1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

दुनिया की सबसे महंगी सब्जी

२१ नवम्बर २०११

सेहत का ध्यान रखने के लिए हम काफी खर्चा करते हैं और महंगी सब्जियां भी खरीदते हैं. लेकिन क्या आप 35 लाख रुपये में एक किलो पालक खरीदेंगे? जर्मनी में वैज्ञानिक इतनी महंगी संब्जियां बनाने में लगे हैं.

लाखों रुपये का पालक और पुदीना - यह बात सुनने में मजाक लगती है, लेकिन सेहत को ध्यान में रखते हुए वैज्ञानिक इन्हें बनाने में लगे हैं. सब्जियों में खास तरह के पोषक तत्व होते हैं जो बीमारियों से लड़ने में मददगार साबित होते हैं. ऐसा ही एक तत्व होता है फ्लैवोनोइड, जो हर पौधे में मिलता है. सभी फल सब्जियों और मसलों में फ्लैवोनोइड अलग अलग मात्रा में मौजूद होता है. यानी यह शरीर में बीमारियों से लड़ने का काम करते हैं. खास तौर से रक्तसंचार को काबू में रखने और दिल की बीमारियों और कैंसर से लड़ने में यह मददगार साबित होते हैं.

तस्वीर: Picture-Alliance/dpa

कैसे बनेंगी सब्जियां

फ्लैवोनोइड का असर शरीर पर कितनी तेजी से होता है इस बारे में अभी पूरी जानकारी नहीं है, लेकिन जर्मनी की बॉन यूनिवर्सिटी में इस तरह की सब्जियां तैयार की जा रही हैं जिनमें फ्लैवोनोइड की मात्रा साधारण से काफी ज्यादा हो. इसके लिए उन सब्जियों को चुना गया है जिन में फ्लैवोनोइड की मात्रा पहले से ही अन्य सब्जियों की तुलना में अधिक होती है. जैसे पालक, पुदीना या पार्सले. पौधों के विकास के लिए कार्बन डाइ ऑक्साइड काफी जरूरी होती है. टेस्ट के दौरान इन पौधों को अधिक मात्रा में कार्बन डाइ ऑक्साइड दिया जाता है.

लेकिन यह कार्बन डाइ ऑक्साइड वातावरण में मिलने वाले कार्बन डाइ ऑक्साइड से अलग होता है. इसमें साधारण 12सी की जगह एक अन्य आइसोटोप 13सी का इस्तेमाल किया जाता है और यह काफी महंगा भी होता है. चार हजार लीटर की एक बोतल की कीमत एक लाख यूरो यानी 70 लाख रुपये होती है. इसीलिए ये सब्जियां भी महंगी होंगी.

तस्वीर: picture alliance/WILDLIFE

क्या होगा असर

बॉन यूनिवर्सिटी के माइक ग्लाइशेनहागेन बताते हैं कि इस तरह के कार्बन डाई ऑक्साइड को इस्तेमाल करने से फ्लैवोनोइड की मात्रा कई गुना बढ़ जाती है और उनकी पहचान करना भी आसान हो जाता है. जिन लोगों पर टेस्ट किया जाना है, उनके शरीर में 13सी कार्बन डाई ऑक्साइड वाले फ्लैवोनोइड को ढूंढा जाएगा. बॉन यूनिवर्सिटी के बेनो त्सिमरमन कहते हैं, "फिर हम खून के सैम्पल ले कर यह पता लगा सकेंगे कि फ्लैवोनोइड शरीर में कहां जमा होते हैं" 2012 की शुरुआत में ये टेस्ट किए जाएंगे. उम्मीद की जा रही है कि साल के मध्य तक इनके नतीजे सामने होंगे. वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी यह शुरुआती दौर में है. फ्लैवोनोइड कैंसर या हृदय रोगों के खिलाफ कैसे काम करते हैं और शरीर पर उनका क्या असर होता है यह देखना अभी बाकी है.

रिपोर्ट: युडिथ हार्टल/ईशा भाटिया

संपादन: वी कुमार

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें