1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

दुनिया को बेवकूफ बनाते भारत के टी गार्डन

१ जून २०१८

भारत के कई चाय बागान मालिक ग्राहकों को झूठी जानकारियां देखकर अपना धंधा चमका रहे हैं. लेकिन अब उनकी गर्दन फंसती नजर आ रही है.

Indien Teeplantage Tee Pflücker Pflückerinnen Assam
तस्वीर: DIPTENDU DUTTA/AFP/Getty Images

चाय के बागान के बाहर बंधुआ मजदूरी मुक्त बागान का बोर्ड लगा है. सर्टिफिकेट में लिखा है कि ये बागान शोषण मुक्त हैं, यहां मजदूरों को अच्छा मेहनताना मिलता है. लेकिन हकीकत इसके बिल्कुल उलट है. ब्रिटेन की शेफील्ड यूनिवर्सिटी की रिसर्च और कुछ डॉक्यूमेंट्री फिल्मों में भारत के चाय बागानों में होने वाले शोषण पर रोशनी डाली गई है.

शेफील्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने केरल और असम के चाय बागानों में जाकर 600 कर्मचारियों का सर्वे किया. सर्वे में पता चला कि चाय बागानों में काम करने वाले ये सभी 600 मजदूर गरीबी रेखा के नीचे रह रहे हैं. सर्टिफिकेट दिखाकर सीना चौड़ा करने वाले बागानों में तो हालत सबसे बुरे हैं. वहां मजदूरों को पीटा जाता है, यौन हिंसा भी होती है और समय पर तनख्वाह भी नहीं दी जाती. 

भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चाय उत्पादक है. देश के चाय उद्योग में करीब 35 लाख लोग काम करते हैं. शोध से जुड़ी शेफील्ड यूनिवर्सिटी में पॉलिटिक्स की प्रोफेसर जेनेवीव लेबैरॉन कहती हैं, "मजदूरों का बुरी तरह शोषण साफ दिखा. जिस मजदूर से भी हमने बात की, वह प्रभावित था."

क्यों गायब हो रहे हैं चाय बागान मजदूरों के बच्चे

रिसर्च के दौरान सर्टिफाइड फार्म के एक मजदूर ने बताया कि उसे 137 रुपये की दिहाड़ी मिलती है. हर रोज उसे 24 किलोग्राम चायपत्ती तोड़नी होती है. अगर 24 किलो से कम चायपत्ती चुनी जाए तो 137 रुपये में से भी कुछ पैसा काट लिया जाता है. भारत में कृषि क्षेत्र में आधिकारिक न्यूनतम मजदूरी 250 रुपये है. प्रमाणित फार्मों के 54 फीसदी मजदूर कर्ज में दबे मिले. ज्यादातर ने बागान मालिक से कर्जा लिया हुआ है और उसी कर्ज को उतारने के लिए वे कई साल से मजदूरी करते आ रहे हैं.

दुनिया भर में मजदूरों के हालात बेहतर करने और व्यापार को पारदर्शी बनाने के लिए के लिए फेयरट्रेड जैसे सर्टिफिकेट इस्तेमाल किए जाते हैं. फेयर ट्रेड सर्टिफिकेट का मतलब है कि इस चीज को उगाने या ग्राहकों तक पहुंचाने में बाल या बंधुआ मजदूरी नहीं कराई गई. कामगारों को अच्छी मजदूरी दी गई. कामकाज का माहौल काफी अच्छा बनाया गया. ऐसा सर्टिफिकेट पाने वाली कंपनियों के प्रोडक्ट ज्यादा महंगे होते हैं. ग्राहकों को लगता है वे ज्यादा कीमत देकर मजदूरों की मदद कर रहे हैं. लेकिन अब यह सर्टिफिकेशन प्रक्रिया सवालों में है. लेबैरॉन कहती हैं, "हमारी रिसर्च सप्लाई चेन में मजदूरों के मुद्दों की हल करने वाले सर्टिफिकेशन के असर को लेकर बड़ा सवाल खड़ा कर रही है."मौत से लड़ते बागान मजदूर

रिर्सचरों ने केरल और असम के 22 चाय बागानों की समीक्षा की. इनमें से कुछ बागान ऐसे थे जिनके पास फेयरट्रेड, रेनफॉरेस्ट अलांयस, एथिकल टी पार्टनरशिप और ट्रस्टटी जैसे सर्टिफिकेट थे. कोई भी कंपनी अपने प्रोडक्ट पर फेयरट्रेड का ठप्पा तभी लगा सकती है जब वह साबित करे कि वह किसानों को उनकी फसल का सही दाम दे रही है. यह भी तय करना होता है कि मुनाफे का प्रीमियम समुदाय के विकास में खर्च किया जाएगा.

भारत के चाय बागानों का सच सामने आने के बाद फेयरट्रेड ने मामले की जांच करने का एलान किया है. कंपनी के प्रवक्ता ने ईमेल के जरिए जवाब देते हुए कहा, "केरल और असम के प्रमाणित चाय बागानों में कामकाज की अस्वीकार्य परिस्थितियों के आरोपों को फेयरट्रेड ने बेहद गंभीरता से लिया है." रेनफॉरेस्ट अलायंस ने भी गंभीर चिंता जताई है. फेयरट्रेड, रेनफॉरेस्ट अलांयस और एथिकल टी पार्टनरशिप ने यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने रिपोर्ट मांगी है.

पाकिस्तान के फुटबॉल उद्योग और बांग्लादेश के गारमेंट उद्योग भी मजदूरों की बुरी हालत की वजह से सख्ती का सामना कर रहे हैं. अब बारी भारत की चाय की है. 2017 में भारत ने 24 करोड़ किलोग्राम चाय निर्यात की. मुमकिन है कि 2018 में यह निर्यात गिरे. अंतरराष्ट्रीय बाजार में साख और ईमानदारी एक बड़ी भूमिका निभाती है. मजदूरों के शोषण की रिपोर्टों से भारतीय चाय की छवि को धक्का लग सकता है.

(21वीं सदी के "गुलाम")

ओएसजे/एके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

 

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें