे घर में हैं.