भारत में महिलाओं के सशक्तिकरण और राजनीति में उनके लिए आरक्षण की बात तो तमाम राजनीतिक दल करते हैं, लेकिन इसके बावजूद संसद और विधान सभाओं में महिलाओं के लिए सीटों के आरक्षण का बिल पास नहीं हो पाया है.
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महिला सशक्तिकरण के तमाम दावों के बावजूद महिला आरक्षण विधेयक बीते दो दशकों से संसद में अटका है. पहली बार संसद में पेश होने के कोई 14 साल बाद उक्त विधेयक को काफी हील-हुज्जत के बाद वर्ष 2010 में राज्य सभा ने पास तो कर दिया था, लेकिन लोकसभा में इसे अब तक पारित नहीं किया जा सका है. हाल में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने एक बार फिर महिलाओं की राजनीति में भागीदारी का समर्थन किया है. संयुक्त राष्ट्र की ओर से हाल में जारी एक रिपोर्ट में भी महिला आरक्षण की वकालत की गई है. इस मुद्दे पर तमाम राजनीतिक दलों की राय समान है. महिला दिवस के मौके पर तो इससे संबंधित तमाम वादे भी किए जाते हैं. लेकिन उसके बाद फिर यह मामला ठंढे बस्ते में चला जाता है. अब कई महिला संगठनों ने एक बार फिर इस विधेयक को शीघ्र पारित करने की मांग उठाई है.
राष्ट्रपति ने की वकालत
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी अब संसद में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने की वकालत की है. इसी सप्ताह चेन्नई में एक कार्यक्रम में उनका कहना था कि महिलाओं को सम्मान नहीं देने वाला कोई समाज खुद को सभ्य नहीं कह सकता. उन्होंने कहा कि अब भी अक्सर महिलाओं पर अत्याचार की खबरें सामने आती हैं. सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की गणना करते समय देश के विकास में महिलाओं के योगदान को मान्यता नहीं दी जाती. महिलाओं को उनका वाजिब हक नहीं देने वाले समाज को सभ्य कहलाने का अधिकार नहीं है.
इन देशों में औरतें ज्यादा, मर्द कम
दुनिया में कई ऐसे देश हैं जहां औरतों की आबादी मर्दों से ज्यादा है. 2015 की जनगणना के अनुसार टॉप पर ये देश हैं जहां महिलाएं 50 फीसदी से ज्यादा हैं.
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लातविया (54.10%)
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लिथुआनिया (54%)
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कुरासाओ (53.90%)
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यूक्रेन (53.70%)
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आर्मेनिया (53.60%)
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रूस (53.50%)
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बेलारूस (53.50%)
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एस्टोनिया (53.20%)
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अल सल्वाडोर (53.10%)
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हांग कांग (53.10%)
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पुर्तगाल (52.70%)
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अरूबा (52.50%)
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राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का कहना है कि समाज में महिलाओं को उचित सम्मान दिलाने के मामले में अभी काफी कुछ किया जाना है. वह कहते हैं, "भारत में महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार होने के बावजूद लोकसभा में उनका प्रतिनिधित्व महज 11.3 फीसदी है जबकि इस मामले में वैश्विक औसत 22.8 फीसदी है." भारत के पड़ोसी पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी संसद में महिलाओं का अनुपात भारत से ज्यादा है. इंटर पार्लियामेंटरी यूनियन की 193 देशों की सूची में संसद में प्रतिशत भागीदारी के मामले में भारत का स्थान 148वां है.
संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट
संयुक्त राष्ट्र ने भी हाल में जारी अपनी एक रिपोर्ट में संसद जैसी लोकतांत्रिक तरीके से चुनी जाने वाली संस्थाओं में महिलाओं के लिए कोटा तय करने की वकालत की है. रिपोर्ट में कहा गया है कि पंचायती राज संस्थाओं में आरक्षण से लैंगिक भेदभाव कम करने में सहायता मिली है. संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट को दिल्ली में केंद्रीय वाणिज्य व व्यापार मंत्री निर्मला सीतारमण ने जारी किया. इसमें कहा गया है कि 110 से भी ज्यादा देशों में संसद में महिलाओं के लिए किसी न किसी किस्म के आरक्षण का प्रावधान है.
सीतारामन ने इस मौके पर कहा कि सरकार ने महिला सशक्तिकरण के लिए बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, स्वच्छ भारत योजना, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना व मुद्रा जैसी कई योजनाएं शुरू की हैं. लेकिन आरक्षण के सवाल पर वह भी चुप्पी साध गईं. संयुक्त राष्ट्र की उक्त रिपोर्ट से महिला आरक्षण के मुद्दे को बल मिला है.
भारतीय राजनीति के प्रमुख खिलाड़ी
भारत में नरेंद्र मोदी की सरकार लोक सभा में बहुमत के बावजूद संसद में अपने कानूनों को पास करवाने में मुश्किल झेल रही है. विपक्ष को राजी करवाने में विफलता ने बीजेपी सरकार की प्रतिष्ठा और प्रधानमंत्री के रुतबे को कम किया है.
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नरेंद्र मोदी
प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी की मुख्य चुनौती चुनाव में किए गए अपने वादों को पूरा करना है. वे देश को विकास के रास्ते पर लाने के लिए अपनी नीतियों के लिए संसद की मंजूरी चाहते हैं.
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सोनिया गांधी
संसद में बीजेपी को पर्याप्त बहुमत नहीं है. लोक सभा में उसे बहुमत पाने में कामयाबी मिली लेकिन प्रातों में मजबूत नहीं होने के कारण राज्य सभा में कांग्रेस अभी भी उसे रोक सकने की हालत में है.
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राहुल गांधी
कांग्रेस पार्टी अपनी इसी शक्ति का इस्तेमाल राज्य सभा में विधेयकों को रोकने में कर रही है. लोक सभा में सिर्फ 44 सांसदों वाली कांग्रेस बाधा डालने की रणनीति अपना रही है. बीजेपी भी पहले ऐसा कर चुकी है.
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सुषमा स्वराज
विदेश मंत्री भ्रष्टाचार कांडों में देश से भागे क्रिकेट प्रशासक ललित मोदी के लिए ब्रिटेन की सरकार को पत्र लिखकर फंस गई हैं. कांग्रेस संसद को चलने देने के लिए उनके इस्तीफे की मांग पर अड़ी है.
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अरुण जेटली
प्रधानमंत्री के विपरीत केंद्रीय वित्त मंत्री दिल्ली के हैं और सत्ता प्रतिष्ठान को जानते हैं. राज्य सभा के नेता होने के नाते वे सरकार और विपक्ष के बीच सुलह में अहम भूमिका निभा सकते हैं, लेकिन अब तक नाकाम रहे हैं.
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मुलायम सिंह यादव
समाजवादी पार्टी के नेता उत्तर प्रदेश में बीजेपी का विरोध कर सत्ता में आए हैं लेकिन केंद्र की सरकार की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहते. उन्होंने सदन में चर्चा का पक्ष लिया है और मोदी की तारीफ पाई है.
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ममता बनर्जी
कम्युनिस्टों को कमजोर करने के बाद बंगाल के मुख्यमंत्री की चुनौती बीजेपी है जो प्रदेश में अपना आधार बढ़ाने में लगी है. केंद्र सरकार ने वित्तीय घोटाले में उसके सांसदों और विधायकों पर नकेल कस रखी है.
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जयललिता
तमिलनाडु की मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार के आरोपों में काफी समय जेल में रही हैं. हाईकोर्ट से राहत पाकर वे फिर से सत्ता में अपनी स्थिति मजबूत कर रही हैं. केंद्र सरकार से वे कोई पंगा लेने की हालत में नहीं हैं.
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लालू यादव
मुख्यमंत्री के रूप में आरजेडी नेता ने बीजेपी के धार्मिक अभियान को रोकने की हिम्मत दिखाई थी और अल्पसंख्यकों का भरोसा जीता था. बिहार चुनाव जीतने के लिए वे बीजेपी विरोध की अपनी छवि भुना रहे हैं.
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नीतीश कुमार
बिहार के मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री मोदी की हरेक बात का विरोध कर रहे हैं. बिहार में इस साल विधान सभा चुनाव होने वाले हैं जिसमें उनकी कुर्सी और राजनीतिक भविष्य, तो प्रधानमंत्री की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है.
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वेंकैया नायडू
संसदीय कार्य मंत्री की भूमिका संसद में सभी दलों के बीच सुलह कराने की होती है. लेकिन उन्होंने दबाव की नीति के तहत विपक्ष पर आरोपों की झड़ी लगाकर सुलह की संभावना को कम ही किया है.
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महिला आरक्षण विधेयक
भारत में तमाम राजनीतिक दलों के पितृसत्तात्मक रवैये की वजह से महिलाओं को संसद में आरक्षण देने संबंधी विधेयक बीते 20 साल से भी लंबे समय से अटका है. वर्ष 1996 में तत्कालीन देवेगौड़ा सरकार ने इस विधेयक को संसद में पेश किया था. कोई 14 साल के बाद राज्यसभा ने तो वर्ष 2010 में इसे पारित कर दिया. लेकिन लोकसभा में अब तक पारित करना तो दूर किसी भी पार्टी ने ढंग से इस पर बहस तक में दिलचस्पी नहीं ली है. बीते दो दशकों के दौरान इस विधेयक को लेकर संसद में काफी नाटक हो चुका है. एक बार तो विपक्षी सदस्यों ने राज्यसभा के अध्यक्ष हामिद अंसारी पर हमले तक का प्रयास किया था. उक्त विधेयक में संसद व राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण की बात कही गई है.
देवेगौड़ा सरकार के कार्यकाल के दौरान विवाद के बाद इस विधेयक को संसद की एक संयुक्त समिति के हवाले कर दिया गया. उसके बाद 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने इसे दोबारा लोकसभा में पेश किया. लेकिन तब भी इस पर काफी हंगामा हुआ. उसके बाद वर्ष 1999, 2002 और 2003 में इसे फिर पेश किया गया. दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी, कांग्रेस और लेफ्ट खुले तौर पर तो इस विधेयक का समर्थन करते रहे. बावजूद इसके यह किसी न किसी बहाने संसद में पास नहीं हो सका. आखिर वर्ष 2008 में मनमोहन सिंह सरकार ने इसे राज्यसभा में पेश किया. दो साल तक चली खींचतान के बाद ऊपरी सदन ने नौ मार्च, 2010 को इसे पारित कर दिया. तब बीजेपी व लेफ्ट के अलावा कई अन्य दलों ने भी इस मुद्दे पर कांग्रेस का समर्थन किया था. लेकिन उसके बाद बीते छह वर्षों से यह लोकसभा में लंबित है. राष्ट्रीय जनता दल, समाजवादी पार्टी और जनता दल (यू) जैसे राजनीतिक दल इसका कड़ा विरोध करते रहे हैं. इसके लिए वे तमाम दलीलें देते रहे हैं.
भारत की कुछ सफल महिला उद्यमी
भारत की कुछ सफल महिला उद्यमी दुनिया भर में महिलाओं और पुरुषों की समानता का संघर्ष खत्म नहीं हुआ है. फिर भी बहुत सी महिला उद्यमियों ने अपनी हिम्मत और मेहनत से साबित किया है कि नेतृत्व क्षमता में वे पीछे नहीं हैं.
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इंदिरा नूयी
56 वर्षीया इंदिरा नूयी इस समय दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी खाद्य कंपनी पेप्सीको की अध्यक्ष हैं. चेन्नई में जन्मी इंदिरा नूयी ने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से साइंस में डिग्री की और आईआईएम कलकत्ता से एमबीए किया.
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किरण मजुमदार शॉ
बंगलोर में पैदा हुई 59 वर्षीया किरण मजुमदार शॉ शहर के माउंट कार्मेल कॉलेज से प्राणी विज्ञान की स्नातक हैं. किरण मजुमदार शॉ ने 1978 में बायोकॉन कंपनी शुरू की और उसे बायोमेडिसिन रिसर्च का अगुआ बना दिया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
नैना लाल किदवई
55 वर्षीया नैना लाल किदवई एचएसबीसी बैंक की भारत शाखा की कंट्री हेड और ग्रुप जनरल मैनेजर हैं. उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में डिग्री ली है और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से एमबीए करने वाली पहली भारतीय महिला हैं.
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चंदा कोचर
51 वर्षीया चंदा कोचर भारत के सबसे बड़े गैरसरकारी बैंक आईसीआईसीआई बैंक की प्रमुख हैं. राजस्थान में पैदा हुई चंदा कोचर ने मुंबई के जमनालाल बजाज इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज से एमबीए किया है.
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सिमोन टाटा
जन्म से फ्रांसीसी सिमोन टाटा रतन टाटा की सौतेली मां हैं. लक्मे कंपनी की पूर्व अध्यक्ष को भारत का कॉस्मेटिक जार कहा जाता है. उन्होंने बेचे जाने से पहले टाटा की इस छोटी कंपनी को भारत का सबसे बड़ा कॉस्मेटिक ब्रांड बना दिया.
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नीलम धवन
भारतीय आईटी उद्योग की प्रतिष्ठित हस्ती नीलम धवन इस समय ह्यूलेट पैकर्ड की भारत शाखा की प्रमुख हैं. 80 के दशक में एशियन पेंट्स और हिंदुस्तान लीवर जैसी कंपनियों द्वारा ठुकराए जाने के बाद उन्होंने आईटी उद्योग को चुना और अपनी जगह बनाई.
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सुलज्जा मोटवानी
सुलज्जा मोटवानी काइनेटिक मोटर्स की संयुक्त मैनेजिंग डाइरेक्टर हैं. कैलिफोर्निया में इंवेस्टमेंट कंपनी में काम करने बाद उन्होंने अपने दादा की कंपनी ज्वाइन की और अपनी मार्केटिंग रणनीति से कंपनी के विकास में योगदान दिया.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Raveendran
प्रिया पॉल
22 साल की आयु में पारिवारिक बिजनेस में शामिल होने वाली प्रिया पॉल इस समय एपीजे पार्क होटल्स कंपनी की अध्यक्ष हैं. उद्योग जगत के अलावा सरकार ने भी हॉस्पिटेलिटी उद्योग को उनके योगदान की सराहना की है.
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एकता कपूर
फिल्म स्टार जीतेंद्र की बेटी एकता कपूर बालाजी टेलीफिल्म्स कंपनी की संयुक्त मैनेजिंग डाइरेक्टर है. उन्होंने टीवी धारावाहिकों और फिल्म निर्माण के क्षेत्र में अपनी खास जगह बनाई है. सबसे सफल महिला प्रोड्यूसर्स में एकता का नाम आता है.
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सोच बदलने की अपील
लेकिन महिला कार्यकर्ताओं ने इसके लिए राजनीतिक दलों की पितृसत्तात्मक सोच को जिम्मेदार ठहराया है. जानी-मानी कार्यकर्ता अरुणा राय कहती हैं, "संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के मामले में भारत वैश्विक औसत से काफी पीछे है." वह कहती हैं कि इस विधेयक को कानून की शक्ल देने के लिए तामाम दलों के शीर्ष नेतृत्व को अपनी सोच बदलनी होगी. ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वुमेंस एलायंस की महासचिव किरण मोघे कहती हैं, "बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में इस विधेयक को पारित करने का वादा किया था. बहुमत में होने के नाते उसके लिए यह काम आसान है. लेकिन वह भी चुप्पी साधे बैठी है. इससे पता चलता है कि इस मामले में तमाम दलों की मानसिकत एक जैसी है." वह कहती हैं कि इसके लिए बीजेपी की महिला नेताओं को भी सरकार पर जोर डालना होगा.
इस विधेयक को शीघ्र पारित करने की मांग में बीते दिनों दिल्ली में प्रदर्शन करने वाले महिला संगठनों ने भी राजनीतिक दलों के शीर्ष नेतृत्व से बदलते समय के साथ अपने सोच में बदलाव लाने की अपील की है. सेंटर फार सोशल रिसर्च की निदेशक रंजना कुमारी कहती हैं, "राजनीतिक दलों का शीर्ष नेतृत्व महिलाओं को राजनीति में आगे बढ़ाने में दिलचस्पी नहीं लेता. उनको लगता है कि विधेयक पारित होने के बाद उनके हिस्से की मलाई कम हो जाएगी." रंजना आंकड़ों के हवाले कहती हैं कि लोकसभा के 543 सदस्यों में महिलाओं की तादाद महज 65 है जबकि राज्यसभा में यह तादाद महज 31 है.
रिपोर्टः प्रभाकर
दुनिया की कुछ प्रमुख संसदें
जन प्रतिनिधि सभाओं का आजकल के शासन में अहम स्थान है. कहीं इन्हें लोकतंत्र के मंदिर कहा जाता है तो कहीं इनके अधिकार खतरे में हैं.
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चीन
चीन की राष्ट्रीय पीपुल्स कांग्रेस दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे कमजोर संसद है. इसके करीब 3000 सदस्य हैं. हर पांच साल पर इसका चुनाव होता है. एक सदन वाली चीनी संसद को कानून बनाने, सरकार की गतिविधियों की निगरानी और प्रमुख अधिकारियों के चुनाव का अधिकार है. लेकिन असल में सारे फैसले देश कम्युनिस्ट पार्टी लेती है, जिसका चीन में एकछत्र राज है.
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जर्मनी
जर्मन संसद बुंडेसटाग की 598 सीटों में आधे का चुनाव देश भर में बंटे चुनाव क्षेत्रों में होता है जबकि बाकी को पार्टियों को मिले मतों के अनुपात में बांटा जाता है ताकि उनकी सीटें वोट के अनुपात में हों. संसद में प्रतिनिधित्व पाने के लिए वोटों की न्यूनतम सीमा 5 प्रतिशत है. सरकार के मुकाबले संसद की ताकत में लगातार इजाफा हो रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/K. Nietfeld
ब्रिटेन
ब्रिटेन की संसद दो सदनों वाली है. हाउस ऑफ लॉर्ड्स और हाउस ऑफ कॉमंस. 650 सदस्यों वाले हाउस ऑफ कॉमंस का चुनाव हर पांच साल पर होता है. संसद के दूसरे सदन हाउस ऑफ लॉर्ड्स में 804 सदस्य हैं जो लॉर्ड टेम्पोरल और लॉर्ड स्पीरिचुअल में बंटे हैं.
तस्वीर: picture alliance/dpa/PA Wire
अमेरिका
कांग्रेस के नाम से जानी जाने वाली अमेरिकी संसद के भी दो सदन हैं. उपरी सदन सीनेट के 100 सदस्य हैं, जिनका कार्यकाल छह साल का होता है. हर राज्य से दो सदस्य चुने जाते हैं. निचले सदन हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव के 435 सदस्यों का चुनाव दो साल पर होता है.
तस्वीर: Getty Images/C. Somodevilla
फ्रांस
फ्रांस की संसद के दो सदनों का नाम सीनेट और नेशनल एसेंबली है. सीनेट की 348 और नेशनल एसेंबली की 577 सीटें हैं. फ्रांस में राष्ट्रपति प्रधानमंत्री और मंत्रियों को नियुक्त करता है और उस पर कोई दबाव नहीं है कि ये अधिकारी संसद में बहुमत की पार्टी के हों. नेशनल एसेंबली अविश्वस प्रस्ताव पास कर सरकार को गिरा जरूर सकती है.
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भारत
ब्रिटेन की गुलामी में रहे भारत की संसद भी ब्रिटेन की संसद के नमूने पर बनी है, लेकिन यहां सम्राट के बदले राष्ट्रपति राज्य प्रमुख हैं. निचले सदन लोक सभा के 542 सदस्यों का चुनाव पांच साल के लिए सीधे निर्वाचन से होता है, जबकि उपरी सदन राज्य सभा के सदस्यों का चुनाव प्रांतीय विधान सभाओं के द्वारा छह साल के लिए होता है.
तस्वीर: AP
पाकिस्तान
दो सदनों वाली पाकिस्तान संसद में ऊपरी सदन का नाम सीनेट और निचले सदन क नाम नेशनल एसेंबली है. नेशनल एसेंबली के 342 सदस्यों का चुनाव पांच साल के लिए वयस्क मतदान के आधार पर होता है. 60 सीटें महिलाओं के लिए और 10 सीटें धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए सुरक्षित हैं. सीनेट के सदस्य छह साल के लिए चुने जाते हैं.
तस्वीर: AAMIR QURESHI/AFP/Getty Images
बांग्लादेश
बांग्लादेश की संसद का नाम जातीयो संसद है. 350 सदस्यों वाली संसद का कार्यकाल 5 वर्षों का है और 50 सीटें महिलाओं के लिए सुरक्षित हैं, जिनकी नियुक्ति पार्टी द्वारा जीती गई सीटों पर होती है. बांग्लादेश में संसद में बहुमत दल का नेता प्रधानमंत्री बनता है और संसद ही राष्ट्रपति का चुनाव करती है.
नेपाल की वर्तमान संसद देश की दूसरी संविधान सभा है. देश के 2015 के संविधान के अनुसार नेपाली संसद के दो सदन हैं, निचला सदन प्रतिनिधि सभा है जिसके 275 सदस्यों का चुनाव सीधे मतदान से होता है. ऊपरी सदन राष्ट्रीय सभा के 59 सदस्य छह साल के लिए चुने जाते हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/P. Mathema
कनाडा
उत्तरी अमेरिका में बसे कनाडा की संसद के भी दो सदन हैं. निचले सदन के 338 सदस्य चुनाव क्षेत्रों में सीधे मतदान से चुने जाते हैं. उपरी सदन सीनेट के 105 सदस्यों की नियुक्ति प्रधानमंत्री की सलाह पर देश के गवर्नर जनरल एक एक को बुलाकर करते हैं. संसदीय कार्रवाई लगभग ब्रिटेन जैसी है.
तस्वीर: dapd
रूस
रूस की 616 सदस्यों वाली संसद के दो सदन हैं. निचले सदन का नाम स्टेट डूमा है और उसके 450 सदस्यों में आधा निर्वाचन क्षेत्रों से चुना जाता है और आधा पार्टी को मिले वोटों के आधार पर. संसद के ऊपरी सदन संघीय परिषद के लिए रूस की सभी 85 संघीय इकाईयां दो दो सदस्य भेजती हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Kolesnikova
तुर्की
तुर्की की संसद का नाम 'ग्रैंड नेशनल एसेंबली ऑफ टर्की' है, लेकिन उसे मजलिस के नाम से पुकारा जाता है. 550 सदस्यों वाली संसद का चुनाव पार्टी सूची के आधार पर आनुपातिक पद्धति से होता है. संसद में पहुंचने के लिए पार्टियों को कम से कम 10 प्रतिशत मत पाना जरूरी है. संविधान में संशोधन के जरिये संसद के अधिकारों में भारी कटौती का प्रस्ताव है.
तस्वीर: picture-alliance/AP/dpa/B. Ozbilici
यूरोपीय संसद
751 सदस्यों वाली यूरोपीय संसद यूरोपीय संघ की सीधे निर्वाचित संस्था है. यूरोपीय आयोग और यूरोपीय संघ की परिषद के साथ मिलकर वह यूरोपीय संघ की विधायिका वाली जिम्मेदारी को पूरा करती है. भारत के बाद यह दूसरी सबसे ज्यादा लोकतांत्रिक मतदाताओं की प्रतिनिधि सभा है.