ईरान ने एक नई बैलेस्टिक मिसाइल बना कर पश्चिमी देशों को सीधा जवाब दिया है जो उसके मिसाइल कार्यक्रम के आलोचक हैं. ईरान का कहना है कि वह बैलेस्टिक मिसाइलों पर कोई समझौता नहीं करेगा क्योंकि यह उसकी सुरक्षा के लिए जरूरी हैं.
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ईरान के विशेष सैन्य बल रेवोल्यूशनरी गार्ड्स की न्यूज एजेंसी सेबाह न्यूज ने खबर दी है कि जमीन से जमीन पर एक हजार किलोमीटर दूर तक मार करने वाली नई मिसाइल गुरुवार को पहली बार पेश की गई.
माना जा रहा है कि ईरान ने अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ बढ़ते तनाव के बीच अपनी सैन्य ताकत का प्रदर्शन करने की कोशिश की है. पश्चिमी देश ईरान से मांग कर रहे हैं कि वह मिसाइल कार्यक्रम को पूरी तरह बंद करे.
रेवोल्यूशनरी गार्ड के कमांडर मेजर जनरल मोहम्मद अली जाफरी और एयरोस्पेस कमांडर ब्रिगेडियर जनरल अमीराली हाजीजेदाह ने नई मिसाइल को सबके सामने पेश किया. हाजीजेदाह ने बताया कि नई मिसाइल को देजफुल का नाम दिया गया है और यह पुरानी जोलफागर मिसाइल की तुलना में 'दोगुनी विध्वंसक' ताकत रखती है. जोलफागर सिर्फ 700 किलोमीटर दूरी तक मार करने में सक्षम है.
फार्स न्यूज एजेंसी ने एक वीडियो जारी किया है जिसमें दोनों कमांडर मिसाइल का मुआयना कर रहे हैं. जाफरी ने कहा, "यह भूमिगत मिसाइल उत्पादन केंद्र पश्चिमी देशों को एक जवाब है जो सोचते हैं कि वे प्रतिबंधों और धमकियों के दम पर हमें हमारे लक्ष्य को पाने से रोक सकते हैं."
यह इशारा स्पष्ट तौर पर यूरोपीय संघ की तरफ है जिसने हाल में एक बयान जारी कर ईरान से अपना बैलेस्टिक मिसाइल कार्यक्रम रोकने को कहा था. ईरान की तरफ से 1,350 किलोमीटर तक मार करने वाली एक क्रूज मिसाइल के सफल परीक्षण के बाद यूरोपीय संघ का बयान आया था.
यूरोपीय शक्तियां 2015 में ईरान के साथ हुए उस समझौते को लेकर प्रतिबद्ध हैं, जिसमें परमाणु कार्यक्रम रोकने के बदले ईरान के ऊपर लगे प्रतिबंध हटाने की बात शामिल थी. हालांकि अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका इस समझौते से अलग हो गया. ट्रंप चाहते हैं कि ईरान पर सभी प्रतिबंध दोबारा लगाए जाएं. ईरानी बैलेस्टिक मिसाइल कार्यक्रम ने ट्रंप को ईरान की आलोचना करने की एक वजह दी है. हालांकि ईरानी परमाणु डील में बैलेस्टिक मिसाइल कार्यक्रम का जिक्र नहीं है.
ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध पांच वजहों से हो सकता है नाकाम
ईरान पर आर्थिक प्रतिबंधों का निशाना मुख्य रूप से तेल और गैस कंपनियां हैं. ईरान से परमाणु मुद्दे पर बातचीत में प्रवक्ता रहे सैयद हुसैन मुसावियन मानते हैं कि कम से कम 5 ऐसी वजहें हैं जो प्रतिबंधों को नाकाम कर सकती हैं.
भारी मात्रा में तेल का निर्यात
"अमेरिका ईरान से तेल निर्यात को शून्य करना चाहता है, यह अव्यवहारिक है क्योंकि हर दिन ईरान से होने वाले 25 लाख बैरल तेल के निर्यात की कहीं और से भरपाई मुमकिन नहीं है. सऊदी अरब ने इस कमी को पूरा करने की बात कही है लेकिन विशेषज्ञ मान रहे हैं कि सऊदी अरब और उसके सहयोगियों के पास इतनी क्षमता नहीं है. ईरान के तेल निर्यात में कमी के कारण इनकी कीमतें बढ़ेंगी और ईरान इस तरह से अपना नुकसान पूरा कर लेगा."
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चीन के साथ कारोबारी जंग
"चीन के साथ ट्रंप की कारोबारी जंग और रूस पर अमेरिकी आर्थिक प्रतिबंधों के कारण ये देश ईरान के मसले पर अमेरिका का साथ नहीं देंगे. यूरोपीय संघ को भी अमेरिका इस मामले में बड़ा सहयोगी नहीं मान सकेगा क्योकि संघ ईरान के साथ हुए परमाणु डील को अपनी विदेश नीति की उपलब्धि मानता है. साथ ही यूरोपीय संघ में इस तरह के प्रतिबंधों को खुद की पहचान और स्वतंत्रता के लिए खतरा मानने की धारणा मजबूत हो रही है."
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डॉलर का विकल्प
"अमेरिकी प्रतिबंधों ने वैश्विक आर्थिक तंत्र में ऐतिहासिक बदलाव की जमीन तैयार कर दी है. कई दशकों से अमेरिकी डॉलर अंतरराष्ट्रीय बाजार पर हावी रहा है. अमेरिका के ईरान के साथ परमाणु डील से बाहर आने के कारण रूस, चीन, भारत और तुर्की जैसे देशों को ईरान के साथ अपनी मुद्रा में व्यापार करने को बढ़ावा मिला है. अगर यूरोपीय संघ ने भी यूरो में कारोबार शुरू कर दिया तो दूसरे देश भी यूरो को अपना लेंगे."
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अमेरिका का एकतरफा रुख
"परमाणु डील पर अमेरिका के अलावा जिन 5 देशों ने दस्तखत किए वे उसे अमेरिका के एकपक्षीय रुख को चुनौती देने का एक जरिया भी मानते हैं. 6 देशों के साथ संयुक्त राष्ट्र समर्थित एक करार को अमेरिका ने एकतरफा कार्रवाई कर तोड़ दिया. अब वह इसे लागू करने वाले देशों को सजा देने की कोशिश में है. अमेरिका की हर कार्रवाई इस धारणा को मजबूत करेगी और उसका विरोध करने के लिए इस करार को बचाने की हर कोशिश होगी."
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क्षेत्रीय राजनीति और जमीनी सच्चाई
"जापान और यूरोपीय संघ डील के पक्ष में हैं. सऊदी अरब, इस्राएल, संयुक्त अरब अमीरात भले ही ट्रंप के फैसले के साथ हैं लेकिन कई देश और इलाके की जमीनी सच्चाई इसके खिलाफ है. तुर्की, ओमान और इराक जैसे देश करार चाहते हैं. सीरीया में रूसी सहयोग से असद गृहयुद्ध जीत गए हैं, अफगानिस्तान में अमेरिका नाकाम है और सऊदी अरब हूथी विद्रोहियों को नहीं हरा पाया है. यह सब ईरान की प्रतिबंधों से लड़ाई आसान कर देगा."
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ईरान में कट्टरपंथी मौलवियों के साथ साथ रेवोल्यूशनरी गार्ड भी परमाणु समझौते के आलोचकों में शामिल हैं.
उधर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने एक प्रस्ताव में 'नरम भाषा' इस्तेमाल करते हुए ईरान से ऐसी बैलेस्टिक मिसाइलें न बनाने को कहा है जो परमाणु हथियारों को ले जाने में सक्षम हों.
वहीं ईरान का कहना है कि बैलेस्टिक मिसाइल कार्यक्रम देश की रक्षा के जरिए जरूरी है और इन्हें 'परमाणु हथियार ले जाने के लिए नहीं तैयार किया गया' है. ईरान का कहना है कि उसने अपनी मिसाइलों की रेंज को दो हजार किलोमीटर तक सीमित कर दिया है. इस तरह इस्राएल, खाड़ी अरब देश और क्षेत्र में मौजूद अमेरिकी सैन्य ठिकाने उनकी पहुंच में होंगे. अक्टूबर 2018 को ईरान में जिहादियों को निशाना बनाने के लिए सीरिया में जोलफागर मिसाइल दागी थी.
एके/आरपी (एएफपी, रॉयटर्स)
ऐसे हुई ईरान में इस्लामिक क्रांति
शिया बहुल ईरान में कभी ऐसे शाह का शासन था जिन्हें जनता अमेरिका की कठपुतली मानने लगी. एक मौलवी ने इस आक्रोश का फायदा उठाया और 1979 में इस्लामिक क्रांति कर डाली.
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आक्रोश के बीज
ईरान की इस्लामी क्रांति के बीज कई मायनों में 1963 में पड़े. तत्कालीन शाह, मोहम्मद रजा शाह पहलवी ने श्वेत क्रांति का एलान किया. ये ऐसे आर्थिक और सामाजिक सुधार थे, जो ईरान के परंपरागत समाज को पश्चिमी मूल्यों की तरफ ले जाते थे. इनका विरोध होने लगा.
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शाह के शाही ख्बाव
1973 में अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दामों में भारी गिरावट आई. इससे ईरान की आमदनी चरमरा गई. लोग संकट में फंसे थे और शाह श्वेत क्रांति के सफल होने के ख्बावों में. इसी दौरान मौलवियों के एक धड़े ने श्वेत क्रांति को इस्लाम पर चोट करार दिया.
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लोग जुटते गए
सितंबर 1978 में ईरान में मोहम्मद रजा शाह पहलवी के खिलाफ प्रदर्शन भड़क उठे. धीरे धीरे मौलवियों के समूह ने प्रदर्शनों का नेतृत्व संभाल लिया. मौलवियों को फ्रांस में रह रहे अयातोल्लाह खोमैनी से निर्देश मिल रहे थे.
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अमेरिका की कठपुतली
लोगों में मोहम्मद रजा शाह की नीतियों के प्रति बहुत आक्रोश था. आलोचक कहते थे कि शाह अमेरिका के इशारों पर नाच रहे थे. लोग इससे खीझ गए थे. शाह ने आक्रोश को शांत करने के बजाए प्रदर्शकारियों को दबाने के लिए मार्शल लॉ लागू कर दिया.
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खूनी संघर्ष
जनवरी 1979 आते आते पूरे ईरान में हालात बिल्कुल गृह युद्ध जैसे हो गए. प्रदर्शनकारी, निर्वासन में रह रहे अयातोल्लाह खोमैनी की वापसी की मांग कर रहे थे. उस समय सेना उन पर गोलियां चला रही थी.
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भाग गए शाह
हालात बेकाबू हो गए. शाह को परिवार समेत ईरान से भागना पड़ा. लेकिन भागने से पहले शाह विपक्षी नेता शापोर बख्तियार को अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त कर गए.
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खोमैनी की वापसी
शापोर बख्तियार ने अयातोल्ला खोमैनी को ईरान वापस लौटने की इजाजत दे दी. लेकिन उन्होंने यह शर्त रखी कि प्रधानमंत्री वही रहेंगे.
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लौट आए खोमैनी
बख्तियार से ग्रीन सिग्नल मिलते ही अयातोल्लाह खोमैनी ने 14 साल बाद फ्रांस के निर्वासन से देश वापस लौटने का एलान किया. यह तस्वीर 11 फरवरी 1979 को छपे कायहान अखबार की है.
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तेहरान में स्वागत
12 फरवरी 1979 को खोमैनी एयर फ्रांस की फ्लाइट में सवार होकर पेरिस से तेहरान के लिए निकले. विमान जब तेहरान में लैंड हुआ तो क्रांतिकारी धड़े के नेताओं ने खोमैनी का जोरदार स्वागत किया.
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खोमैनी का सीधा दखल
तेहरान में लोगों को संबोधित करते हुए खोमैनी ने कहा, "मैं सरकार का गठन करुंगा." तेहरान के बेहशत ए जाहरा में उनका भाषण को सुनने के लिए एक लाख से ज्यादा लोग जमा हुए थे.
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समानान्तर सत्ता
खोमैनी ने लोगों से बख्तियार सरकार के खिलाफ प्रदर्शन जारी रखने की अपील की. इसी बीच 16 फरवरी को खोमैनी ने मेहदी बाजारगान को अंतरिम सरकार का नया प्रधानमंत्री घोषित कर दिया.
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प्रदर्शन का इस्लामीकरण
ईरान में दो प्रधानमंत्री हो गए. एक बख्तियार और दूसरे बाजारगान. बाजारगान के पीछे खोमैनी के साथ साथ बड़ा जन समर्थन था. धीरे धीरे खोमैनी ने प्रदर्शन को धार्मिक रंग दे दिया.
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सेना में फूट
इसी बीच खबर आई कि ईरान की वायुसेना खोमैनी के समर्थन में उतर गई है. 19 फरवरी 1979 को कायहान अखबार की इस तस्वीर में वायु सैनिक खोमैनी को सलाम करते दिख रहे हैं.
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आपस में भिड़े सैनिक
20 फरवरी को तेहरान में एक निर्णायक घटना हुई. शाह के प्रति वफादारी दिखाने वाले इंपीरियल गार्ड के सैनिकों ने एयरफोर्स डिफेंस ट्रूप्स पर हमला कर दिया.
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ढह गया पुराना ढांचा
इसके बाद मार्च तक हिंसक झड़पें चलती रही. धीरे धीरे सेना भी हथियारबंद विद्रोहियों के साथ इमाम खोमैनी के समर्थन में झुकती चली गई.
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इस्लामिक ईरान के सर्वेसर्वा
अप्रैल 1979 में एक जनमत संग्रह के बाद इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान का एलान किया गया. सरकार चुनी गई और खोमैनी को देश का सर्वोच्च धार्मिक नेता घोषित किया गया. खोमैनी के उत्तराधिकारी अयातोल्लाह खमेनेई आज भी इसी भूमिका में हर सरकार से ऊपर हैं.