दूरगामी होगा रोहिंग्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर
प्रभाकर मणि तिवारी
४ अक्टूबर २०१८
असम से वापस भेजे जाने वाले म्यांमार के सात रोहिंग्या शरणार्थियों के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का दूरगामी असर होगा. शीर्ष अदालत ने इन सबको वापस भेजने के केंद्र के फैसले में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है.
तस्वीर: DW/Ashish Malhotra
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सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर भारत के विभिन्न राज्यो में रहने वाले 40 हजार से ज्यादा रोहिंग्या शरणार्थियों के भविष्य पर पड़ने की संभावना है. सुप्रीम कोर्ट में रोहिंग्या शरणार्थियों से संबंधित दो याचिकाओं पर पहले से ही सुनवाई चल रही है. मोहम्मद सलीमुल्लाह औऱ मोहम्मद साकिर नामक दो रोहिंग्या शरणार्थियों ने देश में रहने वाले लगभग 40 हजार ऐसे शरणार्थियों को वापस भेजने के केंद्र के फैसले के खिलाफ उक्त याचिका दायर की थी.
ताजा मामला
यह सातों लोग बीते पांच साल से असम की सिलचर जेल में बंद थे. अब सजा पूरी होने के बाद उनको गुरुवार को मणिपुर की मोरे सीमा से होकर म्यांमार भेजा जाना है. भारत से रोहिंग्या शरणार्थियों को म्यांमार भेजने का यह पहला मामला है. इससे देश के विभिन्न हिस्सों में रह रहे 40 हजार से ज्यादा शरणार्थियों में आतंक पैदा हो गया है. संयुक्त राष्ट्र समेत विभिन्न मानवाधिकार संगठनों ने कहा है कि म्यांमार के रखाइन प्रांत में अभी हालात अनुकूल नहीं हैं. ऐसे में इन सबको फिलहाल वापस भेजना उचित नहीं होगा.
असम से जिन सात रोहिंग्या लोगों को गुरुवार को म्यांमार भेजा जा रहा है वह लगभग 10 साल पहले अवैध रूप से बांग्लादेश होकर भारत पहुंचे थे. असम में वर्ष 2012 में गिरफ्तारी के बाद उनको सिलचर सेंट्रल जेल में बने शिविर में रखा गया था. असम के एक सरकारी अधिकारी बताते हैं, "राज्य की विभिन्न जेलों में 32 ऐसे म्यांमारी नागरिक रह रहे हैं. अदालत ने इनको विभिन्न मामलों में सजा सुनाई थी. इनमें से कइयों की सजा अब पूरी हो चुकी है.” जिन सात लोगों को वापस भेजा जाना है उनको विदेशी अधिनियम के तहत में 29 जुलाई, 2012 को गिरफ्तार किया गया था.
कछार जिले के अधिकारियों ने बताया कि इनके नाम क्रमशः मोहम्मद जमाल, मोहबुल खान, जमाल हुसैन, मोहम्मद युनूस, शब्बीर अहमद, रहीमुद्दीन और मोहम्मद सलाम हैं. इन सबकी उम्र 26 से 32 वर्ष के बीच है. इन लोगों को बुधवार को ही सिलचर से मणिपुर की राजधानी इंफाल भेज दिया गया. अब इन सबको मोरे सीमा पर म्यांमारी अधिकारियों को सौंप दिया जाएगा. असम के अतिरिक्त महानिदेशक (सीमा संगठन) भास्कर ज्योति महंत कहते हैं, "विदेशी नागरिकों की वापसी एक रूटीन प्रक्रिया है. हाल में एक पाकिस्तानी, एक अफगानी और 52 बांग्लादेशी नागरिकों को भी उनके देश वापस भेजा जा चुका है.”
अदालत का फैसला
इन सातों लोगों की वापसी पर रोक की अपील में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में एक अंतरिम याचिका दाखिल की थी. जाने-माने वकील प्रशांत भूषण ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन-सदस्यीय खंडपीठ से इस याचिका पर तुरंत सुनवाई कर रोहिंग्या शरणार्थियों की वापसी रोकने का निर्देश देने की अपील की थी. लेकिन न्यायमूर्ति गोगोई ने इससे इंकार कर दिया. इस याचिका में कहा गया था कि म्यांमार की परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए सात रोहिंग्या लोगों को वहां वापस भेजने का फैसला बेहद खतरनाक है. वहां उनकी हत्या तक की जा सकती है. यह याचिका पहले से रोहिंग्या शरणार्थियों के मुद्दे पर शीर्ष अदालत में दायर याचिका से ही संबंधित है. बुधवार को इस पर सुनवाई के बाद तीन जजों की खंडपीठ ने उन नागरिकों को वापस भेजने की प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया.
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने दलील दी कि रोहिंग्या शरणार्थियों जैसे राष्ट्रविहीन नागरिकों की सुरक्षा करना अदालत की जिम्मेदारी है. लेकिन खंडपीठ ने कहा कि उनके लिए जजों को उनकी जिम्मेदारी याद दिलाना जरूरी नहीं है. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अपने हलफनामे में कहा था कि यह सातों लोग म्यांमार जाने के इच्छपक हैं. यह अवैध आप्रवासी थे और सबने विदेशी अधिनियम के तहत अपनी सजा पूरी कर ली है. केंद्र के वरिष्ठ विधि अधिकारी तुषार मेहता का कहना था कि म्यांमार सरकार ने उनके अपना नागरिक होने की पुष्टि करते हुए पहचान पत्र जारी कर दिया है ताकि वह लोग स्वदेश लौट सकें.
रोहिंग्या शरणार्थी कैंप में शादी की धूम..
रोहिंग्या शरणार्थी शिविरों से आम तौर दर्द भरी कहानियां ही मिलती हैं. लेकिन दुख और तकलीफों के बीच खुशी के पल भी आते हैं. ऐसा ही मौका था सद्दाम हुसैन और शौफीका बेगम की शादी.
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हम दोनों, दो प्रेमी..
सद्दाम की उम्र 23 साल है जबकि शौफीका बेगम 18 साल की है. दोनों इस समय बांग्लादेश के कोक्स बाजार में शरणार्थी शिविर में रहते हैं और हाल ही में शादी के बंधन में बंधे हैं.
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पहले से थी जान पहचान
म्यांमार से भागने से पहले ही दोनों एक दूसरे को जानते थे और एक दूसरे से शादी करने चाहते थे. लेकिन उनका यह सपना म्यांमार में तो नहीं, लेकिन कुतुपालोंग शरणार्थी शिविर में पूरा हुआ.
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घर गृहस्थी
दोनों का संबंध म्यांमार में माउंगदाओ इलाके के फोरिया बाजार गांव से था, जिसे वहां की सेना ने जला दिया. अब शरणार्थी शिविर का यही कामचलाऊ सा तंबू उनकी घर गृहस्थी है.
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सद्दाम की दुकान
सद्दाम शिविर में ही अपनी परिवार की एक छोटी सी दुकान पर बैठता है. सद्दाम का परिवार म्यांमार में भी दुकान चलाता था. उनके गांव में लगभग एक हजार दुकानें थी इसलिए उसके नाम में बाजार आता है.
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शादी की तैयारी
शादी से पहले दुल्हे राजा को तैयार किया जा रहा है. म्यांमार से भागे तो कई हफ्तों तक सद्दाम को शौफीका का कुछ अता पता नहीं चला. लेकिन उनकी किस्मत में मिलना लिखा था और वे कुतुपालोंग के शिविर में एक दूसरे मिले.
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सजना है मुझे..
शौफीका के हाथों पर सद्दाम के नाम की मेहंदी का सुर्ख रंग. शादी वाले दिन शौफीका को एक अलग टेंट में बिठाया गया, जहां उसकी कई महिला रिश्तेदार उसके साथ थीं.
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कैंप की जिंदगी
कॉक्स बाजार के इस शरणार्थी शिविर में लगभग 6.6 लाख रोहिंग्या लोग रहते हैं. इनमें बहुत से अगस्त में म्यांमार में छिड़ी हिंसा के बाद भागकर यहां पहुंचे. सद्दाम और शौफीका के परिवार अक्टूबर में यहां पहुंचे.
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मुझे भी चाहिए...
सद्दाम और शौफीका की शादी के मौके पर सबको को मुफ्त खाना बांटा गया जिसे लेने के लिए कैंप के बच्चों में होड़ मच गई. वैसे भी शरणार्थी शिविर में रहने वालों को कहां रोज रोज ऐसा खाना मिलता है.
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दस्तरखान
मेहमानों के लिए बैठ कर खाने का अलग से इंतजाम किया गया था जहां पारंपरिक लजीज खाना परोसा गया. इसके लिए एक बड़ा सा टेंट तैयार किया गया जिसमें बैठकर एक साथ 20 लोग खाना खा सकते थे.
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डांस वांस
नाच गाने के बिना कैसे शादी हो सकती है. इसके लिए एक प्रोफेशनल डांसर को बुलाया गया जिसने अपने दो साथियों के साथ रंग जमा दिया. वहां मौजूद लोगों की तालियां बता रही थीं कि उन्हें कितना मजा आ रहा है.
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कबूल है
पांरपरिक तरीके से सद्दाम और शौफीका की शादी हुई. सभी ने हाथ उठा कर उनकी खुशहाल जिंदगी की कामना की. हालांकि दर दर भटकते रोहिंग्या लोगों के लिए खुशी एक मरीचिका है. ना उनके रहने का कोई ठिकाना है और न ही जिंदगी का.
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लाडो चली..
फिर आ पहुंचा विदाई का समय. यूं तो शौफीका के टेंट से सद्दाम का टैंट बहुत दूर नहीं था, लेकिन वह माता पिता के घर से अपने पति के घर जा रही थी. भावनात्मक रूप से यह बहुत अहम सफर होता है.
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भविष्य अनिश्चित
शरणार्थी शिविर में रहने वाला यह नया जोड़ा जानता है कि उनका भविष्य अनिश्चित है. इसीलिए उन्हें परिवार बढ़ाने की कोई जल्दबाजी नहीं है. सद्दाम कहते हैं कि यह तो तय हो जाए कि हम यहीं रहेंगे या फिर वापस म्यांमार में.
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नागरिकता का सवाल
सद्दाम का कहना है कि वह तभी म्यांमार जाना चाहेगा जब वहां की सरकार नागरिकता दे. म्यांमार ने रोहिंग्या लोगों को आज तक अपना नागरिक नहीं माना है और इसीलिए उन्हें उन्हें अपनी नागरिकता नहीं दी है.
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आम जिंदगी
यह तस्वीर शादी के कुछ दिन बात की है, जिसमें शौफीका अपने टेंट में खाना पका रही है. सफर मुश्किल हो सकता है लेकिन सद्दाम और शौफीका ने एक नई शुरुआत की तरफ कदम बढ़ा दिया है.
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वापस भेजने पर अड़ी सरकार
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने पहले ही साफ कर दिया है कि वह देश में रहने वाले तमाम रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस भेज देगी. इस सप्ताह कोलकाता के दौरे पर आए केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने राज्यों को रोहिंग्या शरणार्थियों की शिनाख्त कर उनके बायोमेट्रिक आंकड़े जुटाने का निर्देश दिया है. उन्होंने कहा कि राज्यों की ओर से जुटाई गई बायोमेट्रिक रिपोर्ट को राजनयिक चैनल के जरिए म्यांमार सरकार को भेजा जाएगा. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा कि सरकार किसी भी घुसपैठिए को देश में रहने की अनुमति नहीं दे सकती. यहां इस बात का जिक्र जरूरी है कि पश्चिम बंगाल में भी राजधानी कोलकाता से सटे दक्षिण 24-परगना जिले में कई रोहिंग्या परिवारों ने शरण ले रखी है.
सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले का असर देश के विभिन्न हिस्सों में रह रहे 40 हजार से ज्यादा रोहिंग्या शरणार्थियों के भविष्य पर पड़ सकता है. अदालत में इस मुद्दे पर दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान भी इस फैसले की मिसाल दी जाएगी. राजनीतिक पर्यवेक्षक कुलधर मजुमदार कहते हैं, "असम के रोहिंग्या शरणार्थियों की वापसी में हस्तक्षेप नहीं करने का अदालती फैसला रोहिंग्या शरणार्थियों के भविष्य की दशा-दिशा तय करने में एक मिसाल बन सकता है."
बिना रोहिंग्या अब ऐसा दिख रहा है रखाइन
पिछले साल म्यांमार के उत्तरी रखाइन में हुई हिंसा ने देश के अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुसलमानों को देश छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया, जिसके चलते गांव खाली हो गए. लेकिन अब रखाइन के इलाकों को फिर से बसाया जा रहा है.
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बन रहा मॉडल गांव
रखाइन के इस इलाके में अब बौद्ध धर्म के झंडे नजर आने लगे हैं. इस क्षेत्र को एक मॉडल गांव की शक्ल दी जा रही है. रोहिंग्या मुसलमानों पर हुई हिंसा को नकारने वाली म्यांमार सरकार कहती आई है कि गांवों को इसलिए साफ किया गया है ताकि वहां लोगों को फिर से बसाने की योजना पर काम किया जा सके. इसके तहत बेहतर सड़कें और घर बनाए जाएंगे.
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आ रहे हैं नए लोग
पलायन कर रखाइन पहुंचे देश के अन्य इलाकों के लोगों को यहां बसाया जा सकता है. हालांकि जो लोग इस क्षेत्र में अब रहने आए हैं वे देश के दक्षिणी इलाके से आए गरीब हैं जिनकी संख्या फिलहाल काफी कम है.
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लोगों में डर
ये नए लोग इन इलाकों में काफी उम्मीदों के साथ रहने आए हैं. लेकिन अब भी उन्हें यहां से भागे लोगों के वापस आने का डर सताता है. अब तक तकरीबन सात लाख रोहिंग्या म्यांमार से बांग्लादेश भाग चुके हैं.
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गैर मुस्लिमों वाला बफर जोन
इस क्षेत्र के पुनर्निमाण के लिए देश में "कमेटी फॉर द रिक्सट्रंक्शन ऑफ रखाइन नेशनल टेरिटरी" (सीआरआर) का गठन किया गया. कमेटी को रिफ्यूजी संकट के बाद ही बनाया गया था. एक स्थानीय नेता के मुताबिक सीआरआर की योजना इस क्षेत्र को गैर मुस्लिमों वाले बफर जोन के रूप में स्थापित करने की है.
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सीआरआर जुटाएगा पैसा
रखाइन से सांसद ओ हला सा का कहना है कि अब तक ये क्षेत्र मुस्लिमों के प्रभाव में रहा है. लेकिन अब जब वे यहां से चले गए हैं तो इसमें रखाइन के लोगों को जगह मिलेगी. उन्होंने बताया कि सीआरआर यहां रहने वालों के लिए घर और पैसे जुटाने का काम करेगी.
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64 परिवार पहुंचे
इस क्षेत्र में अब तक सीआरआर ने 64 परिवारों के 250 लोगों को रहने की इजाजत दी है. इसके अलावा 200 परिवारों के रहने को लेकर विचार किया जा रहा है जो फिलहाल वेटिंग लिस्ट में है. इनमें से अधिकतर दिहाड़ी मजदूर या गरीब तबके से आने वाले लोग हैं.