अफगानिस्तान में कई ऐसे भारतीय नागरिक भी फंसे हुए हैं जो वहां दूसरे देशों की कंपनियों के लिए काम कर रहे थे. संभव है कि ऐसे देश भी इन भारतीयों को वहां से निकाल लें और बाद में उन्हें वापस भारत लाया जाए.
विज्ञापन
अभी ऐसे भारतीय नागरिकों की कुल संख्या के बारे में जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है, लेकिन उन्हें निकालने की भी कोशिशें जारी हैं. 23 अगस्त को भारतीय वायु सेना के एक विमान ने 25 भारतीयों समेत 78 लोगों को काबुल से ताजीकिस्तान के दुशांबे पहुंचाया.
24 अगस्त की सुबह उन सब लोगों को दिल्ली लाया गया. इन 78 लोगों में कई अफगान हिन्दू और सिख भी थे. इसी के साथ 16 अगस्त के बाद अभी तक काबुल से दिल्ली लाए गए लोगों की संख्या 800 पार कर गई. 21 अगस्त को 146 भारतीय नागरिकों को नाटो और अमेरिकी विमानों ने काबुल से कतर की राजधानी दोहा पहुंचाया था.
ऑपरेशन देवी शक्ति
अगले दिन उन्हें भी वापस भारत ले आया गया था. भारत ने काबुल से लोगों को बचा कर लाने के अभियान को ऑपरेशन देवी शक्ति नाम दिया गया है.
एक मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अमेरिका, यूके, यूएई, फ्रांस, जर्मनी और कतर ने कहा है कि अफगानिस्तान में जो भारतीय उनके लिए काम कर रहे थे उन्हें वो निकाल लाएंगे. उन्हें बाद में भारत लाया जाएगा.
इस बीच नाटो सेनाओं के अफगानिस्तान पूरी तरह से छोड़ने की समयसीमा करीब आ रही है और ऐसे में तालिबान के हौसले बढ़ते जा रहे हैं. काबुल हवाई अड्डे पर अभी भी विदेशी सेनाएं तैनात हैं लेकिन 23 अगस्त को तालिबान के हवाई अड्डे पर भी गोली चलाने की खबरें आई थीं.
क्या निकल पाएंगे सब?
इन हालात के बीच भारत समेत उन सभी देशों के लिए वहां फंसे अपने नागरिकों को निकाल लेना काफी मुश्किल हो गया है. यूक्रेन ने दावा किया है कि कुछ अज्ञात हथियारबंद लोगों ने एक यूक्रेनी विमान को अफगानिस्तान में हाईजैक कर लिया और उसे उड़ा कर ईरान ले गए.
यह विमान अफगानिस्तान से यूक्रेनी नागरिकों को वापस लाने गया था. यूक्रेन के डिप्टी विदेश मंत्री येवगेनी येनिन ने कहा कि उस विमान को अब "व्यावहारिक रूप से उनसे चुरा लिया गया है और उस पर यूक्रेनी नागरिकों की जगह कुछ अज्ञात लोगों का एक समूह सवार है." हालांकि अभी इन दावों की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं हो पाई है.
अभी भी हजारों लोग अफगानिस्तान से निकल जाने के लिए या तो काबुल हवाई अड्डे पर इंतजार कर रहे हैं या वहां पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं. जैसे जैसे 31 अगस्त की समय सीमा नजदीक आती जा रही है, इन लोगों को अफगानिस्तान से सुरक्षित निकाल लेने को लेकर चिंता बढ़ती जा रही है.
अमेरिका पर दबाव है कि वो तालिबान के साथ किसी भी तरह यह समझौता करे कि जब तक इन लोगों को सुरक्षित निकाल नहीं लिया जाता तब तक तालिबान नाटो सेनाएं को हवाई अड्डे पर रहने दे. हालांकि तालिबान इस मांग को ठुकरा चुका है और 31 अगस्त की समय सीमा पर अड़ा हुआ है. देखना होगा कि समय रहते अफगानिस्तान से कितने लोगों को निकाल पाना संभव हो पाता है.
तालिबान आतंक से निजात
अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद भारत अपने नागरिकों समेत वहां के नागरिकों को सुरक्षित निकालने के मिशन पर लगा हुआ है. हर रोज वायुसेना के विमान से सैकड़ों लोग भारत आ रहे हैं. भारत आकर वे राहत की सांस ले रहे हैं.
तस्वीर: IANS
सुरक्षा का अहसास
22 अगस्त को भारतीय वायुसेना ने काबुल में फंसे भारतीयों और अफगानों को वहां से एयरलिफ्ट किया. भारत आने के बाद लोगों ने राहत की सांस ली.
तस्वीर: IANS
जब फंस गए थे काबुल में
रोजगार और व्यापार के सिलसिले में अफगानिस्तान गए कई भारतीय तालिबान के कब्जे के बाद वहीं फंस गए थे. काबुल एयरपोर्ट से भारतीय वायुसेना का विमान हर रोज सैकड़ों लोगों को संकटग्रस्त देश से निकाल रहा है.
तस्वीर: IANS
अफगान सांसद भी बचाए गए
22 अगस्त को काबुल से 392 लोगों को तीन विमानों के जरिए भारत लाया गया. इन लोगों में 329 भारतीय नागरिक और दो अफगान सांसद समेत अन्य लोग हैं. भारतीय वायुसेना का सी-19 विमान 107 भारतीयों और 23 अफगान सिख-हिंदुओं समेत कुल 168 लोगों को लेकर हिंडन एयरबेस पर उतरा.
तस्वीर: IANS
जब रो पड़े सांसद
काबुल से भारत पहुंचे लोगों में दो अफगान सांसद नरेंद्र सिंह खालसा और अनारकली होनरयार भी हैं. हिंडन एयरबेस पर उतरते ही खालसा की आंखें भर आईं. अपने देश का हाल बयान करते हुए उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान 20 साल पीछे चला गया है.
तस्वीर: IANS
मिशन काबुल
अमेरिका, कतर और कई मित्र देशों के साथ मिलकर भारत अपने नागरिकों के साथ-साथ अफगान लोगों को काबुल से निकालने के मिशन में जुटा हुआ है. भारत सरकार अफगानिस्तान की स्थिति पर करीब से नजर बनाए हुए है.
तस्वीर: IANS
दूतावास के बाहर लंबी कतारें
दिल्ली में कई अफगान नागरिक अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया समेत अन्य देशों के दूतावास के बाहर सुबह से इकट्ठा हो जाते हैं और वे दूतावास से मदद की गुहार लगाते हैं. ऑस्ट्रेलिया के दूतावास के बाहर जमा हुए अफगान नागरिकों का कहना है कि उन्होंने सुना है कि ऑस्ट्रेलिया ने शरणार्थियों को स्वीकार करने और उन्हें आव्रजन वीजा देने की घोषणा की है.
तस्वीर: IANS
लंबा इंतजार
दूतावास के बाहर लोग घंटों इंतजार करते हैं. कुछ अफगानों का कहना है कि जब वे ऑस्ट्रेलियाई दूतावास आए तो उन्हें एक फॉर्म दिया गया और कहा गया कि यूएनएचसीआर (शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त) को एक ईमेल भेजना होगा जो उन्हें वीजा के लिए दूतावास के पास भेजेगा. लोगों का आरोप है कि यूएनएचसीआर कार्यालय कोई जवाब नहीं देता.
तस्वीर: IANS
बच्चों के भविष्य की चिंता
काबुल से आए कई परिवारों में छोटे बच्चे भी हैं. यह परिवार भी ऑस्ट्रेलिया दूतावास में वीजा की गुहार के लिए आया हुआ है. दूतावास के बाहर भीड़ को देखते हुए सुरक्षा बढ़ा दी गई है.
तस्वीर: IANS
मदद की गुहार
अफगानिस्तान में एक ओर लोग तालिबान के डर से भाग रहे हैं वहीं दूसरी ओर जो नागरिक दूसरे देशों में हैं, वे वापस अपने देश जाना नहीं चाहते हैं. ऐसे में वे वीजा के लिए दूतावासों के चक्कर काट रहे हैं.
तस्वीर: IANS
खतरे में लोग
संयुक्त राष्ट्र की रिफ्यूजी एजेंसी का कहना है कि ज्यादातर अफगान देश नहीं छोड़ पा रहे हैं और जो खतरे में हो सकते हैं उनके पास बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है. ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांस, ईरान और भारत जैसे देश शरणार्थियों के लिए अपने दरवाजे खोल रहे हैं.