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दूसरे धर्मों के प्रति बौखलाहट

११ मार्च २०१३

सामाजिक अधिकार कार्यकर्ताओं को लगता है कि पाकिस्तान में दूसरे धर्मों के प्रति सहिष्णुता खत्म होती जा रही है. कट्टरपंथी दूसरे धर्मों का खुले आम अपमान कर रहे हैं.

तस्वीर: Arif Ali/AFP/Getty Images

कराची के संभ्रात इलाके में दुकान चलाने वाले अहमद जहांजेब कहते हैं, "कुरान या पैंगबर मोहम्मद का अपमान करने वाले की सजा मौत है. इसे कोई मुसलमान बर्दाश्त नहीं कर सकता." हालांकि जहांजेब यह भी मानते हैं कि लाहौर में ईसाइयों के 100 घरों को आग लगाना भी ठीक नहीं है, "यह सही नहीं है क्योंकि जिन्होंने यह अपराध नहीं किया, उन्हें भी किसी एक व्यक्ति की गलती की सजा मिल रही है."

आरोपों के मुताबिक सवान मसीह नाम के के ईसाई व्यक्ति ने पैंगम्बर मोहम्मद के खिलाफ तथाकथित आपत्तिजनक बातें कहीं. इस घटना के बाद पुलिस ने सवान को गिरफ्तार कर लिया. लेकिन गिरफ्तारी के बावजूद अगले ही दिन 3000 से ज्यादा मुसलमानों की भीड़ ने लाहौर की जोसेफ कालोनी पर धावा बोला और 125 से ज्यादा इमारतों को आग लगा दी. दंगाइयों ने एक चर्च, कई दुकानें और कई घर फूंके. हमलों के दौरान ईसाई समुदाय के लोग जान बचाने के लिए दूसरे इलाकों में भागे.

पाकिस्तान की ज्यादातर बड़ी राजनीतिक पार्टियों ने हमले की निंदा की है. 18 करोड़ की आबादी वाले पाकिस्तान में दो फीसदी ईसाई हैं. इनमें से ज्यादातर पंजाब प्रांत में रहते हैं. पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच के आदेश दिये हैं.

पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून के चलते खड़े होने वाले विवाद कोई नई बात नहीं हैं. तमाम आलोचनाओं के बाद भी आम लोगों से जब यह पूछा जाता है कि क्या वे विवादित कानून के पक्ष में हैं तो जवाब में हां मिलता है. लाहौर में पढ़ाई कर रहे अली असगर कहते हैं, "यह कानून में बदलाव करने या उसे रद्द करने या फिर नया कानून बनाने का मसला नहीं है. जो लोग धर्म का अपमान करते हैं उन्हें सजा मिलनी ही चाहिए."

तस्वीर: Arif Ali/AFP/Getty Images

नस नस में घुसता कट्टरपंथ

कारोबारी एस सिद्दिकी देश में फैलते कट्टरपंथ से हैरान हो रहे हैं. उनके मुताबिक इस्लाम एक शांतिप्रिय धर्म है जो व्यवहार में सहनशीलता की नसीहत देता है. सिद्दिकी के मुताबिक पाकिस्तान में हर कोई कहता है कि अल्पसंख्यकों के साथ अच्छा व्यवहार होना चाहिए लेकिन जब ईशनिंदा की बात आती है तो लोग कट्टरपंथी तेवर दिखाने लगते हैं.

पाकिस्तान में ईसाई, हिंदू और अन्य संप्रदायों के लोग ईशनिंदा कानून पर बात करने से भी बचते हैं. उन्हें लगता है कि इस कानून पर बात करना बेवजह विवाद को पास बुलाना है.

पाकिस्तानी मानवाधिकार आयोग के असाद बट भी मानते है कि देश में दूसरे समुदायों के प्रति सहनशीलता में कमी आई है. बट के मुताबिक ईशनिंदा कानून सिर्फ इस्लाम के अपमान के दोषियों को सजा देने की ही नहीं, बल्कि अन्य धर्मों का अपमान करने वालों को दंड देने की वकालत करता है. बट का दावा है कि पाकिस्तान में मुसलमान ही सबसे ज्यादा ईशनिंदा कानून को तोड़ रहे हैं. वह कहते हैं, "सामाजिक कार्यकर्ता हमेशा ईशनिंदा कानून को खत्म करने की मांग करते आए हैं. लेकिन लोग इतने असहनशील हो चुके है कि ऐसे मामलों में अदालत का फैसला आने से पहले ही कानून को अपने हाथ में ले रहे हैं."

बट इस कट्टरपंथ के लिए पूर्व सैन्य शासक जिया उल हक को जिम्मेदार ठहराते हैं, "1980 के दशक से पहले ऐसा कोई मुद्दा नहीं था, लेकिन जब जनरल जिया उल हक सत्ता में आए तो उन्होंने हर चीज का इस्लामीकरण कर दिया और धर्म व राजनीति को मिला दिया."

कराची में काम करने वाले पत्रकरा मोहसिन सईद इसके लिए सिर्फ सरकार को ही जिम्मेदार नहीं ठहराते. कहते हैं, "वे दिन बीत गए हैं जब हम कहते थे कि कट्टरपंथियों के एक छोटे से समूह ने ऐसा अपराध किया है. अब यह जहर पूरे पाकिस्तानी समाज में फैल चुका है." ऐसे बर्बर अपराधों की निंदा करने वाले भी अब अल्पसंख्यकों की श्रेणी में हैं.

रिपोर्ट: शामिल शम्स/ओ सिंह

संपादन: मानसी गोपालकृष्णन

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