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देव पटेल की 'द लास्ट एयरबैंडर'

२ जुलाई २०१०

डैनी बॉयल की ऑस्कर जीतने वाली फ़िल्म स्लमडॉग मिलीयनेयर से अपने करियर की शुरुआत करने वाले ब्रिटिश एक्टर देव पटेल की दूसरी फ़िल्म द लास्ट एयरबैंडर शुक्रवार को अमेरिका में रिलीज़ हो रही है.

देव पटेल और फ़्रीडा पिंटोतस्वीर: AP

अपनी पहली फ़िल्म में देव पटेल ने अपनी भारतीय विरासत को कुरेदा टटोला था तो दूसरी फ़िल्म वे हॉलीवुड में नाम कमाने वाले भारतीय निदेशक एम. नाइट श्यामलन के साथ कर रहे हैं. रिलीज से पहले फ़िल्म की कटु आलोचना हो रही है, लेकिन प्रतिशोध लेने वाले राजकुमार के रूप में देव पटेल के काम को फ़िल्म समीक्षकों की सराहना मिल रही है.

फ़्रीडा पिंटोतस्वीर: ap

स्लमडॉग की ख्याति के बाद लास्ट एयरबेंडर के चुनाव पर देव पटेल कहते हैं, "मैं कुछ ऐसा करना चाहता था जो जहां तक संभव हो, स्लमडॉग से अलग हो. मैं टाइपकास्ट होने से बचना चाहता था."

देव पटेल सिर्फ़ 20 साल के हैं और जिस तरह स्लमडॉग ने उन्हें स्टार बनाया है, अभिनेता बने रहने की उनकी ललक और बढ़ गई है. कहते हैं, "मैं उद्योग में एक्टर के रूप में आया था और इसे एक्टर के रूप में ही छोड़ना चाहता हूं. मैं बस एक अच्छा एक्टर बनना चाहता हूं."

एक फ़िल्म कर चुकने के बाद देव पटेल को अब अनुभव है लेकिन काम करते समय घबड़ाहट अभी भी होती है. यह पूछे जाने पर कि उन्होंने ज़्यादा किससे सीखा है, डैनी बॉयल से या नाइट श्यामलन से, देव पटेल कहते हैं कि यह बहुत जटिल सवाल है. "नाइट के ख़िलाफ़ नहीं , लेकिन मेरी व्यक्तिगत राय में डैनी को कभी कोई पीछे नहीं छोड़ सकता."

डैनी बॉयलतस्वीर: picture-alliance/ dpa

पटेल की इस राय की वजह है. डैनी बॉयल ने उनपर तब भी भरोसा किया, जब उन्हें कोई नहीं जानता था. वे एक फिल्म बनाना चाहते थे और उन्होंने देव पटेल को मुख्य भूमिका देकर उनपर दांव लगा दिया. पटेल हमेशा उनके आभारी रहेंगे.

स्लमडॉग की सह अभिनेत्री फ़्रीडा पिंटो के साथ अपने प्यार के बारे में देव पटेल कहते हैं कि वे जितना हो सके खुले में आने से बचते हैं, लेकिन पता नहीं पत्रकारों को कैसे पता चल जाता है. अब जबकि दोनों अलग अलग फिल्म कर रहे हैं साथ समय बिता पाना बहुत मुश्किल होता जा रहा है. लेकिन देव पटेल कहते हैं, "हां वह इस समय बहुत सारी शूटिंग कर रही हैं, जो दरअसल बहुत प्रेरणादायक है. लेकिन जहां चाह है वहां राह भी है.

देव पटेल बॉलीवुड में भी काम करना चाहते हैं. उन्हें कुछ बहुत अच्छे निदेशकों ने फिल्में ऑफ़र भी की हैं, लेकिन वे भारतीय की तरह बोलने में अभी भी सहज महसूस नहीं करते. कहते हैं अभी ऐसा करना सही नहीं होगा. "जो स्क्रिप्ट मुझे मिले हैं वे इंटरनैशनल नहीं हैं, वे पॉपकॉर्न बॉलीवुड की कैटेगरी में आते हैं, और मुझे अंततः उसके ख़िलाफ़ फ़ैसला लेना पड़ता है."

रिपोर्ट: रॉयटर्स/महेश झा

संपादन: उज्ज्वल भट्टाचार्य

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