गहन चिंतन-मनन और आपसी बहस मुबाहिसे के बाद आखिरकार यूरोपीय संघ ने एक क्षेत्रीय संगठन के तौर पर इंडो-पैसिफिक पर अपना रुख और रणनीति उजागर कर दी.
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19 अप्रैल को औपचारिक तौर पर लांच की गयी इस रणनीति ने सामरिक और कूटनीतिक स्तर पर कई महत्वपूर्ण बातों को उजागर किया है जिनका सीधा और दूरगामी नाता इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में यूरोपीय संघ और उसके सदस्य देशों की भूमिकाओं के साथ है और आगे भी रहेगा. आसियान (एसोसिएशन आफ साउथ ईस्ट एशियन नेशंस) के बाद यूरोपीय संघ मात्र दूसरा क्षेत्रीय संगठन है जिसने इंडो-पैसिफिक को अपनी संस्तुति दी है. यूरोपीय संघ की इंडो-पैसिफिक रणनीति इस लिहाज से महत्वपूर्ण है कि हिंद-प्रशांत महासागर से कहीं दूर बसे यूरोपीय संघ के सभी देशों के लिए अब तक इंडो-पैसिफिक दूर की कौड़ी ही था. यही वजह है कि जिस इंडो-पैसिफिक पर अमेरिका, जापान, भारत, आस्ट्रेलिया, और आसियान के सदस्य देश पिछले चार सालों से काम कर रहे थे उस पर अब जाकर यूरोपीय संघ ने अपना रुख साफ किया है और इंडो-पैसिफिक में नियम-परक व्यवस्था के सुचारु संचालन को सुनिश्चित करने में अपनी भूमिका निभाने की घोषणा की है.
यूरोपीय संघ के इस निर्णय से पहले इस संगठन के अगुआ देशों- जर्मनी, फ्रांस, और नीदरलैंड ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी अपनी नीतियों की घोषणा कर दी थी. गौरतलब है कि ये तीनों ही देश इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में आर्थिक और राजनयिक स्तर पर खासा दखल रखते हैं. जहां तक फ्रांस का सवाल है तो वह इंडो-पैसिफिक का हिस्सा भी है क्योंकि फ्रांस के अधीन कई क्षेत्र हिंद महासागर और इंडो-पैसिफिक के अंतर्गत आते हैं. इंडो-पैसिफिक की तेजी से बदलती सामरिक व्यवस्था और संरचना फ्रांस के लिए सीधे और तात्कालिक महत्व की है.
फ्रांस से उलट, जर्मनी के लिए यह क्षेत्र रणनीतिक से ज्यादा बड़े आर्थिक सहयोग और निवेश का क्षेत्र रहा है. आसियान क्षेत्र में जर्मनी सबसे बड़े निवेशकों में आता है. मलयेशिया जैसे आर्थिक तौर पर सम्पन्न और वाणिज्य के मामले में अगड़े दक्षिणपूर्व एशियाई देशों के लिए जर्मन निवेश और व्यापार सहयोग के अहम आयाम रहे हैं. नीदरलैंड का भी इस क्षेत्र से औपनिवेशिक काल से ही राबता रहा है. आज भी दक्षिणपूर्व एशिया में इसकी अच्छी पहुंच है. साफ है कि इन तीनों देशों का यूरोपीय संघ में इंडो-पैसिफिक को लेकर आम-राय बनाने में योगदान है.
यह कहना सही नहीं होगा कि इस स्ट्रैटिजी से पहले यूरोपीय संघ ने कुछ किया ही नहीं था. यूरोपीय संघ पिछले कुछ सालों से इंडो-पैसिफिक की सामरिक और आर्थिक-वाणिज्यिक संरचना में बदलाव को गहनता से समझने की कोशिश कर रहा है, और धीरे-धीरे ही सही एक के बाद एक महत्वपूर्ण कदम उसने उठाए हैं. मिसाल के तौर पर 2018 में यूरोपीय संघ की कनेक्टिविटी स्ट्रैटिजी कई मायनों में चीन की बेल्ट ऐंड रोड परियोजना का ही जवाब थी जिसके तहत उसने चीन को नियम-बद्ध कनेक्टिविटी और निवेश-आचरण की ओर ध्यान दिलाया. चीनी बेल्ट एंड रोड परियोजना से हलकान भारत और जापान जैसे देशों ने इसकी जमकर सराहना भी की.
इन देशों के बीच छिड़ा हुआ है सीमा विवाद
एक तरफ पाकिस्तान तो दूसरी ओर चीन - दशकों से भारत सीमा विवाद में उलझा हुआ है. भारत की ही तरह दुनिया में और भी कई देश सीमा विवाद का सामना कर रहे हैं.
अर्मेनिया और अजरबाइजान
इन दोनों देशों के बीच नागोर्नो काराबाख नाम के इलाके को ले कर विवाद है. यह इलाका यूं तो अजरबाइजान की सीमा में आता है और अंतरराष्ट्रीय तौर पर इसे अजरबाइजान का हिस्सा माना जाता है. लेकिन अर्मेनियाई बहुमत वाले इस इलाके में 1988 से स्वतंत्र शासन है लेकिन इसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता नहीं मिली है.
तुर्की और ग्रीस
इन दोनों देशों के बीच तनाव की वजह जमीन नहीं, बल्कि पानी है. ग्रीस और तुर्की के बीच भूमध्यसागर है. माना जाता है कि इस सागर के पूर्वी हिस्से में दो अरब बैरल तेल और चार हजार अरब क्यूबिक मीटर गैस के भंडार हैं. दोनों देश इन पर अपना अधिकार चाहते हैं.
इस्राएल और सीरिया
1948 में इस्राएल के गठन के बाद से ही इन दोनों देशों में तनाव बना हुआ है. सीमा विवाद के चलते ये दोनों देश तीन बार एक दूसरे के साथ युद्ध लड़ चुके हैं. सीरिया ने आज तक इस्राएल को देश के रूप में स्वीकारा ही नहीं है.
चीन और जापान
इन दोनों देशों के बीच भी सागर है जहां कुछ ऐसे द्वीप हैं जिन पर कोई आबादी नहीं रहती है. पूर्वी चीन सागर में मौजूद सेनकाकू द्वीप समूह, दियाऊ द्वीप समूह और तियायुताई द्वीप समूह दोनों देशों के बीच विवाद की वजह हैं. दोनों देश इन पर अपना अधिकार जताते हैं.
तस्वीर: DW
रूस और यूक्रेन
वैसे तो इन दोनों देशों का विवाद सौ साल से भी पुराना है लेकिन 2014 से यह सीमा विवाद काफी बढ़ गया है. यूक्रेन सीमा पर दीवार बना रहा है ताकि रूस के साथ आवाजाही पूरी तरह नियंत्रित की जा सके. इस दीवार के 2025 में पूरा होने की उम्मीद है.
चीन और भूटान
भूटान की सीमा तिब्बत से लगती थी लेकिन 1950 के दशक के अंत में जब चीन ने इसे अपना हिस्सा घोषित कर लिया, तब से चीन भूटान का पड़ोसी देश बन गया. चीन भूटान के 764 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र पर अपना अधिकार बताता है.
चीन और भारत
भारत और चीन के बीच 3,440 किलोमीटर लंबी सीमा है जिस पर कई झीलें और पहाड़ हैं. इस वजह से नियंत्रण रेखा को ठीक से परिभाषित करना भी मुश्किल है. हाल में गलवान घाटी में दोनों देशों के बीच जो झड़प हुई वह पिछले कई दशकों में इस सीमा विवाद का सबसे बुरा रूप रहा.
पाकिस्तान और भारत
1947 में आजादी के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर विवाद की वजह बना हुआ है. इतने साल बीत जाते के बाद भी दोनों देश इस मसले को सुलझा नहीं पाए हैं. भारत इसे द्विपक्षीय मामला बताता है और वह किसी भी तरह का अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप नहीं चाहता है.
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इंडो-पैसिफिक क्षेत्रीय व्यवस्था के समर्थकों के लिए भी यह बड़ी बात है कि दुनिया के सबसे सफल क्षेत्रीय संगठन - यूरोपीय संघ ने इंडो-पैसिफिक को अपनी नीतियों में बड़ा स्थान दिया है. यूरोपीय संघ के इंडो-पैसिफिक से जुड़े दस्तावेजों के अनुसार अप्रैल 2021 में लॉन्च इस नई रणनीति से नियमबद्ध आचरण व्यवस्था ही नहीं, लोकतंत्र, मानवाधिकारों की रक्षा और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के पालन को सुनिश्चित कराने का भी यूरोपीय संघ प्रयास करेगा. साफ है, यूरोपीय संघ का दखल इंडो-पैसिफिक व्यवस्था में एक बड़ा नॉर्मटिव आयाम जोड़ता है.
अमेरिका और चीन की बढ़ती प्रतिद्वंदिता के बीच इस क्षेत्र के तमाम देशों के बीच यह आशंका घर करती जा रही थी कि दुनिया के इन दो सबसे ताकतवर देशों के पाटों के बीच शांति-व्यवस्था के सुरक्षित रहने के आसार क्षीण हो रहे हैं. शीत युद्ध के तनाव भरे दिनों की ओर वापस जाने की बात भी इंडो-पैसिफिक की मझोली और छोटी ताकतों के लिए एक बुरे सपने जैसी है. यूरोपीय संघ और आसियान के इंडो-पैसिफिक में जुड़ने और जिम्मेदार भूमिका निभाने के आह्वाहन से इंडो-पैसिफिक के शक्ति प्रदर्शन और सैन्य जोर आजमाइश का अखाड़ा बनने के आसार निश्चित रूप से कम हुए हैं.
ऐसा नहीं है कि यूरोपीय संघ या चीन और अमेरिका की तनातनी से परेशान नहीं हैं. लेकिन आसियान की तर्ज पर ही यूरोपीय संघ ने भी इस चुनौती से भागने या ढुलमुल रवैया अपनाने के बजाय यही निर्णय लिया कि इंडो-पैसिफिक में उनकी भूमिका क्षेत्र और इसके देशों के साथ साथ उनके अपने हितों को भी साधने में मदद करेगी.
कैसे शुरू हुआ ताइवान और चीन के बीच झगड़ा
1969 में साम्यवादी चीन को चीन के रूप में मान्यता मिली. तब से ताइवान को चीन अपनी विद्रोही प्रांत मानता है. एक नजर डालते हैं दोनों देशों के उलझे इतिहास पर.
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जापान से मुक्ति के बाद रक्तपात
1945 में दूसरे विश्वयुद्ध के खत्म होने के साथ ही जापानी सेना चीन से हट गई. चीन की सत्ता के लिए कम्युनिस्ट पार्टी के नेता माओ त्सेतुंग और राष्ट्रवादी नेता चियांग काई-शेक के बीच मतभेद हुए. गृहयुद्ध शुरू हो गया. राष्ट्रवादियों को हारकर पास के द्वीप ताइवान में जाना पड़ा. चियांग ने नारा दिया, हम ताइवान को "आजाद" कर रहे हैं और मुख्य भूमि चीन को भी "आजाद" कराएंगे.
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चीन की मजबूरी
1949 में ताइवान के स्थापना के एलान के बाद भी चीन और ताइवान का संघर्ष जारी रहा. चीन ने ताइवान को चेतावनी दी कि वह "साम्राज्यवादी अमेरिका" से दूर रहे. चीनी नौसेना उस वक्त इतनी ताकतवर नहीं थी कि समंदर पार कर ताइवान पहुंच सके. लेकिन ताइवान और चीन के बीच गोली बारी लगी रहती थी.
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यूएन में ताइपे की जगह बीजिंग
1971 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने चीन के आधिकारिक प्रतिनिधि के रूप में सिर्फ पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को चुना. इसके साथ ही रिपब्लिक ऑफ चाइना कहे जाने वाले ताइवान को यूएन से विदा होना पड़ा. ताइवान के तत्कालीन विदेश मंत्री और यूएन दूत के चेहरे पर इसकी निराशा साफ झलकी.
तस्वीर: Imago/ZUMA/Keystone
नई ताइवान नीति
एक जनवरी 1979 को चीन ने ताइवान को पांचवा और आखिरी पत्र भेजा. उस पत्र में चीन के सुधारवादी शासक डेंग शिआयोपिंग ने सैन्य गतिविधियां बंद करने और आपसी बातचीत को बढ़ावा देने व शांतिपूर्ण एकीकरण की पेशकश की.
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"वन चाइना पॉलिसी"
एक जनवरी 1979 के दिन एक बड़ा बदलाव हुआ. उस दिन अमेरिका और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के बीच आपसी कूटनीतिक रिश्ते शुरू हुए. जिमी कार्टर के नेतृत्व में अमेरिका ने स्वीकार किया कि बीजिंग में ही चीन की वैधानिक सरकार है. ताइवान में मौजूद अमेरिकी दूतावास को कल्चरल इंस्टीट्यूट में तब्दील कर दिया गया.
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"एक चीन, दो सिस्टम"
अमेरिकी राष्ट्रपति कार्टर के साथ बातचीत में डेंग शिआयोपिंग ने "एक देश, दो सिस्टम" का सिद्धांत पेश किया. इसके तहत एकीकरण के दौरान ताइवान के सोशल सिस्टम की रक्षा का वादा किया गया. लेकिन ताइवान के तत्कालीन राष्ट्रपति चियांग चिंग-कुओ ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. 1987 में ताइवानी राष्ट्रपति ने एक नया सिद्धांत पेश किया, जिसमें कहा गया, "बेहतर सिस्टम के लिए एक चीन."
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स्वतंत्रता के लिए आंदोलन
1986 में ताइवान में पहले विपक्षी पार्टी, डेमोक्रैटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (डीपीपी) की स्थापना हुई. 1991 के चुनावों में इस पार्टी ने ताइवान की आजादी को अपने संविधान का हिस्सा बनाया. पार्टी संविधान के मुताबिक, ताइवान संप्रभु है और पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का हिस्सा नहीं है.
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एक चीन का पेंच
1992 में हॉन्ग कॉन्ग में बीजिंग और ताइपे के प्रतिनिधियों की अनऔपचारिक बैठक हुई. दोनों पक्ष आपसी संबंध बहाल करने और एक चीन पर सहमत हुए. इसे 1992 की सहमति भी कहा जाता है. लेकिन "एक चीन" कैसा हो, इसे लेकर दोनों पक्षों के मतभेद साफ दिखे.
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डीपीपी का सत्ता में आना
सन 2000 में पहली बार विपक्षी पार्टी डीपीपी के नेता चेन शुई-बियान ने राष्ट्रपति चुनाव जीता. मुख्य चीन से कोई संबंध न रखने वाले इस ताइवान नेता ने "एक देश दोनों तरफ" का नारा दिया. कहा कि ताइवान का चीन से कोई लेना देना नहीं है. चीन इससे भड़क उठा.
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"एक चीन के कई अर्थ"
चुनाव में हार के बाद ताइवान की केमटी पार्टी ने अपने संविधान में "1992 की सहमति" के शब्द बदले. पार्टी कहने लगी, "एक चीन, कई अर्थ." अब 1992 के समझौते को ताइवान में आधिकारिक नहीं माना जाता है.
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पहली आधिकारिक मुलाकात
चीन 1992 की सहमति को ताइवान से रिश्तों का आधार मानता है. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद 2005 में पहली बार ताइवान की केएमटी पार्टी और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के शीर्ष नेताओं की मुलाकात हुई. चीनी राष्ट्रपति हू जिन्ताओ (दाएं) और लियान झान ने 1992 की सहमति और एक चीन नीति पर विश्वास जताया.
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"दिशा सही है"
ताइवान में 2008 के चुनावों में मा यिंग-जेऊ के नेतृत्व में केएमटी की जीत हुई. 2009 में डॉयचे वेले को दिए एक इंटरव्यू में मा ने कहा कि ताइवान जलडमरूमध्य" शांति और सुरक्षित इलाका" बना रहना चाहिए. उन्होंने कहा, "हम इस लक्ष्य के काफी करीब हैं. मूलभूत रूप से हमारी दिशा सही है."
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मा और शी की मुलाकात
नवंबर 2015 में ताइवानी नेता मा और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात हुई. दोनों के कोट पर किसी तरह का राष्ट्रीय प्रतीक नहीं लगा था. आधिकारिक रूप से इसे "ताइवान जलडमरूमध्य के अगल बगल के नेताओं की बातचीत" कहा गया. प्रेस कॉन्फ्रेंस में मा ने "दो चीन" या "एक चीन और एक ताइवान" का जिक्र नहीं किया.
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आजादी की सुगबुगाहट
2016 में डीपीपी ने चुनाव जीता और तसाई इंग-वेन ताइवान की राष्ट्रपति बनीं. उनके सत्ता में आने के बाद आजादी का आंदोलन रफ्तार पकड़ रहा है. तसाई 1992 की सहमति के अस्तित्व को खारिज करती हैं. तसाई के मुताबिक, "ताइवान के राजनीतिक और सामाजिक विकास में दखल देने चीनी की कोशिश" उनके देश के लिए सबसे बड़ी बाधा है. (रिपोर्ट: फान वांग/ओएसजे)
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इंडो-पैसिफिक की इस नीति के पदार्पण से ठीक पहले चले घटनाक्रम का भी इसमें महत्वपूर्ण स्थान है. अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प के कार्यकाल के दौरान ऐसा प्रतीत हो रहा था कि अमेरिका और यूरोपीय संघ की चीन को लेकर नीतियों में दूरियां बढ़ रही हैं. माना जा रहा था कि जो बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका-चीन सम्बंधों में व्यापक बदलाव आएगा और दोनों देश फिर से अपने सम्बंधों के अच्छे दिनों की ओर लौटेंगे. तमाम अटकलों को फिलहाल मुंह चिढ़ाते हुए जो बाइडेन प्रशासन ने चीन को लेकर ट्रम्प काल जैसा ही आक्रामक रूख अपना रखा है. इस बात से यूरोपीय संघ को भी अहसास हुआ है कि चीन को लेकर अमेरिका की नीतियों पर उसे भी पुनर्विचार करना चाहिए.
इसके साथ ही यूरोपीय संघ के हाल में चीन के साथ दांत खट्टे करने वाली घटनाओं ने यूरोपीय संघ को इस जमीनी सच्चाई से भी रूबरू कर दिया कि आर्थिक और सामरिक दोनों ही क्षेत्रों में तेजी से उभर रहे चीन पर नियमबद्ध अंतरराष्ट्रीय उदारवादी व्यवस्था के मूलभूत पहलुओं सम्बंधी दबाव बनाना जरूरी हो गया है. यह किसी एक देश की जिम्मेदारी नहीं हो सकती और न ही यह किसी एक देश के बस का काम ही है.
इस बात ने भी यूरोपीय संघ के नीति निर्धारकों पर कहीं न कहीं बड़ा असर डाला है. इसके बावजूद अपने आधिकारिक वक्तव्यों में संघ ने चीन पर कोई निशाना साधने के बजाय यह कहा है कि उसकी इंडो-पैसिफिक नीति चीन या किसी भी देश के खिलाफ नहीं है. यूरोपीय संघ की यही बात उसे आसियान के नजदीक लाती है. इंडो-पैसिफिक के पूरे विचार-विमर्श के केंद्र में स्थित आसियान के लिए भी चीन और अमेरिका के बीच में पड़ना या इनमें से किसी एक देश को चुनना यक्ष प्रश्न से कम नहीं रहा है.
लब्बोलुबाब यह कि यूरोपीय संघ के इंडो-पैसिफिक में उतरने से इस क्षेत्र के समर्थक देशों में उत्साह है. यह भी अब तय हो चला है कि इंडो-पैसिफिक का रंग अब जम रहा है. और यह ऐसा रंग है जिसमें रंजिशन ही सही, इंडो-पैसिफिक की महफिल बिगाड़ने के लिए ही सही, किसी न किसी रूप में इसके विरोधियों रूस और चीन को भी शरीक होना ही पड़ेगा.
(राहुल मिश्र मलाया विश्वविद्यालय के एशिया-यूरोप संस्थान में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं.) ट्विटर @rahulmishr_
ये हैं यूरोपीय संघ के सदस्य देश
यूरोपीय संघ का मतलब यूरोप के सभी देश नहीं हैं. यूरोप में कुछ देश ऐसे भी हैं जो यूरोपीय संघ का हिस्सा नहीं हैं. कई देश इसमें जुड़ना भी चाहते हैं लेकिन अभी तक उनके लिए रास्ते खुले नहीं हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/K.J. Hildenbrand
ऑस्ट्रिया
राजधानी: वियना । भाषा: जर्मन । ईयू सदस्य: 1995 से । मुद्रा: यूरो, 1999 से । शेंगेन सदस्य: 2007 से । क्षेत्रफल: 83,900 वर्ग किलोमीटर । जनसंख्या: 85,76,261 । यूरोपीय संसद में सदस्य: 18
तस्वीर: picture-alliance/dpa/D.l Karmann
बेल्जियम
राजधानी: ब्रसेल्स । भाषा: डच, फ्रेंच, जर्मन । ईयू सदस्य: 1958 से । मुद्रा: यूरो, 1999 से । शेंगेन सदस्य: 1995 से । क्षेत्रफल: 30,500 वर्ग किलोमीटर । जनसंख्या: 1,12,58,434 । यूरोपीय संसद में सदस्य: 21
तस्वीर: picture alliance/blickwinkel/McPhotos
बुल्गारिया
राजधानी: सोफिया । भाषा: बल्गेरियन । ईयू सदस्य: 2007 से । मुद्रा: बल्गेरियन लेव । शेंगेन सदस्य: बनने की प्रक्रिया में । क्षेत्रफल: 1,11,000 वर्ग किलोमीटर । जनसंख्या: 72,02,198 । यूरोपीय संसद में सदस्य: 17
तस्वीर: BGNES
क्रोएशिया
राजधानी: जागरेब । भाषा: क्रोएशियन । ईयू सदस्य: 2013 से । मुद्रा: क्रोएशिय कूना । शेंगेन सदस्य: नहीं । क्षेत्रफल: 56,500 वर्ग किलोमीटर । जनसंख्या: 42,25,316 । यूरोपीय संसद में सदस्य: 11
तस्वीर: picture-alliance/B. Schleep
चेषिया
राजधानी: प्राग । भाषा: चेक । ईयू सदस्य: 2004 से । मुद्रा: चेक कोरूना । शेंगेन सदस्य: 2007 से । क्षेत्रफल: 78,900 वर्ग किलोमीटर । जनसंख्या: 1,05,38,275 । यूरोपीय संसद में सदस्य: 21
तस्वीर: picture-alliance/dpa/D. Karmann
साइप्रस
राजधानी: निकोसिया । भाषा: ग्रीक । ईयू सदस्य: 2004 से । मुद्रा: यूरो, 2008 से । शेंगेन सदस्य: बनने की प्रक्रिया में । क्षेत्रफल: 9,300 वर्ग किलोमीटर । जनसंख्या: 8,47,008 । यूरोपीय संसद में सदस्य: 6
तस्वीर: Reuters/Y. Kourtoglou
डेनमार्क
राजधानी: कोपेनहैगन । भाषा: डेनिश । ईयू सदस्य: 1973 से । मुद्रा: डेनिश क्रोन । शेंगेन सदस्य: 2001 से । क्षेत्रफल: 42,900 वर्ग किलोमीटर । जनसंख्या: 56,59,715 । यूरोपीय संसद में सदस्य: 13
तस्वीर: picture-alliance/blickwinkel/S. Ziese
एस्तोनिया
राजधानी: तालिन । भाषा: एस्तोनियन । ईयू सदस्य: 2004 से । मुद्रा: यूरो, 2011 से । शेंगेन सदस्य: 2007 से । क्षेत्रफल: 45,200 वर्ग किलोमीटर । जनसंख्या: 13,13,271 । यूरोपीय संसद में सदस्य: 6
तस्वीर: imago stock&people
फिनलैंड
राजधानी: हेलसिंकी । भाषा: फिनिश, स्वीडिश । ईयू सदस्य: 1995 से । मुद्रा: यूरो, 1999 से । शेंगेन सदस्य: 2001 से । क्षेत्रफल: 3,38,400 वर्ग किलोमीटर । जनसंख्या: 54,71,753 । यूरोपीय संसद में सदस्य: 13
तस्वीर: imago/D. Sattler
फ्रांस
राजधानी: पेरिस । भाषा: फ्रेंच । ईयू सदस्य: 1958 से । मुद्रा: यूरो, 1999 से । शेंगेन सदस्य: 1995 से । क्षेत्रफल: 6,32,800 वर्ग किलोमीटर । जनसंख्या: 6,64,15,161 । यूरोपीय संसद में सदस्य: 74
तस्वीर: picture-alliance/dpa/P. Kneffel
जर्मनी
राजधानी: बर्लिन । भाषा: जर्मन । ईयू सदस्य: 1958 से । मुद्रा: यूरो, 1999 से । शेंगेन सदस्य: 1995 से । क्षेत्रफल: 3,57,800 वर्ग किलोमीटर । जनसंख्या: 8,11,97,537 । यूरोपीय संसद में सदस्य: 96
तस्वीर: picture-alliance/dpa/B. Thissen
ग्रीस
राजधानी: एथेंस । भाषा: ग्रीक । ईयू सदस्य: 1981 से । मुद्रा: यूरो, 2001 से । शेंगेन सदस्य: 2000 से । क्षेत्रफल: 1,32,000 वर्ग किलोमीटर । जनसंख्या: 1,08,58,018 । यूरोपीय संसद में सदस्य: 21
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/T. Stavrakis
हंगरी
राजधानी: बुडापेश्ट । भाषा: हंगेरियन । ईयू सदस्य: 2004 से । मुद्रा: फोरिंट । शेंगेन सदस्य: 2007 से । क्षेत्रफल: 93,000 वर्ग किलोमीटर । जनसंख्या: 98,55,571 । यूरोपीय संसद में सदस्य: 21
तस्वीर: Imago/Gueffroy
आयरलैंड
राजधानी: डब्लिन । भाषा: आइरिश, अंग्रेजी । ईयू सदस्य: 1973 से । मुद्रा: यूरो, 1999 से । शेंगेन सदस्य: नहीं । क्षेत्रफल: 69,800 वर्ग किलोमीटर । जनसंख्या: 46,28,949 । यूरोपीय संसद में सदस्य: 11
तस्वीर: picture alliance/dpa
इटली
राजधानी: रोम । भाषा: इटैलियन । ईयू सदस्य: 1958 से । मुद्रा: यूरो, 1999 से । शेंगेन सदस्य: 1997 से । क्षेत्रफल: 3,02,100 वर्ग किलोमीटर । जनसंख्या: 6,07,95,612 । यूरोपीय संसद में सदस्य: 73
तस्वीर: Getty Images/AFP/P. Huguen
लाटविया
राजधानी: रीगा । भाषा: लाटवियन । ईयू सदस्य: 2004 से । मुद्रा: यूरो, 2014 से । शेंगेन सदस्य: 2007 से । क्षेत्रफल: 64,600 वर्ग किलोमीटर । जनसंख्या: 19,86,096 । यूरोपीय संसद में सदस्य: 8
तस्वीर: Fotolia/selensergen
लिथुआनिया
राजधानी: विल्नियुस । भाषा: लिथुएनियन । ईयू सदस्य: 2004 से । मुद्रा: यूरो, 2015 से । शेंगेन सदस्य: 2007 से । क्षेत्रफल: 65,300 वर्ग किलोमीटर । जनसंख्या: 29,21,262 । यूरोपीय संसद में सदस्य: 11
तस्वीर: picture-alliance/dpa
लक्जमबुर्ग
राजधानी: लक्जमबुर्ग । भाषा: फ्रेंच, जर्मन । ईयू सदस्य: 1958 से । मुद्रा: यूरो, 1999 से । शेंगेन सदस्य: 1995 से । क्षेत्रफल: 2,600 वर्ग किलोमीटर । जनसंख्या: 5,62,958 । यूरोपीय संसद में सदस्य: 6
तस्वीर: picture-alliance/W. Rothermel
माल्टा
राजधानी: वालेटा । भाषा: माल्टीज, अंग्रेजी । ईयू सदस्य: 2004 से । मुद्रा: यूरो, 2008 से । शेंगेन सदस्य: 2007 से । क्षेत्रफल: 300 वर्ग किलोमीटर । जनसंख्या: 4,29,344 । यूरोपीय संसद में सदस्य: 6
तस्वीर: picture-alliance/Jürgen Effner
नीदरलैंड्स
राजधानी: एम्स्टरडम । भाषा: डच । ईयू सदस्य: 1958 से । मुद्रा: यूरो, 1999 से । शेंगेन सदस्य: 1995 से । क्षेत्रफल: 41,500 वर्ग किलोमीटर । जनसंख्या: 1,69,00,726 । यूरोपीय संसद में सदस्य: 26
तस्वीर: picture alliance / Daniel Reinhardt/dpa
पोलैंड
राजधानी: वारसॉ । भाषा: पोलिश । ईयू सदस्य: 2004 से । मुद्रा: स्लोती । शेंगेन सदस्य: 2007 से । क्षेत्रफल: 3,12,700 वर्ग किलोमीटर । जनसंख्या: 3,80,05,614 । यूरोपीय संसद में सदस्य: 51
तस्वीर: picture alliance/NurPhoto/B. Zawrzel
पुर्तगाल
राजधानी: लिसबन । भाषा: पुर्तगीज । ईयू सदस्य: 1986 से । मुद्रा: यूरो, 1999 से । शेंगेन सदस्य: 1995 से । क्षेत्रफल: 92,200 वर्ग किलोमीटर । जनसंख्या: 1,03,74,822 । यूरोपीय संसद में सदस्य: 21
तस्वीर: AFP/Getty Images
रोमानिया
राजधानी: बुखारेस्ट । भाषा: रोमेनियन । ईयू सदस्य: 2007 से । मुद्रा: रोमेनियन लेऊ । शेंगेन सदस्य: बनने की प्रक्रिया में । क्षेत्रफल: 2,38,400 वर्ग किलोमीटर । जनसंख्या: 1,98,70,647 । यूरोपीय संसद में सदस्य: 32
तस्वीर: picture-alliance/J. Arriens
स्लोवाकिया
राजधानी: ब्रातिस्लावा । भाषा: स्लोवाक । ईयू सदस्य: 2004 से । मुद्रा: यूरो, 2009 से । शेंगेन सदस्य: 2007 से । क्षेत्रफल: 49,000 वर्ग किलोमीटर । जनसंख्या: 54,21,349 । यूरोपीय संसद में सदस्य: 13
तस्वीर: MM/Fotolia
स्लोवेनिया
राजधानी: लुबलियाना । भाषा: स्लोवेनियन । ईयू सदस्य: 2004 से । मुद्रा: यूरो, 2007 से । शेंगेन सदस्य: 2007 से । क्षेत्रफल: 20,300 वर्ग किलोमीटर । जनसंख्या: 20,62,874 । यूरोपीय संसद में सदस्य: 8
तस्वीर: Getty Images/G. Cacace
स्पेन
राजधानी: मैड्रिड । भाषा: स्पैनिश । ईयू सदस्य: 1986 से । मुद्रा: यूरो, 1999 से । शेंगेन सदस्य: 1995 से । क्षेत्रफल: 5,06,000 वर्ग किलोमीटर । जनसंख्या: 4,64,49,565 । यूरोपीय संसद में सदस्य: 54
तस्वीर: Getty Images/M. Cardy
स्वीडन
राजधानी: स्टॉकहोम । भाषा: स्वीडिश । ईयू सदस्य: 1995 से । मुद्रा: स्वीडिश क्रोना । शेंगेन सदस्य: 2001 से । क्षेत्रफल: 4,38,600 वर्ग किलोमीटर । जनसंख्या: 97,47,355 । यूरोपीय संसद में सदस्य: 20