दुनिया में दुर्लभ माने जाने वाली प्रजाति के एक कछुए की चीन के चिड़ियाघर में मौत हो गई है. इस प्रजाति के सिर्फ चार कछुओं के जिंदा होने के बारे में ही जानकारी है अब इसमें भी एक कछुए की कमी हो गई.
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यांग्त्से जायंट सॉफ्टशेल प्रजाति की यह मादा कछुआ चीन के सुझोउ जू में एक नर कछुए के साथ रहती थी. इस प्रजाति के दूसरे दो खछुए वियतनाम में हैं हालांकि उनके लिंग के बारे में जानकारी नहीं है.
मादा कछुए की मौत शनिवार दोपहर में हुई. सुझोउ के नगर प्रशासन ने चिड़ियाघर से मिली जानकारी के आधार पर बताया कि मादा कछुए की मौत हो गई है. नगर प्रशासन ने बताया कि विशेषज्ञ तकनीक का इस्तेमाल कर कछुए के गर्भाशय के ऊतक जमा किए हैं ताकि भविष्य में उन पर रिसर्च की जा सके. चीन के सरकारी अखबार पीपुल्स डेली ने बताया कि मादा कछुए की उम्र 90 साल थी. कुछ ही समय पहले उसमें कृत्रिम तरीके से गर्भाधान कराने की कोशिश की गई थी लेकिन उसके बाद जल्दी ही उसकी मौत हो गई.
2015: खत्म होती प्रजातियां
यह साल अब तक का सबसे गर्म साल रहा. सिर्फ इंसानों की ही मुश्किल नहीं रही, पर्यावरण संरक्षण संस्था डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के अनुसार हाथियों और गैंडों की हालत खराब रही, लेकिन चीते की एक दुर्लभ किस्म से खत्म होने का खतरा टल गया.
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लुप्त होने का खतरा
पर्यावरण संरक्षकों का मानना है कि दुनिया में जीव-जंतुओं और पौधों की प्रजातियां लगातार कम होती जा रही है. डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के अनुसार नए साल के आगमन पर करीब 23,000 प्रजातियां लुप्त होने के खतरे में हैं.
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लंबी रेड लिस्ट
इससे पहले इतनी प्रजातियां खतरे में पड़ी प्रजातियों की लाल सूची में नहीं थीं. डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के एबरहार्ड ब्रांडेस के अनुसार, ”पशु-पक्षी और पौधे, यहां तक कि सारा इकोसिस्टम गायब हो रहा है, जबकि हर एक बेमिसाल है.”
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बेशर्म दोहन
और इस बदहाली की वजह पर्यावरण संगठन के अनुसार जानवरों का अंधाधुंध शिकार, जंगलों की बेशर्म कटाई, संसाधनों का लोभ और जलवायु परिवर्तन है. अफ्रीका में शिकारियों ने हाथियों और गैंडों की शामत कर दी.
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खाने की सजा
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के अनुसार मॉरीशस में मास्कारेन चमगादड़ों की जान पर आ बनी है. अधिकारियों ने देश में फलों की खेती को चमगादड़ों द्वारा पहुंचाए जा रहे भारी नुकसान के कारण उन्हें मारने के आदेश दिए हैं.
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चीलों की आफत
पर्यावरण संरक्षक अफ्रीकी चील की गिरती तादाद के पीछे अवैध शिकारियों का हाथ देख रहे हैं. 80 के दशक से उनकी संख्या आधी से ज्यादा कम हो गई है. उन्हें इसलिए मारा जा रहा है कि वे शिकारियों का पता बता देते हैं.
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पौधों की तस्करी
कुछ पौधे भी अवैध व्यापार के शिकार है. डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के अनुसार एशिया के कुछ आर्किड पौधे तस्करी का लोकप्रिय सामान हैं. वीनस स्लिपर आर्किड की सभी 80 प्रजातियों को रेड लिस्ट में डाल दिया गया है.
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महामारी के शिकार
एक खतरनाक महामारी में कजाकिस्तान में 2015 में सारे सैगा हिरण मारे गए. साल के शुरू में वहां 85,000 एंटीलोप का विलोप हो गया. विशेषज्ञों का मानना है कि इसमें जलवायु और मौसम बदलने की भी भूमिका थी.
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उम्मीद की किरण
इनके विपरीत अत्यंत कम संख्या वाले पशुओं ने उम्मीद की किरणें दिखाई हैं. स्पेनी बनबिलाव की संख्या फिर से बढ़कर 300 हो गई. रूस में व्लादीवोस्टॉक में संरक्षित क्षेत्र बनाने के बाद आमुर चीतों की संख्या 70 हो गई है.
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बढ़ते पांडा
पांडा भालू के मामले में स्थिति बेहतर हो रही है. डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के अनुसार संरक्षण के उपायों के बाद पिछले साल उनकी संख्या फिर से बढी है और अब बढ़कर 1860 से ज्यादा हो गई है.
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विजेता भेड़िया
भेड़िया इस साल का विजेता घोषित हुआ है. जर्मनी के जंगलों में वह फिर से बसेरा बनाने लगा है. इस बीच भेड़ियों के 30 से ज्यादा झुंड जर्मनी के जंगलों में घूम रहे हैं. कुछ इलाकों से पशुपालकों के साथ संघर्ष की खबरें भी हैं.
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मेडिकल जांच में पता लगा कि कछुआ गर्भाधान की प्रक्रिया के पहले अच्छी स्थिति में था. पीपुल्स डेली के मुताबिक कृत्रिम गर्भाधान भी बहुत आराम से हुआ. हालांकि कछुआ उसके अगले ही दिन मर गया.
यांग्त्से जायंट सॉफ्टशेल कछुए की उत्पत्ति चीन में ही हुई. उन्होंने यांग्त्से नदी और ताइहु लेक को अपना घर बनया. कछुओँ की इस प्रजाति को दुनिया से लुप्त होने की कगार पर मौजूद जीवों में एक माना जाता है. शुझोउ के स्थानीय अधिकारियों और विदेशी विशेषज्ञों का कहना है कि चीन के और विदेशी विशेषज्ञ कछुए की मौत का कारण पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं.