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दुनिया में तेल की मांग का गिरना कब शुरू होगा?

२१ सितम्बर २०१८

दुनिया में तेल की खपत कुछ हफ्तों में 10 करोड़ बैरल प्रतिदिन पर पहुंचेगी और निकट भविष्य में इसके नीचे जाने के आसार नहीं हैं. विश्लेषक माथापच्ची में जुटे हैं कि तेल की मांग वहां कब पहुंचेगी जहां से इसका नीचे आना शुरू होगा.

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तस्वीर: picture-alliance/AA/S. Anisimov

कार्बन की वजह से जलवायु में परिवर्तन के सबूत हर दिन सामने आ रहे हैं और अरबों डॉलर की सब्सिडी पवन और सौर ऊर्जा जैसे वैकल्पिक स्रोतों के लिए दी जा रही है लेकिन आधुनिक दुनिया तेल पर इतनी ज्यादा निर्भर है कि इसकी मांग हर साल करीब डेढ़ फीसदी की दर से बढ़ रही है. इस बात पर कोई सहमति नहीं बन पा रही है कि तेल की मांग कब अपने शीर्ष स्तर पर पहुंचेगी, लेकिन यह साफ है कि यह ग्लोबल वार्मिंग पर सरकारों के रुख पर बहुत हद तक निर्भर करेगा. यह मानना है पश्चिमी देशों को ऊर्जा की नीति पर सलाह देने वाली अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी का.

तस्वीर: Getty Images/AFP/J. Lhuillery

तेल निर्यातक देशों के संगठन ओपेक के महासचिव मोहम्मद बारकिंदो ने इसी महीने दक्षिण अफ्रीका में एक कांफ्रेंस के दौरान कहा कि तेल की वैश्विक खपत इसी साल 10 करोड़ बैरल प्रतिदिन पर पहुंच जाएगी. तेल निकालने, रिफाइन करने और उन्हें दुनिया के अलग अलग हिस्से तक पहुंचाने के लिए परिष्कृत बुनियादी ढांचे के विकास के साथ यह ऊर्जा का इतना बड़ा स्रोत बन गया है कि परिवहन के कुछ साधनों के लिए तो एक तरह से अपरिहार्य है. हर दिन खर्च होने वाले 10 करोड़ बैरल में से करीब 60 फीसदी परिवहन पर खर्च होता है. इसका विकल्प बनने की कोशिश कर रहे इलेक्ट्रिक कार जैसे साधनों की हिस्सेदारी अभी बहुत कम है. बाकी बचे तेल की खपत पेट्रोकेमिकल उद्योग में प्लास्टिक बनाने के लिए हो रही है जिसके पास कच्चे माल के बहुत कम विकल्प हैं. 

तेल, गैस और कोयला जैसे हाइड्रोकार्बन के इस्तेमाल को सीमित करने के लिए सरकार पर दबाव बढ़ने के बीच कुछ विश्लेषक मान रहे हैं कि अगले दशक में तेल की मांग कम होगी. हालांकि अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी आईईए का कहना है कि अगर मौजूदा नीतियां जारी रहीं तो तेल की मांग कम से कम अगले 20 साल तक बढ़ती रहेगी और सदी के मध्य तक यह 12.5 करोड़ बैरल प्रति दिन तक पहुंच जाएगी. आईईए का कहना है कि सरकारें कार्बन वाले ईंधन को कम करने के लिए उन कदमों पर अमल करें जिनका पहले ही एलान किया जा चुका है तो स्थिति बदल सकती है. हालांकि इसके साथ ही उसने सरकारों को यह चेतावनी भी दी है कि मौजूदा योजनाएं कार्बन उत्सर्जन में कोई बड़ी कमी लाने के लिए कारगर नहीं होंगी और ऊर्जा के इस्तेमाल में व्यापक बदलाव के बाद ही तेल की मांग को कम किया जा सकता है.

जिन देशों को आईईए सलाह देता है दरअसल वो देश खपत बढ़ने के लिए फिलहाल ज्यादा जिम्मेदार नहीं हैं. तेल की मांग उन देशों में ज्यादा तेजी से और लगातार बढ़ रही है जो आर्थिक सहयोग और विकास संगठन यानी ओईसीडी के बाहर हैं. पिछले दो दशक में ओईसीडी के बाहर देशों में तेल की मांग लगभग दो गुनी हो गई है. इसके लिए खासतौर से एशिया, मध्य और दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका में उद्योगों के विकास को जिम्मेदार माना जा रहा है. चाइना नेशनल पेट्रोलियम कॉर्प की रिसर्च यूनिट ने भविष्यवाणी की है कि चीन में तेल की मांग 2030 तक 1.38 करोड़ बैरल प्रतिदिन तक पहुंच जाएगी.

कुछ विश्लेषकों की दलील है कि दुनिया में गाड़ियों की दक्षता और इलेक्ट्रिक कारों का इस्तेमाल बढ़ने के साथ ही आर्थिक विकास के धीमे होने की वजह से तेल की मांग बहुत तेजी से नीचे आ सकती है. सौर ऊर्जा में निवेश बहुत तेजी से बढ़ रहा है यहां तक कि सऊदी अरब जैसे देश भी इस उद्योग को समर्थन दे रहे हैं और दुनिया की सबसे बड़ी सौर परियोजना पर काम कर रहे हैं. इनवेस्टमेंट बैंक गोल्डमान सैक्स का कहना है कि कुछ परिस्थितियां अगर बन सकें तो तेल की मांग 2024 तक शीर्ष पर पहुंच सकती है. हालांकि कम विकसित देशों में उन्नत तकनीकों को अपनाने की धीमी रफ्तार इस बदलाव में और देरी भी ला सकती है.

तस्वीर: Getty Images/AFP/K. Jaafar

कंसल्टेंसी फर्म वुड मैकिंजी को उम्मीद है कि परिवहन के लिए तेल की मांग 2030 तक शीर्ष पर होगी जबकि तेल की कुल खपत के लिए मांग शीर्ष पर 2036 में पहुंचेगी. मैकिंजी के प्रमुख अर्थशास्त्री एड रावले का कहना है कि तेल की मांग में कमी आएगी चाहे जो भी हो. उन्होंने कहा, "शीर्ष मांग के संकेत भविष्य में सचमुच दिख रहे हैं. सवाल यह नहीं है कि होगा या नहीं बल्कि यह है कि कब?"

एनआर/एमजे (रॉयटर्स)

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