जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक बहस की अगुवाई करते हुए कैथोलिक चर्च के पोप फ्रांसिस ने पर्यावरण को इस युग का केंद्रीय नैतिक मुद्दा बताया है. पोप ने पूरे विश्व से अपनी जिम्मेदारी समझने और उसके लिए ठोस कदम उठाने की अपील की.
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पोप फ्रांसिस ने अपने भावनात्मक और गंभीर संबोधन में सभी इंसानों को "धरती और गरीबों दोनों की कराह" सुनने को कहा. कैथोलिक गिरजे के प्रमुख ने एक बार फिर पूरे विश्व में जारी मुनाफा कमाने की प्रतिस्पर्धा में बढ़ते उपभोक्तावाद की ओर ध्यान दिलाने की कोशिश की. उन्होंने पर्यावरण पर अपना पत्र जारी करते हुए उम्मीद जताई कि इससे आम लोगों को उनकी रोजमर्रा की जिंदगी में और पेरिस यूएन कॉंन्फ्रेंस में शामिल होने वाले महत्वपूर्ण लोगों के दिलोदिमाग में जलवायु परिवर्तन को लेकर सही निर्णय लेने में मदद मिलेगी. पोप ने लिखा है, "हमने पहले कभी अपने साझा घर के साथ इतना बुरा व्यवहार नहीं किया था, जितना हमने पिछले करीब 200 सालों में किया है." पोप ने साझा घर के बारे में आगे लिखा है, "धरती, हमारा घर अब कचरे के असीम ढेर जैसी दिखने लगी है."
जलवायु परिवर्तन को लेकर चिंतित सामाजिक कार्यकर्ताओं, वैज्ञानिकों, राष्ट्रीय नेताओं ने पोप के भाषण का स्वागत किया है. पोप ने कहा कि इन सबके लिए मुख्य तौर पर मनुष्य जिम्मेदार है और उन्होंने उम्मीद जतायी कि साल के अंत में होने वाले पेरिस सम्मेलन में पर्यावरण को बचाने की दिशा में कोई ठोस कदम उठाया जाएगा. जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल, अर्जेंटीना की राष्ट्रपति क्रिस्टीना फर्नांडेज दे किर्षनर के अलावा हजार साल में पहली बार ऑर्थोडॉक्स चर्च के प्रतिनिधि भी 2013 में पोप फ्रांसिस की ताजपोशी में उपस्थित थे. अपना पदभार ग्रहण करते समय भी पोप ने पर्यावरण संरक्षण, गरीबों की मदद और सुरक्षा की अपील की थी. कार्डिनल बैर्गोलियो ने सेंट फ्रांसिस ऑफ आसिसी का नाम गरीबी, दान और प्रकृति के प्रति प्रेम के सम्मान में अपनाया.
तमाम प्रशंसाओं के बीच ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जिन्होंने पोप के पत्र "एनसिक्लिकल" की आलोचना की. कुछ राजनीतिक संकीर्णवादी कैथोलिक पोप के आर्थिक विश्लेषण की बुराई तो अमेरिका के कुछ रिपब्लिकन नेता क्लाइमेट पॉलिसी से धर्म को जोड़ने को गलत बताते हैं. अमेरिकी हाउस कमेटी ऑन नैचुरल रिसोर्सेज के अध्यक्ष और ऊटा के रिपब्लिकन बॉब बिशप कहते हैं, "नहीं माफ कीजिए, यह एक राजनीतिक मामला है...कई लोग इस बारे में अपनी राय बना चुके हैं, इसलिए ऐसे भाषणों से कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला है."
पिछले 50 सालों से वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन के खतरों की बात करते आए हैं. तमाम आंकड़ों और रिसर्च आधारित संभावनाओं के सामने रखे जाने के बावजूद पूरे विश्व में इसे लेकर राजनीतिक स्तर पर एकजुटता नहीं बन पायी है. धार्मिक नेताओं के मार्गदर्शन से इस बाबत साझा लक्ष्य तय करने में मदद मिलने की उम्मीद है.
आरआर/एमजे (एपी)
जलवायु परिवर्तन से डूबते द्वीप
पर्यावरण में परिवर्तनों के कारण समुद्र के जलस्तर बढ़ रहा है जिससे कई तटीय इलाकों के डूबने का खतरा पैदा हो गया है. इस सहस्त्राब्दी के अंत तक समुद्र का स्तर 26 से 82 सेंटीमीटर के बीच बढ़ जाएगा.
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डूबता स्वर्ग
हिन्द महासागर में स्थित मालदीव अपनी खूबसूरती के लिए दुनिया भर में मशहूर है. पृथ्वी पर यह भौगोलिक रूप से सबसे निचला द्वीप है. समुद्रीय स्तर से मात्र डेढ़ मीटर ऊंचा यह द्वीप पानी के बढ़ते स्तर के कारण शायद बहुत जल्द रहने लायक भी नहीं बचेगा.
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समुद्र के नीचे
पानी का स्तर बढ़ने से द्वीपों पर रहने वाले कई परिवार ऊपरी ठिकानों की तरफ बढ़ने लगे हैं. प्रशांत महासागर में बसे कीरिबाटी द्वीप के कई गांव बाढ़ में पूरी तरह डूब जाते हैं. नमकीन पानी से किसानों की फसलें भी बरबाद हो रही हैं.
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पानी से बचाव
कीरिबाटी एक लाख तीस हजार लोगों का घर है. यहां से विस्थापित हुए लोग अक्सर दक्षिणी तरावा के द्वीप पर पनाह पाते हैं. यहां निचले इलाकों को पानी से बचाने के लिए बांध बनाए गए हैं लेकिन ये भी कोई स्थायी इंतजाम नहीं.
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लहरें तट तक ही रहें
समुद्र से शहरों की रक्षा के लिए डच खास कर जाने जाते हैं. उनके यहां बाढ़ से रक्षा के लिए पहला घेरा 1000 साल पहले बनाया गया था. इसी के कारण आज लोग वहां कई क्षेत्रों में निचले इलाकों में रह पा रहे हैं. हालांकि नीदरलैंड्स में और बेहतर बांध बनाने की योजना जारी है.
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डूबती विश्व धरोहर
इटली के वेनिस शहर में बाढ़ का आना कोई अनोखी बात नहीं है. खूबसूरती का बेमिसाल नमूना यह शहर धीरे धीरे डूबता जा रहा है. विश्व धरोहर को बचाने के लिए 9.6 अरब यूरो का निवेश किया जा चुका है. यह काम 2016 तक पूरा होने की उम्मीद है.
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करैबियाई संकट
कई छोटे द्वीपों के पास इतने पैसे नहीं हैं कि वे पर्यावरण परिवर्तन के महंगे कार्यक्रमों को अंजाम देने के लिए बड़े कदम उठा सकें. उन्हें न सिर्फ बाढ़ का खतरा रहता है बल्कि समुद्र से उठने वाले भयानक तूफान भी उनकी तरफ लपकते रहते हैं.
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बढ़ रहे हैं तूफान
पिछले साल फिलीपींस में हैयान तूफान से हुई तबाही बढ़ते खतरे की गवाह है. इस तूफान में 6200 लोग मारे गए और हजारों बेघर हुए.
तस्वीर: DW/T.Kruchem
बढ़ता पर्यावरण संकट
इस बारे में चर्चा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जारी है कि पश्चिम के बढ़ते औद्योगिकरण का खामियाजा कम विकसित और कमजोर देश उठा रहे हैं. वारसा सम्मेलन में फिलीपींस के पर्यावरण परिवर्तन आयुक्त येब सांयो ने अपील की कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में जल्द जरूरी कदम उठाए जाएं.
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बाढ़ में तैरती जिंदगी
अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण बांग्लादेश पर पर्यावरण परिवर्तन के प्रभावों का भारी खतरा है. समुद्र का स्तर एक मीटर चढ़ने का मतलब है आधे देश का पानी में डूब जाना. बढ़ती बाढ़ों के बीच किसानों ने पानी में तैरती खेती की तकनीक अपनाना शुरू कर दिया है.
तस्वीर: dapd
शरणार्थियों की नई प्रकार
इस बात का खतरा बढ़ रहा है कि जैसे जैसे समुद्र स्तर बढ़ेगा समुदायों का विस्थापन बढ़ेगा. हो सकता है कुछ दिनों में दुबई के जैसे कृत्रिम टापुओं को शरणार्थियों के लिए तैयार करना पड़े.