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दुश्मनों में अकेले अफगान

१७ मई २०१३

जर्मन सेना अफगानिस्तान से लौटने की पैकिंग कर रही है. तालिबान के आतंक और बेरोजगारी से स्थानीय अफगान कर्मचारी अकेला महसूस कर रहे हैं और अपनी सुरक्षा का भी उन्हें डर है.

तस्वीर: DW/Y.Sherzad

कुंदूज में जर्मन सेना यानी बुंडेसवेयर के लिए काम करने वाले अनुवादकों के दिमाग में परेशान करने वाला सवाल चल रहा है कि सैनिकों के जाने के बाद उनका क्या होगा. जर्मन सैन्य बलों के शिविर के सामने 30-40 आदमी इकट्ठा हुए कि उनकी अपील पर ध्यान दिया जाए. दो हफ्तों के भीतर यह उनका दूसरा विरोध है. उन्हें अपने भविष्य का डर है और जीवन का भी. बेरोजगारी और तालिबान घुसपैठिए इसका मुख्य कारण हैं. तालिबान इन अनुवादकों को देशद्रोही मानते हैं क्योंकि वह कई साल से जर्मन सैनिकों के लिए काम कर रहे हैं.

एक अफगान अनुवादक असादुल्लाह रिजवान कुंदूज में चार साल से स्थानीय पुनर्निर्माण टीम पीआरटी के साथ काम कर रहे हैं. उन्होंने डॉयचे वेले को बताया, "मुझे धमकी भरे फोन आते थे. घुसपैठियों का एक दल मेरे काम की वजह से मेरा अपहरण करना चाहता था."

रिजवान का अनुबंध अभी तक नहीं दिया गया है. बुंडेसवेयर ने इसे आगे नहीं बढ़ाया. पिछले साल से उनके जर्मन साथी एक एक कर लौट रहे हैं जबकि रिजवान वहीं हैं. वह अपना अधिकतर समय जिम में गुजारते हैं लेकिन वहां वो सुरक्षित महसूस नहीं करते. उनके परिवार को भी इसी डर के साथ रहना होगा कि किसी भी वक्त कुछ भी हो सकता है.

सरकार की मदद

कई जर्मन नेताओं ने हाल के दिनों में अनुवादकों और दूसरे मददगारों को ऐसे ही छो़ड़ देने का विरोध किया था. दूसरे मददगारों ने अपील की है कि उन्हें फिर से जर्मनी लाया जाए. गृह मंत्री हांस पेटर फ्रीडरिष ने इस अपील का समर्थन किया था. लेकिन इसमें कुछ सीमाएं भी थीं, "हमें अपना फैसला हर केस के हिसाब से करना होगा. लेकिन साफ है कि अगर अफगानिस्तान में कोई जर्मन सेना के साथ काम करने के कारण खतरे में है तो उसे जर्मनी आने की अनुमति, मानवीय आधार पर दी जानी चाहिए."

फ्रीडरिष ने साफ किया कि कुछ मामलों में अनुवादकों को किसी और काम में लगा दिया जाना चाहिए, "कुछ अफगान असिस्टेंट ऐसे थे जिन्हें सुरक्षित इलाके में काम दे दिया जाएगा. हम उनके विकल्प का समर्थन करते हैं. हम उन्हें अकेला नहीं छोड़ेंगे."

कुंदूज में विरोध प्रदर्शऩतस्वीर: DW/Y.Sherzad

लेकिन कुंदूज में अफगान अनुवादकों को लगता है कि उन्हें अकेला छोड़ दिया गया है. रिजवान कहते हैं, "हम अपने ही घर में कैद हैं क्योंकि हमारी सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं. जर्मनों को या तो किसी हल के साथ आगे आए या फिर सीधे कह दें कि वे हमारी मदद नहीं कर सकते."

हालांकि आइसैफ के स्थानीय कमांड नॉर्थ के लेफ्टिनेंट कर्नल मार्को श्मिड का मानना है कि स्थानीय अफगान उत्तेजित हैं लेकिन वे सच्चाई दिखा रहे हों, जरूरी नहीं, "हम रोजगार देने का अपना काम गंभीरता से लेते हैं और हर मामले की पूरी विस्तार से जांच करते हैं. लेकिन हम लोग तय नहीं करते. हम आवेदन पढ़ते हैं और उसे आगे बढ़ाते हैं. हम और ज्यादा कुछ नहीं कर सकते. कुछ अफगान का मानना है कि यह आसान है. वे सोचते हैं कि वे आज कहेंगे कि मेरी जान को खतरा है और कल वो जर्मनी उड़ जाएंगे. ये इतना आसान नहीं है."

अनुवादकों की जरूरत

अफगानिस्तान से जर्मन सैनिक 2014 तक हट जाएंगे. रिजवान ने डॉयचे वेले को बताया, "आखिरी बार जब अनुवादकों ने विरोध प्रदर्शन किया, तो उनसे वादा किया गया था कि एक सप्ताह में जवाब मिल जाएगा. आज एक सप्ताह बाद भी कुछ नहीं हुआ. हम बेचैन हो रहे हैं."

जर्मन अधिकारी अपना सहयोग नहीं देना चाहते हैं. अफगानिस्तान में जर्मन अभियान 2014 में खत्म हो रहा है. रक्षा मंत्रालय में सीडीयू पार्टी से संसदीय सचिव क्रिस्टियान श्मिट भविष्य का ध्यान रखने की अपील करते हैं.

सुरक्षा की चिंतातस्वीर: DW/Y.Sherzad

डॉयचे वेले को उन्होंने बताया, "अफगानिस्तान में सब कुछ बुरा नहीं है और सब अच्छा भी नहीं. मैं सिर्फ यह बताना चाहता हूं कि स्थानीय लोगों के सहयोग की जरूरत है. ताकि नीति बनाने में मदद हो और सैनिकों को भी."

कड़वा अनुभव

असादुल्लाह रिजवान इस दलील को नहीं समझ सकते. अफगान सरकार उनके और उनके परिवारों की सुरक्षा में समर्थ नहीं हैं. लेकिन कुल मिला कर रिजवान बुंडेसवेयर से हताश हैं, "हमने जर्मन सेना के साथ इसलिए अनुबंध किया था कि बदले में वे हमारा ध्यान रखेंगे. अगर मुझे पता होता कि वो हमें अकेला छोड़ देंगे तो मैंने पहले ही उनके साथ काम करना नहीं शुरू किया होता." जर्मन सेना अभी भी अफगानिस्तान में तैनात है. फैजाबाद जर्मनी का पहला कैंप है जिसे पिछले साल अफगान सेना के हवाले किया गया है. सूची में अगला कुंदूज है और इस साल में सुरक्षा जिम्मेदारी उन्हें दे दी जाएगी. गृह मंत्री फ्रीडरिष ने कहा है कि सभी अपील ट्रांसफर से पहले तय की जाएंगी. मंत्री ने बताया कि 30 शरणार्थी आवेदन देखे जा रहे हैं.

रिपोर्टः वसलत हसरत नाजिमी/एएम

संपादनः ए जमाल

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