सीरिया को ले कर अमेरिका ने अपना रुख बदला है. अब ईरान को भी बातचीत के लिए आमंत्रित किया जा रहा है. यह कदम बहुत पहले ही ले लिया जाना चाहिए था, कहना है डॉयचे वेले के मथियास फॉन हाइन का.
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चार साल तक मौत और तबाही का सिलसिला चलने के बाद आखिरकार गतिरोध खत्म होता नजर आ रहा है. वॉशिंगटन ने अपना रुख बदला है और सीरिया संकट को ले कर अपनी सबसे बड़ी मांग को छोड़ दिया है. अमेरिका के रक्षा मंत्री एश्टन कार्टर द्वारा की गयी यह घोषणा ही काफी अहम है कि अमेरिका इस्लामिक स्टेट से लड़ने के लिए इराक और जरूरत पड़ने पर सीरिया में भी अपनी सेना भेजेगा. लेकिन उससे भी बढ़ कर जरूरी बात यह है कि अमेरिका ईरान के साथ बातचीत के लिए राजी हो गया है.
इस हफ्ते सीरिया के भविष्य पर एक बार फिर चर्चा होगी. वियना में होने वाली इस बैठक में इस बार मेज पर ईरान के विदेश मंत्री भी मौजूद होंगे. अमेरिका, रूस, सऊदी अरब और तुर्की के प्रतिनिधि तो होंगे ही. अब तक अमेरिका और सऊदी अरब ईरान से बात करने के सख्त खिलाफ थे.
जनवरी 2014 में अमेरिका ने इस बात पर जोर दिया था कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून जिनेवा में सीरिया पर होनी वाली बैठक के लिए ईरान के आमंत्रण को रद्द करें. लेकिन अब पाषाण युग की सोच रखने वाले इस्लामिक स्टेट के बढ़ते असर और रूस के सैन्य हस्तक्षेप के बाद अमेरिका का हृदय परिवर्तन होने लगा है. जब किसी मुश्किल संकट का समाधान निकालना होता है, तब आप केवल अपने दोस्तों तक सीमित नहीं रह सकते, तब दुश्मनों से भी बात करनी पड़ती है.
सीरिया संकट की एबीसी
दुनिया भर में शरणार्थियों के मुद्दे ने उथल पुथल मचा रखी है. लेकिन अगर आप भी यह सोच कर हैरान हैं कि रातों रात ये लाखों शरणार्थी आए कहां से, तो पढ़िए..
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कैसे हुई शुरुआत?
रातों रात कुछ भी नहीं हुआ. सीरिया में पिछले पांच साल से गृहयुद्ध चल रहा है. मार्च 2011 में सरकार के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हुए. चार महीनों के अंदर शांतिपूर्ण प्रदर्शन हिंसक रूप ले चुके थे. यह वही समय था जब कई देशों में अरब क्रांति शुरू हुई.
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क्या हैं आंकड़े?
उस समय सीरिया की आबादी 2.3 करोड़ थी. इस बीच करीब 40 लाख लोग देश छोड़ चुके हैं, 80 लाख देश में ही विस्थापित हुए हैं और दो लाख से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. ये आधिकारिक आंकड़े हैं. असल संख्या इससे काफी ज्यादा हो सकती है.
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कहां है सीरिया?
पश्चिमी एशिया के देश सीरिया के एक तरफ इराक है, दूसरी तरफ तुर्की. इसके अलावा लेबनान, जॉर्डन और इस्राएल भी पड़ोसी हैं. सीरिया की तरह इराक में भी संकट है. दोनों ही देशों में कट्टरपंथी संगठन इस्लामिक स्टेट ने तबाही मचाई है.
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पड़ोसियों ने क्या किया?
इस वक्त तुर्की में सीरिया से आए 18 लाख शरणार्थी हैं, लेबनान में 12 लाख, जॉर्डन में करीब 7 लाख और इराक में ढाई लाख. लेबनान, जिसकी आबादी 45 लाख है, वहां चार में से हर एक व्यक्ति सीरिया का है. इराक पहुंचने वालों के लिए आगे कुआं पीछे खाई की स्थिति है.
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इस्राएल का क्या?
सीरिया के साथ इस्राएल की भी सरहद लगी है पर दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंध ना होने के कारण इस्राएल ने एक भी शरणार्थी नहीं लिया है और कहा है कि भविष्य में भी नहीं लेगा.
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यूरोप ही क्यों?
संयुक्त राष्ट्र के जेनेवा कन्वेंशन में 'शरणार्थी' को परिभाषित किया गया है. यूरोपीय संघ के सभी 28 देश इस संधि के तहत शरणार्थियों की मदद करने के लिए बाध्य हैं. यही कारण है कि लोग यूरोप में शरण की आस ले कर आ रहे हैं.
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क्या है रास्ता?
सीरिया से यूरोप का रास्ता छोटा नहीं है. अधिकतर लोग पहले तुर्की, वहां से बुल्गारिया, फिर सर्बिया, हंगरी और फिर ऑस्ट्रिया से होते हुए जर्मनी पहुंचते हैं. इसके आगे डेनमार्क और फिर स्वीडन भी जाते हैं. कई लोग समुद्र का रास्ता ले कर तुर्की से ग्रीस और फिर इटली के जरिए यूरोप की मुख्य भूमि में प्रवेश करते हैं.
अब आगे क्या?
यूरोपीय आयोग के प्रमुख जाँ क्लोद युंकर का कहना है कि यूरोप को हर हाल में 1,60,000 शरणार्थियों के लिए जगह बनानी होगी. उन्होंने एक सूची जारी की है जिसके अनुसार शरणार्थियों को यूरोप के सभी देशों में बांटा जा सकेगा. हालांकि बहुत से देश इसके खिलाफ हैं.
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हालांकि मॉस्को और तेहरान, दोनों ही इस बात पर अड़े हैं कि बशर अल असद ही सीरिया के राष्ट्रपति पद पर रहेंगे लेकिन इसके बावजूद सीरिया के इन दोनों मित्रों से बात किए बिना समस्या का समाधान मुमकिन नहीं है. आपको भले ही यह बात अच्छी ना लगे लेकिन सच्चाई तो यही है. तीन लाख लोगों की जान जाने के बाद यह समझौता कष्ट जरूर देगा लेकिन इससे बेहतर और कोई विकल्प हैं भी तो नहीं.
हम चाहते, तो तीन साल पहले ही यहां तक पहुंच सकते थे. फिनलैंड के पूर्व राष्ट्रपति मार्टी अहतिसारी ने कुछ वक्त पहले ब्रिटिश अखबार "द गार्डियन" को बताया कि 2012 में रूस ने असद के इस्तीफे का प्रस्ताव रखा था. लेकिन उस समय तक अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस को पूरा भरोसा था कि असद की हार निश्चित है, इसलिए उन्होंने रूस के प्रस्ताव को ठुकरा दिया. अब हम उम्मीद ही कर सकते हैं कि इस बार ऐसे मौके को नहीं गंवाया जाएगा.
और जहां तक सवाल सीरिया में अमेरिकी सेना की कार्रवाई का है, तो बिना रूस और ईरान के साथ बातचीत के कुछ नहीं होना चाहिए. इस खतरे को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि सीरिया में अमेरिका और रूस की सेना आपस में ही भीड़ जाएगी और एक नया संकट खड़ा कर देगी.
सीरिया प्रमुख असद पर विश्व नेताओं के बयान
करीब चार साल से जारी सीरिया के संकट को खत्म करने के लिए दुनिया भर के नेता अपील करते दिख रहे हैं. सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल-असद और अलगाववादियों के बीच मतभेदों को हल करने के लिए बन रहे हैं नए गठबंधन.
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रूस
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी सीरिया संकट समाप्त करने की जोर शोर से अपील कर रहे हैं. अमेरिका के साथ तनाव के बावजूद रूस आईएस के खिलाफ संघर्ष में उसके साथ दिखाई दे रहा है. रूस में ही अपनी स्थिति को मजबूत बनाए रखने के लिए पुतिन के लिए यह कदम उठाना जरूरी है.
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अमेरिका
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा सीरिया संकट के राजनीतिक समाधान ढूंढने के संदेश के साथ सोमवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित कर रहे हैं. रूस द्वारा सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद को मदद पहुंचाने पर अमेरिका ने गहरी चिंता जताई है. अमेरिका यूक्रेन मसले को भूलकर आगे बढ़ना नहीं चाहता.
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ईरान
राष्ट्रपति हसन रोहानी ने कहा है कि आज सभी को यह समझ आ चुका है कि सीरिया की सरकार को कमजोर करके आतंवादियों का मुकाबला नहीं किया जा सकता. रोहानी असद शासन के समर्थकों में से हैं.
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ब्रिटेन
ब्रिटेन सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल असद को पद से हटते देखना चाहता है. उसका मानना है कि बीते चार सालों से देश में मारे गए ढाई लाख से भी अधिक लोगों की मौत के लिए असद की सेना जिम्मेदार है.
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जर्मनी
चांसलर अंगेला मैर्केल ने सीरिया संकट के हल के लिए राष्ट्रपति असद के साथ मिलकर कदम उठाने की बात कही है. मैर्केल का मानना है कि सीरिया से जान बचा कर भाग रहे शरणार्थियों का संकट भी उनके देश में सुरक्षा बहाल करने के साथ ही सुलझेगा.
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फ्रांस
फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसोआ ओलांद भी संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित कर रहे हैं. एक दिन पहले ही फ्रांसिसी जेट विमानों ने सीरिया में इस्लामिक स्टेट जिहादियों के खिलाफ हवाई हमले शुरु किए हैं.