देश की जेलों में बंद 66 फीसद लोग एससी, एसटी, ओबीसी समुदाय के
समीरात्मज मिश्र
१२ फ़रवरी २०२१
देश की जेलों में बंद कुल कैदियों में से करीब 66 फीसदी लोग अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग यानी ओबीसी के हैं. यह जानकारी राज्यसभा में गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने एक सवाल के लिखित जवाब में दी है.
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गृह राज्य मंत्री रेड्डी के मुताबिक, "देश की जेलों में 4,78,600 कैदी हैं जिनमें 3,15,409 कैदी एससी, एसटी और ओबीसी के हैं. ये आंकड़े राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के आंकड़ों पर आधारित हैं.” रेड्डी ने बताया कि करीब 34 फीसद कैदी ओबीसी वर्ग के हैं जबकि करीब 21 फीसद अनुसूचित जाति से और 11 फीसद अनुसूचित जनजाति से हैं. ये आंकड़े इन वर्गों की जनसंख्या के मुकाबले काफी ज्यादा है.
लैंगिक आधार पर देखें तो पुरुष कैदियों की संख्या करीब 96 फीसद और महिला कैदियों की संख्या महज चार फीसद है.सरकार की ओर से पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक, एससी और ओबीसी श्रेणियों के कैदियों की अधिकतम संख्या उत्तर प्रदेश की जेलों में है, जबकि मध्य प्रदेश की जेलों में अनुसूचित जनजाति समुदाय के सबसे ज्यादा कैदी हैं.
एनसीआरबी ने पिछले साल अगस्त में साल 2019 के आंकड़े जारी किए थे जिनके मुताबिक, देश भर की जेलों में बंद दलित, आदिवासी और मुस्लिम समुदाय के लोगों की संख्या देश में उनकी आबादी के अनुपात से कहीं ज्यादा है. यही नहीं, एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, देश की जेलों में बंद विचाराधीन मुस्लिम कैदियों की संख्या दोषी ठहराए गए मुस्लिम कैदियों से ज्यादा है.
रिपोर्ट के अनुसार साल 2019 के आखिर तक देश भर की जेलों में 21.7 फीसद दलित बंद थे जबकि जेलों में अंडरट्रायल कैदियों में 21 फीसदी लोग अनुसूचित जातियों से थे. हालांकि जनगणना में उनकी कुल आबादी 16.6 फीसदी है. आदिवासियों यानी अनुसूचित जनजाति के मामले में भी जनसंख्या और जेल में बंद कैदियों का अंतर ऐसा ही है.
देश के कुल दोषी ठहराए गए कैदियों में एसटी समुदाय की हिस्सेदारी 13.6 फीसद है, जबकि जेलों में बंद 10.5 फीसद विचाराधीन कैदी इस समुदाय से आते हैं. राष्ट्रीय जनगणना में देश की कुल आबादी में एसटी समुदाय की हिस्सेदारी 8.6 फीसदी है. एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, मुस्लिम समुदाय का देश की आबादी में 14.2 फीसद हिस्सा है, जबकि जेलों में बंद कुल कैदियों में 16.6 फीसदी मुस्लिम समुदाय के हैं.
विचाराधीन कैदियों की सूची में मुस्लिम समुदाय के 18.7 फीसद लोग हैं. आंकड़ों के मुताबिक, विचाराधीन कैदियों के मामले में मुस्लिम समुदाय के लोगों की संख्या और अनुपात दलितों और आदिवासियों से भी ज्यादा है. एनसीआरबी के साल 2015 के आंकड़ों से तुलना करने पर पता चलता है कि विचाराधीन मुस्लिम कैदियों का अनुपात साल 2019 तक कम हुआ है लेकिन दोषियों का प्रतिशत बढ़ गया है. साल 2015 में जहां देश भर की जेलों में करीब 21 फीसद मुस्लिम कैदी विचाराधीन थे जबकि करीब 16 फीसद कैदी दोषी पाए गए थे.
बढ़ती जा रही है जेलों में विचाराधीन कैदियों की संख्या
एनसीआरबी के ताजा आंकड़े दिखाते हैं कि देश की जेलों में ऐसे कैदियों की संख्या हर साल बढ़ती जा रही है जिनके खिलाफ आरोपों पर सुनवाई अभी चल ही रही है. जानिए और क्या बताते हैं ताजा आंकड़े.
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कितनी जेलें
2019 में देश में कुल 1,350 जेलें थीं, जिनमें सबसे ज्यादा (144) राजस्थान में थीं. दिल्ली में सबसे ज्यादा (14) केंद्रीय जेलें हैं. कम से कम छह राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में एक भी केंद्रीय जेल नहीं है.
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जेलों में भीड़
इतनी जेलें भी बंदियों की बढ़ती संख्या के लिए काफी नहीं हैं. ऑक्यूपेंसी दर 2018 में 117.6 प्रतिशत से बढ़ कर 2019 में 118.5 प्रतिशत हो गई. सबसे ज्यादा ऊंची दर जिला जेलों (129.7 प्रतिशत) है. राज्यों में सबसे ऊंची दर दिल्ली में है (174.9 प्रतिशत).
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महिला जेलों का अभाव
'पूरे देश में सिर्फ 31 महिला जेलें हैं और वो भी सिर्फ 15 राज्यों/केंद्रीय शासित प्रदेशों में हैं. देश की सभी जेलों में कुल 4,78,600 कैदी हैं, जिनमें 19,913 महिलाएं हैं.
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कर्मचारियों का भी अभाव
2019 में जेल स्टाफ की स्वीकृत संख्या थी 87,599 लेकिन वास्तविक संख्या थी सिर्फ 60,787. सबसे बड़ा अभाव प्रोबेशन अधिकारी, कल्याण अधिकारी, मनोवैज्ञानिक, मनोचिकित्सक आदि जैसे सुधार कर्मियों का था.
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कैदियों पर खर्च
2019 में देश में कैदियों पर कुल 2060.96 करोड़ रुपए खर्च किए गए, जो कि जेलों के कुल खर्च का 34.59 प्रतिशत था. इसमें से 47.9 प्रतिशत (986.18 करोड़ रुपए) भोजन पर खर्च किए गए, 4.3 प्रतिशत (89.48 करोड़ रुपए) चिकित्सा संबंधी खर्च पर, 1.0 प्रतिशत (20.27 करोड़ रुपए) कल्याणकारी गतिविधियों पर, 1.1 प्रतिशत (22.56 करोड़ रुपए) कपड़ों पर और 1.2 प्रतिशत (24.20 करोड़ रुपए) शिक्षा और ट्रेनिंग पर किया गया.
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70 प्रतिशत कैदियों के मामले विचाराधीन
2019 में देश की सभी जेलों में अपराधी साबित हो चुके कैदियों की संख्या (1,44,125) ऐसे कैदियों की संख्या से ज्यादा थी जिनके खिलाफ मामले अभी अदालतों में विचाराधीन ही हैं (3,30,487). एक साल में विचाराधीन कैदियों की संख्या में 2.15 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. इनमें से लगभग आधे कैदी जिला जेलों में हैं और 36.7 प्रतिशत केंद्रीय जेलों में.
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न्याय के इंतजार में
विचाराधीन कैदियों में 74.08 प्रतिशत कैदी (2,44,841) एक साल तक की अवधि तक, 13.35 प्रतिशत कैदी (44,135) एक से दो साल की अवधि तक, 6.79 प्रतिशत (22,451) दो से तीन सालों तक, 4.25 प्रतिशत (14,049) तीन से पांच सालों तक और 1.52 प्रतिशत कैदी (5,011) पांच साल से भी ज्यादा अवधि से जेल में बंद थे.
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शिक्षा का स्तर
सभी कैदियों में 27.7 प्रतिशत (1,32,729) अशिक्षित थे, 41.6 प्रतिशत (1,98,872) दसवीं कक्षा तक भी नहीं पढ़े थे, 21.5 प्रतिशत (1,03,036) स्नातक के नीचे तक पढ़े थे, 6.3 प्रतिशत (30,201) स्नातक थे, 1.7 प्रतिशत 8,085 स्नातकोत्तर थे और 1.2% प्रतिशत (5,677) कैदियों के पास टेक्निकल डिप्लोमा/डिग्री थी.
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मृत्युदंड वाले कैदी
सभी कैदियों में कुल 400 कैदी ऐसे थे जिन्हें मौत की सजा सुना दी गई थी. इनमें से 121 कैदियों को 2019 में मृत्युदंड सुनाया गया था. 77,158 कैदियों (53.54 प्रतिशत) को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी.
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जेल में मृत्यु
2018 में 1,845 कैदियों के मुकाबले 2019 में 1,775 कैदियों की जेल में मृत्यु हुई. इनमें से 1,544 कैदियों की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई. अप्राकृतिक कारणों से मरने वाले कैदियों की संख्या 10.74 प्रतिशत बढ़ कर 165 हो गई. इनमें से 116 कैदियों की मौत आत्महत्या की वजह से हुई, 20 की मौत हादसों की वजह से हुई और 10 की दूसरे कैदियों द्वारा हत्या कर दी गई. कुल 66 मामलों में मृत्यु का कारण पता नहीं चल पाया.
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पुनर्वास
2019 में कुल 1,827 कैदियों का पुनर्वास कराया गया और 2,008 कैदियों को रिहाई के बाद वित्तीय सहायता दी गई. कैदियों द्वारा कुल 846.04 करोड़ रुपए मूल्य के उत्पाद भी बनाए गए.
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कुछ समय पहले कुछ निजी संस्थानों की मदद से तैयार की गई इंडियन जस्टिस रिपोर्ट 2020 भी सामने आई थी जिसमें देश की जेलों में बंद कैदियों संबंधी आंकड़ों का जिक्र है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की जेलों में बंद कैदियों की कुल संख्या का करीब 69 फीसद हिस्सा उन कैदियों का है जो विचाराधीन हैं. यानी उनके मुकदमे अभी अदालतों में चल रहे हैं और यदि अदालत उन्हें निर्दोष करार देती है तो वो जेल से छूट जाएंगे.
यूपी में डीजीपी रह चुके रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी डॉक्टर वीएन राय कहते हैं कि ये आंकड़े बताते हैं कि हमारी न्याय व्यवस्था भी दोषरहित नहीं है. उनके मुताबिक, "आंकड़ों से पता चलता है कि हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली न सिर्फ दोषपूर्ण है बल्कि गरीबों के भी खिलाफ है. जो लोग अच्छे वकील रख सकते हैं, उन्हें आसानी से जमानत मिल जाती है. आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को छोटे-छोटे अपराधों के लिए भी लंबे समय तक जेल में बंद रहना पड़ता है. ऐसे कितने लोग हैं जो सालों-साल जेल में रहने के बाद अदालत से बरी हो गए.”
जेलों में बंद कैदियों के सामाजिक आंकड़ों के अलावा देश के जेलों की हालत भी बहुत अच्छे नहीं है और जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदी भरे हुए हैं. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है बड़ी संख्या में विचाराधीन कैदियों का बंद होना है. जेलों की स्थिति पर दो साल पहले जारी की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक, 31 दिसंबर 2017 तक भारत में कुल 1,361 जेल हैं, जिनकी कुल क्षमता 3,91,574 कैदियों की है. लेकिन इन जेलों में क्षमता से कहीं ज्यादा यानी 4,50,696 कैदी बंद हैं. यही नहीं, रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2015 से लेकर 2017 के बीच राष्ट्रीय स्तर पर जेलों की कुल संख्या में 2.85% की कमी भी आई है. साल 2015 में जेलों की संख्या जहां 1,401 थी, वहीं साल 2017 में यह घटकर सिर्फ 1,361 रह गई. लेकिन इस दौरान भी कैदियों की संख्या में बढ़ोत्तरी जारी रही.
जेल से निकल भागने में मैक्सिको के ड्रग डीलर एक्सपर्ट होते हैं. जेल की मोटी दीवारों, लोहे की सलाखों, गार्ड और सर्च लाइटों के बावजूद कुछ दुस्साहसी कैदियों ने भागने के नायाब तरीके आजमाए हैं.
तस्वीर: Getty Images/New York State Governor's Office/D. McGee
बाथरुम में सुरंग
जुलाई 2015 में मैक्सिको के नशीले ड्रग्स का कारोबारी योआकिन "एल चापो" गुजमन आल्टीप्लानो जेल से बच निकला. उसने अपनी सेल के गुसल वाले हिस्से के नीचे से एक सुरंग खोदी थी. बेहद कड़ी सुरक्षा वाली इस जेल से बाहर निकलने की बीते 14 सालों में दूसरी कोशिश कामयाब हुई है.
तस्वीर: Reuters/PGR/Attorney General's Office
सूटकेस में!
2011 में मैक्सिको की एक जेल में बंद कैदी की पत्नी एक बड़ा सूटकेस साथ लेकर उससे मिलने गई. युआन रामिरेज टिजेरीना नामका यह कैदी अवैध हथियार रखने का दोषी पाया गया था. कैदी सूटकेस में छुप गया था लेकिन जेल से बाहर निकलने से पहले ही सुरक्षा गार्ड्स की नजर में आ गया.
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डर से
1983 में यूरोप की सबसे सुरक्षित माने जाने वाली जेलों में से एक 'दि मेज़' से आयरिश रिपब्लिकन आर्मी के 38 कैदी भाग निकले थे. उत्तरी आयरलैंड में स्थित यह जेल रिपब्लिकन और वफादार अर्द्धसैनिक बलों को रखने का मुख्य केंद्र थी. इन कैदियों ने छुपा कर लाई गयी बंदूकों और चाकू का डर दिखाकर गार्ड्स को डराया और जेल की एक वैन लेकर भाग निकले.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/P. Mcerlane
चम्मच और रेनकोट बने औजार
अलकाट्रास जेल में बंद तीन बैंक लुटेरों ने चम्मचों को रगड़कर तेज किया और कामचलाऊ ड्रिल का इस्तेमाल कर अपने सेल से निकलने का रास्ता बना लिया. 1962 में सैन फ्रांसिस्को की इस जेल में काफी कड़ी सुरक्षा हुआ करती थी. उन्होंने रेनकोटों का इस्तेमाल कर फूलने वाली नाव बनाई और पानी के रास्ते निकल गए.
तस्वीर: imago/Kai Koehler
जेल से हैलीकॉप्टर!
किसी हॉलीवुड फिल्म की कहानी सी लगने वाली इस वारदात में पास्कल पाएट नामक एक कैदी ने दो बार जेल से भागने के लिए हैलीकॉप्टर का इस्तेमाल किया. 2001 में हत्या के आरोपी पाएट ने एक फ्रेंच गांव में स्थित जेल में एक हैलीकॉप्टर हाइजैक कर भागने की कोशिश की. 2007 में उसने फिर ऐसी असफल कोशिश की और इस बार अपने साथ तीन और कैदियों को भी निकालना चाहा.
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छेद से बाहर
सीरियल किलर थियोडोर रॉबर्ट बंडी एक बार छोटी सी खिड़की से कूद कर भागने में सफल हुआ. दुबारा गिरफ्तार होने के बाद उसे कोलोराडो की जेल में रखा गया, जहां से भागने के लिए उसने अपना वजन 30 पाउंड घटाया और छत के बिजली वाले छेद से निकल भागा. 1974 से 1978 के बीच अमेरिका में कई महिलाओं की हत्या करने वाले बंडी को फिर पकड़ा गया और मौत की सजा दी गई.
तस्वीर: picture-alliance/AP
जेल से मैनहोल में
जून 2015 में अमेरिका के न्यूयॉर्क की एक कड़ी सुरक्षा वाली जेल से भाग निकलने में हत्या के दो आरोपी सफल रहे. डेविड स्वेट और रिचर्ड मैट ने अपने सेलों के बीच की दीवार में छेद किया, जिसका रास्ता कई पाइपों से होता हुआ मैनहोल में खुलता था. उनकी धरपकड़ की कोशिश में मैट पुलिस की गोली से मारा गया जबकि स्वेट को घायल हालत में दुबारा पकड़ लिया गया.
तस्वीर: Getty Images/New York State Governor's Office/D. McGee