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बैलेट पेपर से चुनाव चिन्ह हटाने की चुनौती

६ दिसम्बर २०१७

सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे का मानना है कि राजनीतिक दल और उनके नेता देश के लिए सर्वाधिक खतरनाक हैं. उनका कहना है कि देश में जो भी गड़बड़ियां, घोटाले हो रहे हैं, उसमें यही लोग शामिल हैं.

Indien Korruption Aktivist Anna Hazare in Neu Delhi
तस्वीर: dapd

मध्य प्रदेश की पर्यटन नगरी, खजुराहो में हाल ही में संपन्न हुए दो दिवसीय जल सम्मेलन में हिस्सा लेने आए अन्ना ने यहां आईएएनएस के साथ बातचीत में कहा कि देश में सच्चा लोकतंत्र नहीं है, और उन्होंने चुनाव आयोग की भूमिका पर भी सवाल उठाया.

अन्ना ने एक सवाल के जवाब में कहा, "देश में भ्रष्टाचार कौन कर रहा है, वे लोग जो सदन के भीतर समूह (पार्टी) में हैं और उन्हीं का समूह बाहर है. 2जी घोटाला हो, कोयला घोटाला, हेलीकॉप्टर घोटाला या व्यापमं घोटाला, इन सब में इसी समूह के लोग शामिल हैं. यह समूह गांव-गांव तक पहुंच गया है और विकास प्रभावित हो रहा है."

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार संसद में प्रवेश करते समय सीढ़ियों पर माथा टेका था और कहा था कि वह सदन में चर्चा को प्राथमिकता देंगे. अन्ना ने मोदी के इस कथ्य पर तंज कसा, और कहा, "मोदी ने सदन में जाते हुए माथा टेक कर जो कहा था, उस पर अमल किया क्या? सदन में चर्चा को प्राथमिकता देने की बात कही थी, चर्चा हो रही है क्या, लोकपाल विधेयक में संशोधन को महज तीन दिन में पारित कर लिया गया. इस संशोधन पर दोनों सदनों में से किसी में भी चर्चा नहीं हुई. यह कैसा लोकतंत्र है."

तस्वीर: AP

अन्ना कहते हैं, "इस देश के लोगों ने 1857 से 1947 तक 90 सालों तक अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी, इस देश में लोकतंत्र लाने के लिए, मगर ये राजनीतिक दल और नेता लोकतंत्र को आने ही नहीं दे रहे हैं. सच्चा लोकतंत्र तो तब आएगा, जब आम व्यक्ति चुनाव जीतकर लोकसभा और राज्यसभा में पहुंचेगा."

अन्ना ने आगे कहा, "अपने-अपने दलों को मजबूत करना राजनीतिक दलों की प्राथमिकता हो गई है, उनके लिए सत्ता और उससे पैसा तथा पैसे से सत्ता हथियाना ही लक्ष्य है. उनके लिए देश और समाज का कोई स्थान नहीं है. भ्रष्टाचार, गुंडागर्दी, जातिवाद का जहर यही लोग तो फैला रहे हैं, इनके खिलाफ जब कोई बोलता है, तो उस पर सब मिलकर टूट पड़ते हैं.

अन्ना ने कहा कि युवा शक्ति को देश और समाज सेवा में लगाना था, लेकिन उसे भी इन राजनीतिक दलों ने गुटों में बांट दिया है, सभी के युवा मोर्चा हैं, युवा शक्ति को भटका कर ये दल झगड़े-फसाद में लगा रहे हैं.

अन्ना पर आरोप लगता रहा है कि वह परोक्ष रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की मदद करते हैं. इस सवाल पर उन्होंने कहा, "कभी भी आरएसएस, किसी दल या संगठन से कोई नाता नहीं रहा है और न है. हां, यह जरूर हुआ है कि वर्ष 2011 में दिल्ली में भ्रष्टाचार के खिलाफ हुए आंदोलन को भाजपा ने भुना लिया। साथ ही भाजपा नेता भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर चुनाव जीते. मगर अब क्या हो रहा है, यह सब सामने आ रहा है. वे भ्रष्टाचार, गरीबी हटाने की बात सत्ता में आने के साढ़े तीन साल बाद भी कर रहे हैं."

अन्ना ने सवाल किया, "जीएसटी क्यों लाया गया है, यह सरकार ने अपने फायदे के लिए लाया है वित्त विधेयक पारित किए जाने के बाद उसमें 40 संशोधन करने पड़े हैं. उसमें एक ऐसा संशोधन है, जो सबकी समझ में आ जाएगा. पहले प्रावधान था कि कोई भी संस्थान या कारोबारी अपने तीन वर्ष के कुल फायदे में से 7.5 प्रतिशत राशि किसी भी राजनीतिक दल को दे सकता है. अब इस सीमा को खत्म कर दिया है. इससे किसे लाभ होगा, जो दल सत्ता में होगा. इसके अलावा उस न्यायाधिकरण को भी खत्म कर दिया है, जिसमें शिकायतें सुनी जाती थीं. सरकार ने सारी ताकत अपने हाथ में ले ली है"

चुनाव जीतने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं राजनीतिक दल

भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद से ग्रस्त भारतीय लोकतंत्र

लोकतंत्र में राजनीतिक दलों का दलदल

चुनाव सुधार के प्रयासों पर भी अन्ना ने सवाल उठाए. उन्होंने कहा, "आजाद भारत का पहला आम चुनाव वर्ष 1952 में हुआ था. उस समय चुनाव आयोग ने जो गलती की, उसे यह देश आज तक भोग रहा है. संविधान के मुताबिक, देश में 25 वर्ष की आयु में लोकसभा और 30 वर्ष की आयु में राज्यसभा का चुनाव कोई भी व्यक्ति लड़ सकता है. इसमें राजनीतिक दल का प्रावधान नहीं है. यही कारण है कि महात्मा गांधी ने कांग्रेस को समाप्त करने की बात की थी. उनका कहना था कि अब प्रजा का राज है, उसके बाद भी कांग्रेस और जनसंघ सहित छह पार्टियां चुनाव लड़ीं."

अन्ना ने कहा कि वह चाहते हैं कि चुनाव आयोग संविधान की मूल भावना के मुताबिक चुनाव कराए. उनकी मांग है कि मतपत्र या ईवीएम पर व्यक्ति का नाम और तस्वीर होना चाहिए. चुनाव चिन्ह की जरूरत ही नहीं है.

अन्ना के अनुसार, चुनाव आयोग उनकी बात को सीधे तौर पर नकारता नहीं है, मगर कहता है कि यह अभी नहीं हो सकता. अब तक छह दौर की बात हो चुकी है. "उम्मीदवार की तस्वीर तो आ गई है, इसका लाभ यह है कि मतदाता उसकी तस्वीर देखते ही पहचान जाएगा कि यह आदमी गुंडा है या शरीफ. अब चुनाव चिन्ह हटवाने की लड़ाई है."

आईएएनएस

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