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समाज

दुबई की रेत में पाकिस्तानी पहलवानों की कुश्ती

१८ अप्रैल २०१८

हर शुक्रवार को दुबई के डेरा इलाके में रेत का टीला चैम्पियनों का अखाड़ा बन जाता है. यह एक और कुश्ती की रात है और काला पहलवान खम ठोकने के लिए तैयार हैं.

VAE Kushti-Ringen
तस्वीर: Getty Images/AFP/K. Sahib

खजूर के पेड़ों की झुरमुट से शाम के सूरज के छिपते ही अंगरखा और टीशर्ट पहने दर्जनों मर्द एक मजबूत घेरा बनाने में जुट जाते हैं. इनमें से ज्यादातर हिंदुस्तान या पाकिस्तान के हैं, अमूमन सूबा ए पंजाब से सीमा के दोनो तरफ के लोग. पंजाब में वैसे भी कुश्ती सबसे बढ़िया वक्त बिताने का जरिया है. संयुक्त अरब अमीरात में इन लोगों की एक बड़ी तादाद है और कामगारों में इन्हें यहां मजबूत स्तंभ माना जाता है.

तस्वीर: Getty Images/AFP/K. Sahib

दांव चलते चलते रेफरी बन चुके पुराने पहलवान अखाड़े में पानी छिड़क कर धूल को कम करते हैं. मूंगफली बेचने वाला एक शक्स अपनी रेहड़ी वहीं जमा लेता है इस बीच तमाशबीनों के तीन घेरे बन चुके हैं. लकड़ी के हथौड़े से घंटे पर तीन बार चोट होती है पहलवान अपने कपड़े उतार कर लाल, पीली, या फूलों के डिजाइन वाली लंगोट कर कर तैयार हो जाते हैं. 50 साल के मोहम्मद इकबाल आवाज लगाते हैं, "काला पहलवान, बेटा अखाड़े में आओ, सुहैल बेटा अखाड़े में आ जाओ.

दोनों प्रतिद्वंद्वी पसीने से बचने के लिए जिस्म पर रेत मल कर अखाड़े में उताते हैं. मुकाबला कई बार एक मिनट में ही खत्म हो जाता है और कई बार संघर्ष देर तक चलता है. प्रतिद्वंदी के पैरों के इर्द गिर्ध पैरों से घेरा बना कर पहलवान उसे काबू में करने की कोशिश में है तभी सामने के पहलवान ने कंधे उचका कर पलटी मारी और उसकी पकड़ से छूट गया. दूसरा पेट के बल नीचे गिरा और रेत उठा कर सामने वाले के मुंह पर फेंकी तब तक रेफरी ने दोनों को अलग कर दिया.

तस्वीर: Getty Images/AFP/K. Sahib

किनारे खड़े दर्शक जैसे फिल्मी फाइट का मजा ले रहे हों, कुछ शोर मचाते हैं तो कुछ ताली बजाते हैं. अगर कुश्ती 20 मिनट से ज्यादा चली तो रेफरी टाई का एलान कर देता है. आज की शाम काला पहलवान की हार हुई और उसे चुनौती मिली. प्रतिद्वंद्वी ने ताना मारा,"ऐसा पहलवान ढूंढ कर लाओ जो मुझे हरा सके."   

26 साल के काला पहलवान अपने साथियों से जल्दी जल्दी कुछ चर्चा करते हैं एक योजना तैयार हो गई. वे एक मुकाबिल लाएंगे, दुबई से नहीं बल्कि पाकिस्तान के पंजाब में मुजफ्फरगढ़ के अपने घर से. किसी ने हजार रुपये दिए तो किसी ने दो हजार और कुछ ही दिनों में हवाई जहाज का टिकट खरीदने लायक पैसे जमा हो गए. 

एएफपी के पत्रकार काला पहलवान से मिलने उनके काम की जगह गए. वो दुबई के तटवर्ती बाजार में काम करते हैं. यहां ओमान, श्रीलंका और दूसरी जगहों से आई हुई ताजी मछलियां बर्फ के स्टॉल में रखी गई हैं. यहां दुकानों के नाम अमीराती मालिकों का पता देते हैं लेकिन इस बाजार का चेहरा तो दक्षिण एशियाई लोग ही हैं. काला पहलवान ने कहा, "मछली बाजार से हमारा संपर्क पाकिस्तान से है."

छह साल पहले वो जब दुबई आए तो उन्हें कुश्ती के मैचों के बारे में पता चला. काला पहलवान ने कहा, "जब मैं बाजार में आता हू्ं तो हर कोई उत्साहित होता है. वे मुजे मेरे नाम से जानते हैं. अगर उन्हें कोई समस्या हो तो वे मेरे पास आते हैं क्योंकि मैं मशहूर हूं." इस शाम उनके साथ मोहम्मद शहजाद भी हैं. शहजाद मुजफ्फरगढ़ से चुनौती पूरा करने आए हैं.

काला पहलवान ने बताया कि मुजफ्फरगढ़ में कुश्ती तो जीने का जरिया है. उन्होंने बताया, "हमारे शहर में कुश्ती सीखने की परंपरा है. हर कोई कुश्ती के साथ पलता पढ़ता है. लोगों को सिगरेट या ड्रग्स जैसी बुरी आदतें नहीं हैं. हर कोई लड़ाई के लिए फिट रहना चाहता है."

तस्वीर: Getty Images/AFP/K. Sahib

काला पहलवान को असली नाम मोहम्मद अरसलान है. उनका कहना है कि संतुलित भोजन, कोच और प्रशिक्षण सफलता की चाबी है. महंगे शहरों में सबसे बड़ी मुसीबत है संतुलित भोजन. यहां मछली बाजार होने से कुछ फायदे हैं. काला पहलवान कहते हैं, "मछली मेरा पसंदीदा भोजना है. दुबई में यह सबसे सेहमंद खाना है क्योंकि यहां ज्यादातर चीजें फ्रोजन मिलती हैं लेकिन मछली बिल्कुल ताजी है. मैं हर रोज बाजार से मछली ले जाकर खाता हू्ं."

काला पहलवान और उनके कई दोस्तों के लिए दुबई जिंदगी का एक अस्थायी ठिकाना है. यहां से उन्हें कुछ पैसे बचाने हैं और अपने घर वापस लौटना है. ये लोग कड़ी मेहनत करते हैं और शिफ्टों में सोते हैं.   इकबाल दुबई आने से पहले दो दशक तक पहलवानी करते रहे, अब वो नए पहलवानों को प्रशिक्षण देते हैं. काला पहलवान ने बताया कि वो एक शाम की कुश्ती में करीब 10-11 हजार रुपये कमा लेते हैं. यह पैसा दर्शक देते हैं. हालांकि ये लोग कुश्ती पैसे के लिए नहीं खेलते. इनके लिए तो यह तनाव को दूर करने और जिंदगी को उत्साह से भरने का एक जरिया है.

एनआर/ओएसजे (एएफपी)

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