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दूसरों का तख्तापलट करने वाले अल बशीर अपना तख्त न बचा सके

ओंकार सिंह जनौटी
१२ अप्रैल २०१९

30 साल पहले एक कर्नल ने सूडान सरकार का तख्तापलट कर दिया. और फिर एक एक कर सारे विरोधियों को खत्म किया. लेकिन तीन दशक बाद उस शख्स के साथ भी ठीक वही हुआ, रक्तहीन तख्तापलट.

Wahlplakat mit sudanesischem Präsidenten Omar al-Baschir
तस्वीर: Ashraf Shazly/AFP/Getty Images

30 साल से सूडान की सत्ता पर बैठे ओमर अल बशीर का 11 अप्रैल 2019 को सेना ने तख्तापलट कर दिया. ओमर अल बशीर के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय अपराध अदालत (आईसीसी) का वारंट भी है. अदालत चाहती है कि ओमर अल बशीर को उसके सुपुर्द किया जाए. लेकिन सूडान की अंतरिम सैन्य काउंसिल ने इस आग्रह को ठुकरा दिया है. 

फिलहाल देश की कमान अंतरिम सैन्य काउंसिल के हाथ में है. काउंसिल की पॉलिटिकल कमेटी के चैयरमैन ओमर जाइन अल-अब्दीन ने कहा, "हम अल बशीर को प्रत्यर्पित नहीं करेंगे. उन पर यहीं सूडान में मुकदमा चलाया जाएगा. हमारे पास अपनी न्यायपालिका है...हम सूडानी नागरिकों को प्रत्यर्पित नहीं करेंगे. अगर हम उन्हें प्रत्यर्पित करेंगे तो यह हमारे इतिहास में एक काला धब्बा होगा." सेना के अधिकारियों के मुताबिक 75 साल के पूर्व राष्ट्रपति अल बशीर कैद में हैं. लोकेशन गुप्त रखी गई है.

दारफूर के जातीय जनसंहार की एक तस्वीर (23 अप्रैल 2007)तस्वीर: AP

अल बशीर पर सूडान के दारफूर इलाके में मानवता के खिलाफ अपराध के आरोप हैं. अंतरराष्ट्रीय अपराध अदालत ने अल बशीर के खिलाफ पहला गिरफ्तारी वारंट 4 मार्च 2009 और दूसरा 12 जुलाई 2010 को जारी किया था. मानवता के खिलाफ अपराध के तहत पूर्व सूडानी राष्ट्रपति पर हत्या, जबरन विस्थापन, प्रताड़ना और बलात्कार के आरोप हैं. उन पर युद्ध अपराध के भी दो आरोप हैं.

दारफूर में मार्च 2003 से जुलाई 2008 तक सशस्त्र संघर्ष छिड़ा रहा. अल बशीर पर आरोप हैं कि उन्होंने संगठित हथियारबंद गुटों को खत्म करने के नाम पर बड़ी संख्या में आम लोगों को निशाना बनाया. सूडानीज लिबरेशन मूवमेंट और जस्टिस एंड इक्वलिटी मूवमेंट के खिलाफ सैन्य कार्रवाई के दौरान फूर, मसालित और जाघावा समुदायों के पूरे जातीय सफाये की कोशिशें की गईं. अल बशीर की सरकार को लगता था कि ये समुदाय विद्रोहियों के करीबी हैं. हिंसा में करीब 3,00,000 लोग मारे गए. पूर्व राष्ट्रपति ऐसे अपराधों से इनकार करते हैं.

राजधानी खारतुम में सेना के खिलाफ प्रदर्शनतस्वीर: Getty Images/AFP

लेकिन तख्तापलट के खिलाफ बड़ी संख्या में लोग कई जगहों पर प्रदर्शन भी कर रहे हैं. लोगों को लग रहा है कि सेना 30 साल पुराना वाकया दोहराना चाहती है. तब भी सेना ने तख्तापलट किया था, उसी से ओमर अल बशीर के शासन की शुरुआत हुई.

30 जून 1989 को सूडानी सेना के कर्नल ओमर अल बशीर ने कुछ सैन्य अधिकारियों के साथ मिल कर गठबंधन सरकार का तख्तापलट कर दिया. रक्तहीन तख्तापलट में प्रधानमंत्री सादिक अल-महदी को पद से हटा दिया गया. इसके बाद अल बशीर सैन्य सरकार के प्रमुख बन गए. उन्होंने देश की सभी राजनीतिक पार्टियों को भंग कर दिया और शरिया कानून लागू कर दिया.

आरोपों के मुताबिक ताकत हाथ में आने के बाद अल बशीर ने नए तख्तापलट का आरोप लगाते हुए कई बड़े सैन्य अधिकारियों को मौत की सजा दी. प्रमुख नेताओं और पत्रकारों को कैद किया. कुछ ही सालों के भीतर अल बशीर ने इतनी ताकत जुटा ली कि 1993 में उन्होंने खुद को देश का राष्ट्रपति घोषित कर दिया.

तीन दशक तक अल बशीर ने सत्ता बचाने के लिए सब कुछ कियातस्वीर: Reuters

30 साल बाद अल बशीर का तख्तापलट करने वाली सेना का कहना है कि उसका देश पर राज करने का कोई इरादा नहीं है. सैन्य काउंसिल की पॉलिटिकल कमेटी के चेयरमैन अल-अब्दीन के मुताबिक, "हम लोगों की मांग के रक्षक है. हम ताकत के भूखे नहीं हैं." सैन्य काउंसिल ने कहा है कि दो साल के भीतर नागरिक सरकार को सभी अधिकार दे दिए जाएंगे. सेना सरकार के काम में दखल नहीं देगी. लेकिन रक्षा और आतंरिक मंत्रालय सैन्य काउंसिल के अधीन रहेंगे.

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