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देश चला सकते हैं, रेल क्यों नहीं

९ सितम्बर २०१३

लोगों के ताने, पत्थर, और गालियां, इन सब से सलमा को हर रोज गुजरना पड़ता है. उनकी गलती यह है कि वह ट्रेन चलाती हैं.

तस्वीर: Munir Uz Zaman/AFP/Getty Images

अपनी कहानी सुनाते हुए सलमा खातून की आंखें नम हो जाती हैं. सलमा बांग्लादेश के करीब 500 रेलवे चालकों में इकलौती महिला हैं. बांग्लादेश के समाज में मर्दों का दबदबा है. घर के बाहर का हर काम महिलाओं के लायक नहीं माना जाता. ऐसे रुढ़िवादी समाज में किसी महिला का ट्रेन चलाना मामूली बात नहीं.

सलमा कहती हैं कि उन्होंने बांग्लादेश के इतिहास में ऐसा काम कर बहुत कुछ सहन किया है. वह लोगों को बताना चाहती हैं कि ऐसा कोई ऐसा काम नहीं है जो मर्द कर सकते हैं और औरत नहीं. बस उसे करने का जज्बा होना चाहिए.

बांग्लादेश में रेलवे में महिलाओं के काम करने पर कानूनन पाबंदी थी. ये पाबंदियां वहां तब से थीं जब बांग्लादेश पाकिस्तान का हिस्सा था. 1995 संशोधन के बाद यह प्रतिबंध हटा लिया गया. 2004 में सलमा ने रेलवे में असिस्टेंट लोकोमोटिव मास्टर के तौर पर काम शुरू किया था. इसके बाद उन्होंने रेलवे विभाग की और परीक्षाएं पास की और 2011 में खुद प्रशिक्षित ड्राइवर बन गई.

तस्वीर: Getty Images/AFP/FARJANA K. GODHULY

राजनीति तो खानदानी है

बांग्लादेश की राजनीति में महिलाएं काफी आगे रही हैं, और चार बार महिलाओं ने सरकार का नेतृ्व किया. लेकिन राजनीति में महिलाओं का आगे बढ़ना आमतौर पर उनके परिवारों की राजनीतिक पृष्ठभूमि के कारण हुआ है और इसीलिए लोग भी इसे स्वीकार कर लेते हैं.

बांग्लादेश में महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करने वाली महिला परिषद की प्रमुख आयशा खानम कहती हैं, "हमें ऐसा समाज बनाना है, जहां महिलाओं की एक इंसान के तौर पर इज्जत हो, उन्हें सिर्फ महिला के तौर पर न देखा जाए. हमें उन पारंपरिक धारणाओं को तोड़ने की जरूरत है, जिनके मुताबिक महिलाओं का कार्य क्षेत्र घर तक ही सीमित होना चाहिए."

हमला भी हुआ

सलमा ने बताया कि उनके परिवार, सहकर्मियों और दोस्तों ने उनकी आगे बढ़ने में मदद की लेकिन ऐसा बांग्लादेश में हर लड़की के साथ नहीं होता है. अक्सर प्लेटफार्म पर खड़े लोग उन पर ताने कसते हैं तो कभी कोई उनकी तरफ थूक कर निकल जाता है. कुछ लोग तो ऐसे घूरते हुए गुजरते हैं जैसे ड्राइविंग सीट पर किसी महिला का बैठना अपराध हो. एक साल पहले जब वह घर जा रही थी, तो पांच लोगों ने उन पर हमला करने की भी कोशिश की. उन्होंने बताया, "जैसे ही मुझे एहसास हुआ कि वे मुझ पर हमला करने आ रहे हैं, मैंने चिल्लाना शुरू कर दिया. आवाज सुनकर मेरे सहकर्मी वहां आ गए और वे लोग भाग गए." सलमा अब तक 5000 किलोमीटर से ज्यादा ड्राइविंग कर चुकी हैं.

तस्वीर: Munir Uz Zaman/AFP/Getty Images

बदलती तस्वीर

सलमा को देख अब कई और महिलाएं ट्रेन चलाना सीख रही हैं. बांग्लादेश रेल्वे के महानिदेशक अबू ताहिर के अनुसार नई लड़कियां अच्छा काम कर रही हैं. उन्होंने बताया कि सरकार रेल विभाग में और महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित कर रही है, अगले दो साल में उनकी ट्रेनिंग होनी है.

ताहिर मानते हैं कि अभी तक विभाग वातावरण को महिलाओं के लिए पूरी तरह अनुकूल बनाने में कामयाब नहीं हो पाया है. एक ट्रेनी खुर्शीदा अख्तर ने बताया कि फिलहाल महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग अलग शौचालय नहीं हैं.

रेलवे मिनिस्टर मुजीबुल हक कहते हैं कि प्रधानमंत्री शेख हसीना के कार्यकाल में महिलाओं की बेहतरी के लिए कई अहम कदम उठाए गए हैं. हसीना ने महिलाओं के लिए संसद में 50 सीटों के आरक्षण की शुरुआत की, इसके अलावा क्षेत्रीय राजनीति में उनके प्रतिनिधित्व और सार्वजनिक क्षेत्र में कामकाजी महिलाओं की संख्या भी बढ़ी है. उन्होंने कहा कि जब वे हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं तो रेलवे कैसे अछूता रह सकता है. "हम आगे और महिलाओं की भर्ती करेंगे और उनके लिए अनुकूल माहौल बनाने की कोशिश करेंगे."

सलमा कहती हैं, "अगर एक महिला पूरा देश चला सकती है तो कुछ भी कर सकती है." बांग्लादेश के एक छोटे से गांव में पैदा हुई सलमा अपने रास्ते खुद बनाने में विश्वास करती हैं.

एसएफ/एएम (डीपीए)

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