दूसरे दर्जे के इंसान
७ जून २०१३आसियेह अमीनी दोबारा देख सकती हैं. कुछ साल पहले उनकी आंखों की रोशनी चली ही गई थी. उनका दिल और दिमाग हार चुका था. "डॉक्टरों ने कहा कि मैं शॉक में हूं." ईरानी महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करने वाली आसियेह और सहने की हालत में नहीं थीं, जो वह सालों से देख रही थीं, ईरानी जेलों में महिलाओं की हालत, उन्हें दी जाने वाली मौत की सजा, किस तरह पत्थर मार मार कर उन्हें मारा जाता. "हर दिन मैं जेल में मौत की सजा पाई एक महिला को लेकर एक कठिन काम से रूबरू होती. मैं उनके काफी करीब आ गई, कुछ मेरी अपनी बेटियों जैसी थीं. समय के साथ यह मेरे लिए मुश्किल होता गया."
पत्रकार से कार्यकर्ता का सफर
आसियेह एक अखबार में काम करती थीं. 2003 में उन्होंने एक मामले की जांच की और उनकी जिंदगी बदल गई. जेल में बंद एक 16 साल की लड़की के बारे में उन्हें पता चला जिसपर शादी से पहले यौन संबंध स्थापित करने के आरोप लगे. सजा के तौर पर उसकी पत्थरों से मारकर हत्या की जानी थी. आसियेह ने मामले को ध्यान से जांचा. उन्हें पता चला कि 16 साल की आतिफेह सलालेह 10 साल की उम्र से बलात्कार की शिकार थी. अपना मुंह बंद रखने के लिए उसे पैसे दिए गए थे. "कुछ वक्त बाद आतिफेह इसे काम के तौर पर देखने लगी." उसे वैश्यावृत्ति के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. जज ने तय किया कि उसे मौत की सजा मिलनी चाहिए. पत्रकार आसियेह की पड़ताल से पता चला कि मामले की सही तरह से जांच नहीं हुई है और इस फैसले को सही नहीं ठहराया जा सकता.
आसियेह अमीनी ने आतिफेह के बारे में एक लेख लिखा लेकिन उनके अखबार ने इसे छापने से मना कर दिया. आसियेह ने फिर लड़की के लिए वकील ढूंढा और परिवार को अपना सहारा दिया. लेकिन हत्या को वह रोक नहीं पाईं. "मैंने एक अहम बात सीखी, "ईरान में यह एक क्रूर कानून है, जिसके मुताबिक आपको मौत की सजा केवल इसलिए दी जा सकती हैं क्योंकि आपने किसी के साथ यौन संबंध स्थापित किया." बाद में आसियेह को पत्थर मारकर महिलाओं की हत्या के और मामलों का पता लगा. यह बिना किसी को बताए किए जाते थे. ईरान की सरकार ने अंतरराष्ट्रीय आलोचना के बाद एलान किया था कि वह पत्थरों से हत्या करने की परंपरा को खत्म कर रहा है. लेकिन जर्मनी में ह्यूमन राइट्स वॉच के प्रमुख वेंसेल मिशाल्सकी कहते हैं कि पत्थरों से मारकर हत्या के मामले कम होते हैं, लेकिन होते तो वह अब भी हैं.
आसियेह मानवाधिकारों में और दिलचस्पी लेने लगीं. अखबार ने उन्हें नौकरी से निकाल दिया और वह खुफिया तौर पर काम करने लगीं. 2008 में उन्होंने इस तरह की हत्या के खिलाफ एक मुहिम शुरू किया. इससे कई लोगों की जान बचाई जा सकी.
Diskriminierung per Gesetz
कानून के जरिए भेदभाव
आसियेह ने पाया कि ईरानी कानून में महिलाओं के खिलाफ पूर्वाग्रह हैं. जेल में उन्हें ऐसी महिलाएं मिली जिन्होंने अपने बलात्कारियों से बचने की कोशिश की थी, लेकिन इसी वजह से उन्हें "अश्लीलता" के आरोप में गिरफ्तार किया गया और उन्हें मौत की सजा दी गई. ऐसी कई महिलाएं थी जिन्हें उनके पतियों ने मारा था और जिससे उनका बचना मुश्किल था. "मैं ऐसी महिलाओं से मिली जिन्होंने अपने पतियों की हत्या कर दी क्योंकि उनसे तलाक लेना नामुमकिन था. वे तलाक चाहती थीं, लेकिन उन्हें मिली नहीं और उनके परिवारों ने उनका साथ नहीं दिया." एक पुरुष प्रधान प्रणाली में महिलाओं के लिए तलाक लेना मुश्किल होता है और इसकी प्रक्रिया सालों खिंच जाती है. कई जज कुरान के सूरों की दुहाई देते हैं जिसमें पुरुष को तलाक का अधिकार है. उन्हें बस तीन बार तलाक बोलना पड़ता है.
इसके अलावा, नौ साल की उम्र के बाद से लड़कियों को सजा दी जा सकती है जबकि लड़कों को 15 साल की उम्र के बाद ही सजा मिल सकती है. एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक बेटियों को बेटों के मुकाबले केवल आधी संपत्ति दी जा सकती है. इस्लाम विशेषज्ञ कतायून अमीपुर कहते हैं कि महिलाओं को तलाक के बाद बच्चों को अपने पास रखने का अधिकार कम ही मिलता है. अगर वह विदेश जाना चाहती हैं तो उन्हें अपने पति की अनुमति लेनी होती है. ईरान में इस्लामी कानून के मुताबिक पुरुष चार बार शादी कर सकते हैं.
अमीपुर कहते हैं कि इन्हीं कानूनों का हवाला देकर महिलाएं दावा करती हैं कि इस देश के कानून ने उन्हें दूसरे दर्जे का नागरिक बना दिया है. इस तरह के कानून का बुरा असर समाज पर पड़ सकता है. "जब एक कानूनी प्रणाली इस तरह की है और जब छोटे बच्चों को स्कूल ही में ऐसा बताया जाता है तो मैं सोच ही नहीं सकता हूं कि वह बड़े होकर सोचेंगे कि महिलाएं उनके बराबर हैं."
दमन और निगरानी
राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद के शासन के दौरान महिलाओं के लिए स्थिति और बुरी हो गई है. ऐसा मानना है निर्वासन में रहने वाली पत्रकार मित्रा शोजाइये का. ईरान में महिला अधिकारों या लोकतंत्र का झंडा फहराना खतरे से खाली नहीं है, "कई कार्यकर्ता जेल में हैं, बाकियों को डर है. उनपर चौबीसों घंटे निगरानी रखी जाती है. अब इसे और कड़ा कर दिया गया है."
आसियेह 2009 में इसी तरह के अनुभवों से गुजरी. "मेरी पूरी जिंदगी पर निगरानी रखी जा रही थी. मेरे दोस्तों को गिरफ्तार किया गया. हम काम नहीं कर सकते थे जब कि हम ऐसा करना चाहते थे. राष्ट्रपति अहमदीनेजाद के चुने जाने के बाद और मुश्किल हो गई, हम किसी को फोन नहीं कर सकते थे, ईमेल नहीं कर सकते थे और मिल भी नहीं सकते थे." चुनावों के चार महीनों बाद आसियेह अमीनी ने अपना देश छोड़ दिया, क्योंकि वह सुरक्षित नहीं थीं.
आसियेह को कम उम्मीद है कि उनके देश की राजनीतिक स्थिति बेहतर होगी. लेकिन बदलाव में वह विश्वास करती हैं, जो चुनाव से नहीं बल्कि लोगों की वजह से होगा. "मैं उम्मीद करती हूं कि भेदभाव के इस अनुभव से हमें मदद मिले और हम लोकतंत्र के करीब आएं. लोकतंत्र लोगों से आता है. कोई दूसरा हमारे लिए सोच नहीं सकता, कर नहीं सकता. हमें खुद करना होगा. जनता खुद बदलाव का फैसला लेगी. यह चुनावों के बाद होगा."