दुश्मन समझूं या तरस खाऊं
२३ अगस्त २०१३चालीस साल गए कि इस डकैत ने स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम के बैंक में कुछ इस तरह लोगों को बंधक बनाया. पांच दिन बीतते बीतते बैंक वालों के दिल में अपहर्ता के प्रति दया और सहानुभूति छाने लगी.
मामला अजीबोगरीब है. जो अपहरण कर रहे हैं, उन्हीं पर दया. स्टॉकहोम में 23 अगस्त से 28 अगस्त, 1973 की इस घटना ने मनोविज्ञानियों को परेशान कर दिया. इसे एक इंसानी जटिलता के तौर पर पारिभाषित किया गयाः स्टॉकहोम सिंड्रोम.
ओलसन अब 72 साल का है. उसने अपनी सजा काट ली है. वह आज भी इस बात को नहीं समझ पाता है कि लोगों ने उसके प्रति सहानुभूति क्यों दिखाई, "बंधक ज्यादातर मेरे साथ ही थे. उन्होंने कई बार पुलिस से मुझे बचाया भी कि वे मुझ पर गोली न चलाएं. यहां तक कि जब वे बाथरूम गए, तो पुलिस ने कहा कि वे वहीं रुक जाएं. लेकिन वे लौट कर मेरे पास आ गए."
नाटकीय बंधक संकट
पांच दिन का बंधक संकट टेलीविजन पर लाइव प्रसारित हुआ. पूरा राष्ट्र सांस रोके देखता रहा, किसी पॉपुलर टीवी शो की तरह. यह और नाटकीय मोड़ पर पहुंच गया, जब ओलसन ने पुलिस के सामने मांग रख दी कि एक खुर्राट अपराधी और बैंक लुटेरे क्लार्क ओलोफसन को जेल से निकाल कर बैंक लाया जाए. बदनाम ओलसन ने ड्रामे की शुरुआत भी खतरनाक ढंग से यह कहते हुए की, "अभी तो पार्टी शुरू हुई है." उसका कहना है, "आप उनकी आंखों में डर देख सकते थे. मैं उन्हें सिर्फ डराना चाहता था. मैं कुछ भी हिंसक नहीं करना चाहता था."
थोड़ी देर बाद यह डर किसी और दिशा में जाने लगा. जब एक बंधक का टेलीफोन इंटरव्यू प्रसारित किया गया, तो स्वीडिश जनता एक जटिल मनोवैज्ञानिक दोराहे पर पहुंच गई. क्रिस्टिन एनमार्क नाम की बंधक ने कहा, "मैं क्लार्क और दूसरे शख्स से रत्ती भर भयभीत नहीं हूं. मैं तो पुलिस से डर रही हूं. आपको यकीन हो न हो, हमें यहां मजा आ रहा है." बाद में ओलसन और ओलोफसन दोनों ने समर्पण कर दिया, पर कहानी खत्म नहीं हुई.
बंधक अपहर्ता रिश्ता
इस घटना के बाद बंधक और अपहर्ता के रिश्ते को बिलकुल नए अंदाज में देखा गया. अमेरिका के मनोविज्ञानी फ्रैंक ओशबर्ग ने "स्टॉकहोम सिंड्रोम" नाम का शब्द गढ़ दिया, जो अभी भी इस जटिल रिश्ते को दर्शाता है और साइंस को परेशान करता है. अमेरिकी जांच एजेंसी एफबीआई के मुताबिक करीब 27 फीसदी बंधकों को अपने अपहर्ताओं के प्रति सहानुभूति होती है.
हाल में अमेरिका में तीन महिलाओं को एक दशक तक कैद करके रखने का मामला सामने आया, जिसमें 53 वर्ष के एरियल कास्त्रो नाम के शख्स पर आरोप हैं. इस मामले में ओशबर्ग से भी अदालत में राय ली गई. उन्होंने स्टॉकहोम सिंड्रोम के तीन पहलू बताए.
सिंड्रोम के 3 पहलू
पहला, कि जब बंधक बनाए गए लोगों को "बंधक बनाने वालों के प्रति जुड़ाव महसूस होने लगता है." दूसरा इसका बिलकुल उलटा कि जब अपहर्ता ही बंधकों के प्रति जुड़ जाता है और उनका खास ख्याल रखने लगता है. उन्होंने कहा, "इसलिए बंधक संकट के समय हम कभी कभी स्टॉकहोम सिंड्रोम पैदा करने की कोशिश करते हैं." तीसरी स्थिति यह होती है कि दोनों ही पक्षों का एक दूसरे से लगाव हो जाता है.
दरअसल ये सब बहुत तेजी से होता है, बंधकों को बहुत कुछ जानने समझने का वक्त नहीं होता है. ओशबर्ग का कहना है कि बंधकों को इसी बात का डर रहता है कि वे मर सकते हैं, "शुरू से ही, उन्हें बोलने नहीं दिया जाता है, हिलने नहीं दिया जाता, टॉयलेट नहीं जाने दिया जाता, खाने भी नहीं दिया जाता. और फिर उन्हें एक मोड़ पर लगता है कि उनके सामने जीवन एक तोहफे के रूप में मिल रहा है. यहीं से वह भावना शुरू होती है. ऐसी भावना जब हम बच्चे होते हैं और अपनी मां के पास होते हैं."
थोड़ा शक
स्टॉकहोम सिंड्रोम को लेकर लोगों में भ्रांतियां भी हैं और कई जगहों पर इसका गलत इस्तेमाल होता है. ऑस्ट्रिया की किशोरी नताशा कांपुश आठ साल तक एक भूमिगत बंकर में बंधक बना कर रखी गई और 2006 में रिहा हो पाई. इन आठ सालों में उसका यौन शोषण भी हुआ और बलात्कार भी. उसे कई बार भूखा रखा गया. लेकिन जब उसके अपहर्ता की मौत हुई, तो वह रो पड़ी.
ओशबर्ग का कहना है, "जब एक बार कोई अपने अपहर्ताओं से मुक्त होता है, तो वह उससे भावनात्मक तौर पर जुड़ जाता है. इसे मैं स्टॉकहोम सिंड्रोम नहीं कहूंगा."
जहां तक स्टॉकहोम के बैंक डकैत ओलसन का सवाल है, उसे 1980 में रिहा कर दिया गया. उसके बाद उसने कई साल स्वीडन में कार सेल्समैन के तौर पर काम किया. बाद में वह थाइलैंड चला गया, जहां एक थाई महिला से उसने शादी कर ली. वह 15 साल वहां रहा.
ओलसन ने बताया कि जब वह जेल में था, तो उसके दो बंधक मिलने भी आए. लेकिन वह अपने किए पर आज भी अफसोस करता है, "मुझे नहीं लगता कि मैं उस घटना को अपनी जिंदगी से निकाल सकता हूं. वह मेरे जीवन का हिस्सा है और उसके बाद बहुत सी घटनाएं हुई हैं."
जब उससे स्टॉकहोम सिंड्रोम पर राय पूछी गई, तो उसका कहना था, "इसमें सिंड्रोम जैसी क्या बात है."
एजेए/एमजे (एएफपी)