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देश को चलाना संसद का काम: सुप्रीम कोर्ट

आईबी/आरआर (पीटीआई)२२ फ़रवरी २०१५

दागी मंत्रियों के मामले में सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि चुनाव में खड़े होने की अनुमति देना या ना देना संसद के हाथ में है और अदालत इसमें दखल नहीं देना चाहती.

Oberstes Gericht in Indien
तस्वीर: CC-BY-SA-3.0 LegalEagle

जस्टिस एच एल दत्तू की बेंच ने कहा है कि जिन लोगों पर जघन्य अपराध के आरोप हैं, उन्हें चुनाव में खड़े ना होने देना, सुनने में काफी "आकर्षक और नेक" लगता है, लेकिन कानून की अपनी सीमाएं हैं. बेंच ने कहा कि अदालत को ऐसे आदेश जारी करने का हक नहीं है. जस्टिस दत्तू के अलावा बेंच में जस्टिस ए के सीकरी और जस्टिस अरुण मिश्रा भी शामिल हैं. उन्होंने कहा, "अदालती कार्यवाही के चलते हम संसद के क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकते. सत्ता का पृथक्कीकरण संविधान का एक अहम ढांचा है, हमें इसका सम्मान करना चाहिए."

अदालत ने यह भी कहा कि कानून की नजरों में कोई भी व्यक्ति तब तक गुनहगार नहीं है, जब तक उस पर लगे आरोप साबित नहीं हो जाते. ऐसे में केवल इसलिए किसी को चुनाव लड़ने से नहीं रोका जा सकता कि उसके खिलाफ कोई मुकदमा चल रहा है. सांसदों की बात करते हुए अदालत ने कहा, "फैसला संसद को ही लेना होगा. वे (सांसद) जानते हैं कि देश को कैसे चलाना है और किसे चुनाव में खड़ा होना चाहिए. हमें इसमें दखल देने की जरूरत नहीं है".

अदालत में दागी मंत्रियों से जुड़ी यह याचिका एक गैर सरकारी संस्था ने डाली थी. संस्था के वकील दिनेश द्विवेदी ने अदालत से अपील करते हुए कहा, "आप दिशानिर्देश जारी कर सकते हैं जिससे राजनीति में बढ़ते अपराध पर रोक लग सके". इसके जवाब में सर्वोच्च न्यायालय की बेंच ने कहा, "आप ठीक कह रहे हैं और यह एक आदर्श परिस्थिति होगी. प्रथमदृष्टया यह ख्याल बहुत आकर्षक और नेक लगता है लेकिन गहराई से सोचने पर हमें लगता है कि हमें दखल नहीं देना चाहिए और संसद को ही इस पर कोई फैसला लेना चाहिए".

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट की एक संवैधानिक बेंच भी इस तरह के मामले पर फैसला दे चुकी है. बेंच के अनुसार मंत्रियों की नियुक्ति का फैसला प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों के पास सुरक्षित रहना चाहिए. अदालत ने इस फैसले की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि जब संवैधानिक बेंच पहले ही आपराधिक रिकॉर्ड वाले लोगों को मंत्री पद देने के मामले में रोक ना लगाने का फैसला सुना चुकी है, तो फिर अब अदालत चुनाव में ना खड़े होने का फैसला कैसे सुना सकती है.

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