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"देखो, विदेशी आया कोरोना लाया"

शिवप्रसाद जोशी
२७ अगस्त २०२०

भारतीय लोग "अतिथि देवो भवः" की परंपरा में गर्व महसूस करते हैं लेकिन कोरोना काल में अतिथि में भगवान नहीं यमराज दिखने लगे. तबलीगी सदस्यों समेत कई विदेशी नागरिकों के साथ हुए अपमानजनक व्यवहार पर अब अदालतें फटकार लगा रही हैं.

Indien Coronavirus-Ausbruch
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/H. Bhatt

सैरसपाटे, योग-अध्यात्म और धार्मिक यात्राओं के लिए भारत आने वाले विदेशी पर्यटकों के प्रति संवेदनहीनता की शिकायतें अक्सर मिलती हैं और कई राज्यों में उन्हें परेशान करने के लिए मामले सामने आते रहे हैं लेकिन तबलीगी जमात के एक कार्यक्रम में शिरकत करने आए विदेशी प्रतिनिधियों के पीछे सरकारी मशीनरी जिस तरह से पड़ी और उनपर कानूनी कार्रवाई तक होने लगी, यह एक नई और चिंताजनक परिघटना कही जा सकती है. तबलीगी प्रतिनिधियों के खिलाफ एफआईआर को खारिज करते हुए हाईकोर्ट के फैसले की बुनियाद में यही चिंता थी.

इस हफ्ते बंबई हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने साफ साफ कहा कि नागरिक संशोधन एक्ट (सीएए) 2019 और एनआरसी के खिलाफ आक्रोशित और आंदोलित मुसलमानों को अप्रत्यक्ष चेतावनी देने के लिए बड़े पैमाने पर विदेशी नागरिकों को अपराधियों के रूप में फंसाया गया और एक लिहाज से उन्हें ‘बलि का बकरा' बनाया गया. हालांकि ये टिप्पणियां दो जजों की खंडपीठ में से एक ही जज की ओर से आई हैं.

महामारी जैसे अभूतपूर्व संकट के बीच भी हरकत में आने से न चूकी असहिष्णुता से मन में सवाल उठता है कि आपसी भाईचारे के बहुलतावादी और लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर आधारित संवैधानिक व्यवस्था वाले धर्मनिरपेक्ष देश में ऐसा क्यों होने लगा? सब जानते हैं कि सम्मेलन रातोंरात नहीं जुटा. बाकायदा एक जगह और लंबी तैयारी थी, दुनिया के विभिन्न देशों से प्रतिनिधि वैध तरीके से वीजा सहित पहुंचे थे. सरकार के पास सम्मेलन की सूचना पहले से थी. तबलीगी सदस्यों पर कार्रवाई और मुख्यधारा के मीडिया में उनके खिलाफ बनाए गए माहौल के बीच जमाती शब्द को किसी अशोभनीय या खराब चीज की तरह इस्तेमाल किया गया. सोशल मीडिया नेटवर्क पर अफवाहें, सनसनी और फेक न्यूज फैलायी गईं. जहरीले कारखाने ज्यादा खतरनाक संक्रमण वाले विषाणु फैलाने पर आमादा थे.

हर वायरस खतरनाक नहीं होता

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इतिहास का संदर्भ देते हुए कोर्ट ने याद दिलाया कि तबलीगी जमात कोई सेक्ट नहीं है, वह एक सुधार आंदोलन है जिसकी स्थापना मौलाना मुहम्मद इलियास ने 1927 में दिल्ली में की थी और यह आंदोलन गांवों और किसानों के बीच लोकप्रिय है. दुनिया भर के मुसलमान इससे जुड़े हैं और दिल्ली के निजामुद्दीन में होने वाली मरकज में बड़े पैमाने पर तीर्थ की तरह जुटते हैं.

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक महाराष्ट्र में 29 विदेशी नागरिकों और छह भारतीयों के खिलाफ एफआईआर रद्द करने पर दोनों जजों की खंडपीठ एकमत थी. लेकिन जस्टिस नलवड़े के लिखित आदेश में आए ऑब्जर्वेशन से नाइत्तफाकी रखते हुए जस्टिस सेवलेकर ने कहा कि इस बारे में वे अलग से जजमेंट लिखेंगे.

छह महीने पहले 35 देशों के करीब साढ़े तीन हजार नागरिकों को गिरफ्तार किया गया था और देश के विभिन्न हिस्सों में सरकारी और निजी ठिकानों में हिरासत में रखा गया था. आइवरी कोस्ट, तंजानिया, दिजिबोती, घाना, लिथुआनिया, किर्गिस्तान, यूक्रेन, इंडोनेशिया और फिलीपींस आदि अफ्रीकी, मध्य एशियाई, दक्षिणपूर्वी और पूर्वी एशियाई देशों से मुस्लिम प्रतिनिधि सम्मेलन में भाग लेने आए थे. बंबई हाईकोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीने के अधिकार के अलावा अतिथि देवो भवः की मान्यता की याद दिलाते हुए पूछा कि क्या इस मामले में हम अपनी महान परंपरा और संस्कृति का निर्वहन कर पाए. 

आधार भले ही अलग थे लेकिन दो अन्य हाईकोर्टो ने हाल में कमोबेश ऐसे ही निर्णय सुनाए थे. कर्नाटक हाईकोर्ट में विदेशी तीर्थयात्रियों को इस आशय के शपथपत्रों पर हस्ताक्षर करने पड़े कि उन्होंने वीजा शर्तों का उल्लंघन किया है और दस साल तक वे भारत नहीं आएंगें और मुआवजा भी भरा. लेकिन अपने फैसले में कोर्ट ने विदेशी तीर्थयात्रियों के प्रति सहानुभूति बरतने की ओर ध्यान दिलाया. कोर्ट का कहना था कि कोविड महामारी हमें एक दूसरे का ख्याल रखने का सबक सिखाती है, न कि कानून के जखीरे निकालने का. मद्रास हाईकोर्ट के जज जीआर स्वानीनाथन ने कहा कि विदेशी तीर्थयात्रियों की हिरासत और उन पर मुकदमे करना बेसबब, बेजा और न्यायविरुद्ध है.  उनका कहना था कि यह हालात बेशक अनिश्चित हैं लेकिन अधिकार निश्चित हैं.

तबलीगी सदस्यों ने जो यातना और अपमान बर्दाश्त किया, उसे वे ही महसूस कर सकते हैं. हो सकता है कि अदालती टिप्पणियां नाइंसाफी पर मरहम की तरह काम करें. इस दौरान अतिवादी और हिंसक व्यवहार के शिकार अन्य विदेशी टूरिस्ट भी हुए. मीडिया खबरें ही बताती हैं कि शुरुआती फरवरी में देश घूमने के लिए आ चुके बहुत से टूरिस्टों को भी बुरे अनुभवों से गुजरना पड़ा.

स्थानीय लोग अपरिचितों से ही नहीं, पड़ोसियों और प्रवासियों और विदेश से आने वाले भारतवंशियों के प्रति भी सहृदय नहीं रह पाए. किराएदारों से मकान खाली कराए गए, धमकाया गया, विदेशियों को देखते ही उन्हें लानतें भेजी गईं और कॉलोनियों अपार्टमेंटो में और तो छोड़िए दूसरों की जान बचाने वाले डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों के प्रति भी नरमी नही बरती गई. लगता था कि एक अजीब विभाजन और बेरहमी समाज में पसर गई है.

यूरोपीय देशों खासकर इटली और फ्रांस आदि देशों से आए पर्यटकों को लेकर भय ज्यादा इसलिए भी बना क्योंकि सबसे शुरुआती मामलों में 15 इतालवी पर्यटक भी संक्रमित पाए गए थे. क्या महामारी के भय से उत्पन्न ये स्वाभाविक मनुष्योचित्त प्रतिक्रिया थी या अविश्वास और दूरी से जुड़े ये तात्कालिक सामाजिक परिवर्तन थे या इन्हें इस देश में अब लंबे समय तक रहना था क्योंकि इस भय की राजनीति भी समांतर रूप से सक्रिय थी - ये बहस भी जारी है. कमोबेश ऐसा ही रूखा व्यवहार अन्य देशों में भी विदेशी नागरिकों को झेलना पड़ा है. सरकार ने भी लोगों को समय पर जागरूक करने में कोताही की.

एक सरकारी आंकड़े के मुताबिक भारत ने 2019 में एक करोड़ से अधिक विदेशी पर्यटक आए थे. इस दौरान 30 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा देश में  आई. इसी साल  मार्च में भारतीय टूर ऑपरेटर संघ (आईएटीओ) के हवाले से ऐसी खबरें प्रकाशित हुई हैं, जिनमें पर्यटन मंत्रालय से देश भर में कुछ होटलों में विदेशी नागरिकों को ठहराने में आनाकानी की घटनाओं का संज्ञान लेने की अपील की गई थी. कुछ होटल इटली, दक्षिण कोरिया, ईरान और जापान से आए टूरिस्टों के प्रति ज्यादा सख्ती दिखा रहे थे.

संघ ने उचित वीजा होने के बावजूद और भारत में प्रतिबंध आदि लागू होने से पहले आ चुके पर्यटकों को होटलों में प्रवेश न देने को गलत बताया. खबरों के मुताबिक केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित कराने को कह दिया है कि विदेशी टूरिस्टों को अनावश्यक रूप से परेशान न किया जाए. 24 घंटे का एक कंट्रोल रूम भी बनाने की मांग सरकार से की गई है, जो आपात स्थिति में विदेशियों की मदद के काम आए. पर्यटन क्षेत्र से जुड़े जानकारों और पेशेवरों का कहना है कि देशवासियों की सुरक्षा सर्वोपरि है लेकिन आगन्तुक मेहमानों के प्रति भी संवेदनशीलता बरतनी चाहिए क्योंकि इसका संबंध देश की छवि ही नहीं, अर्थव्यवस्था से भी है. प्रशासन को भी अपनी कार्रवाईयों में सबक लेने की बहुत जरूरत है.

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