1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

देर आयद, पर दुरुस्त आयद नहीं

१ मार्च २०११

डॉक्टरेट थीसिस में नकल के मामले में दो हफ्ते की हलचल के बाद रक्षा मंत्री कार्ल थेओडोर त्सू गुटेनबर्ग ने इस्तीफा दे दिया है. डॉएचे वेले की बेटिना मार्क्स का कहना है कि बेहद जरूरी था यह इस्तीफा.

सीढ़ी पर गुटेनबर्गतस्वीर: dapd

आखिरकार ! जर्मन रक्षा मंत्री कार्ल थेओडोर त्सू गुटेनबर्ग ने अपने डॉक्टरेट थीसिस कांड के परिणामों को स्वीकार करते हुए इस्तीफा दे दिया है. पिछले दो हफ्तों से उनके चरित्र, उनकी विश्वसनीयता और इस महत्वपूर्ण पद पर उनके बने रहने के औचित्य पर बहस लगातार तेज होती जा रही थी. अब उन्होंने इस शर्मनाक अध्याय का पटाक्षेप किया है.

मीडिया में उन पर शुरू हुई हलचल की वजह से उन्हें जाना पड़ा, और साथ ही वैज्ञानिकों का विरोध, जो उन्हें धोखेबाज कह रहे थे, और आखिरकार अपनी पांतों में लगातार बढ़ती हुई आलोचना, जिनके चलते उनके सामने कोई दूसरा चारा नहीं रह गया था.

जर्मनी के लिए ऐसे एक रक्षा मंत्री को ढोना संभव नहीं है, जिसे खुले आम झूठा और धोखेबाज कहा जाए. अपने को "शिक्षा का गणराज्य" कहने वाले देश को ऐसा एक नेता मंजूर नहीं हो सकता, समूचा विज्ञान जगत जिसके खिलाफ हो गया हो.

लेकिन इस्तीफा काफी देर से आया.

गुटेनबर्ग को दो हफ्ता पहले ही इस्तीफा देना चाहिए था, जब यह बात साफ हो गई थी कि उन्होंने थीसिस में नकल की थी और गुपचुप तरीके से डाक्टर की उपाधि ले ली थी. अगर उन्होंने तुरंत ऐसा किया होता, तो वे जर्मनी की राजनीतिक संस्कृति और कुल मिलाकर देश को नुकसान पहुंचाने से बच गए होते, जैसा कि उन्होंने मंत्रीपद की शपथ में कहा था. अगर उन्होंने सच्चे अफसोस के साथ शर्म का इजहार किया होता, तो सत्ता का मार्ग उनके लिए खुला रहता. अब उनके लिए वापसी संभव नहीं है.

जर्मन राजनीति के सुपरस्टार, जो लोगों को, खासकर युवाओं को सम्मोहित करते थे - खुद उन्होंने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी. बेमिसाल घमंड से उन्होंने अपने पतन का रास्ता खुद तैयार किया. उन्होंने खुद इसकी इजाजत दी कि नित नए तथ्यों के साथ व्यक्ति के रूप में उनकी और उनके पद की गरिमा को नुकसान पहुंचे. उन्हें देखना पड़ा कि किस तरह उनके अतीत की चीड़फाड़ की जा रही है, कितनी बातें गलत साबित की जा रही हैं. एक प्रतिभाशाली युवा नेता आखिरकार खोखला बन कर रह गए.

लेकिन इस प्रकरण से सिर्फ गुटेनबर्ग को ही नुकसान नहीं पहुंचा है. चांसलर की छवि को भी गहरा धक्का पहुंचा है, जो उन्हें हर कीमत पर पद पर बनाए रखना चाहते थे. अपने कदमों के जरिये चांसलर ने विश्वसनीयता और ईमानदारी जैसे मूल्यों को पैरों तले रौंदा है. अच्छे काम को इनाम मिलना चाहिए - अपनी सरकार के इस सिद्धांत का उन्होंने उल्लंघन किया. इसके जरिये उन्होंने उन सभी लोगों को चोट पहुंचाई, जो विज्ञान व अन्य क्षेत्रों में ईमानदारी से काम करते हैं.

सांसदों को भी, जो सरकार का समर्थन करते रहे, और समर्थन न किए जाने लायक मंत्री का साथ देते हुए अब मजाक के पात्र बन चुके हैं. जर्मनी की राजनीति के लिए ये तकलीफ और शर्म के दो हफ्ते थे. इस्तीफा देते हुए भी कार्ल थेओडोर त्सू गुटेनबर्ग ने आत्मालोचना और अफसोस के शब्द नहीं कहे. इसलिए इस कदम का सम्मान भी नहीं किया जा सकता. अफसोस कि उन्हें पिछले दशकों की जर्मन राजनीति की सबसे बड़ी निराशा के प्रतीक के रूप में देखना पड़ेगा.

लेखक: बेटिना मार्क्स (उ भ)

संपादन: एस गौड़

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें