1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

मान्यता देने भर से नहीं दूर होंगी सोनागाछी की मुश्किलें

प्रभाकर मणि तिवारी
२८ मई २०२२

भारत में मर्जी से देहव्यापार अपराध नहीं माना जायेगा. अदालत का फैसला यौनकर्मियों के लिए बड़ी राहत लाया है लेकिन इतने भर से मुश्किलें खत्म मिटेंगी. सोनागाछी में फैसले पर खुशी है लेकिन समस्याओं से मुक्ति की कोई उम्मीद नहीं.

सोनागाछी को समस्याओं से निजात मिलने की कोई उम्मीद नहीं
सोनागाछी को समस्याओं से निजात मिलने की कोई उम्मीद नहींतस्वीर: Prabhakar Mani Tiwari

"हम पीढ़ी दर पीढ़ी एक अवैध पेशे में होने का दंश झेलते आ रहे थे. अब कम से कम अदालत ने इस पेशे को कानूनी मान्यता देते हुए हमारे माथे पर लगे कलंक के इस टीके को तो मिटा दिया है. हालांकि इस फैसले से रातोंरात कुछ बदलने की उम्मीद नहीं है. हमारी समस्याएं जस की तस ही रहेंगी. लेकिन फिलहाल तो यह हमारे लिए खुशी और राहत का दिन है," कोलकाता में एशिया की सबसे बड़ी देहमंडी सोनागाछी में रहने वाली दीपाली के चेहरे पर यह कहते हुए थोड़ा संतोष और गर्व झलकता है.

समाज का रवैया बदलने की उम्मीद

इस बस्ती में 11 हजार से ज्यादा यौनकर्मी स्थायी तौर पर रहती हैं. उनके अलावा आस-पास के उपनगरों से रोजाना पांच हजार से ज्यादा महिलाएं पेशा करने यहां आती हैं और फिर घर लौट जाती हैं. सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उनको उम्मीद जगी है कि उनके पेशे को हिकारत की नजर से देखने की बजाय लोग उनकी मजबूरियों को समझते हुए इसका सम्मान करेंगे. यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आते ही इलाके की यौनकर्मियों ने बाकायदा मिठाई बांटकर खुशियां जताई और एक-दूसरे को शुभकामनाएं दीं.

यौनकर्मियों के संगठित होने से कुछ समस्याओं पर बातचीत शुरू हुई है तस्वीर: Prabhakar Mani Tiwari

इलाके की यौनकर्मियों का कहना है कि उनका दशकों लंबा संघर्ष अब रंग लाया है. उनमें से ज्यादातर अब भी मानती हैं कि इस फैसले से उनका जीवन रातोंरात नहीं बदलेगा, लेकिन एक गतिरोध टूटने की उन्हें खुशी है. इलाके की यौनकर्मियों के लिये काम करने वाली संस्था दुर्बार महिला समन्वय समिति की महाश्वेता मुखर्जी कहती हैं, "हम लंबे अरसे से महज यही स्वीकृति चाहते थे. अब जाकर हमारा संघर्ष रंग लाया है. इस पेशे को कानूनी स्वीकृति मिलने से हमारी लड़ाई एक झटके में काफी आगे बढ़ गई है."

समस्याओं का अंत नहीं

हालांकि संघर्ष का यह सफर अभी बहुत लंबा है. सोनागाछी की यौनकर्मियों को संगठित करने में भले कुछ कामयाबी मिली है, लेकिन राज्य के विभिन्न इलाकों की दूसरी बस्तियों की हालत ऐसी नहीं है. इसी वजह से वहां रहने वाली महिलाओं को पुलिस और समाज विरोधी तत्वों के अत्याचार का शिकार होना पड़ता है. महाश्वेता कहती हैं, "पुलिस के अलावा स्थानीय गुंडे भी इन महिलाओं का भारी उत्पीड़न करते हैं. जब तक इन यौनकर्मियों को संगठित नहीं किया जाएगा, ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगाना मुश्किल है."

यौनकर्मियों को पुलिस और अपराधी दोनों की ज्यादती सहनी पड़ती हैतस्वीर: Prabhakar Mani Tiwari

पश्चिम बंगाल में दुर्बार महिला समन्वय समिति के 65 हजार सदस्य हैं. समिति इनके हितों की देखभाल के अलावा इनके बच्चों को इस बदनाम बस्ती से दूर रख कर उनकी पढ़ाई-लिखाई का इंतजाम भी करती है. कॉपरेटिव बैंक, वोटर आईकार्ड, दुर्गा पूजा जैसी कुछ सुविधायें यौनकर्मियों को संगठित होने से मिली हैं. 

समिति की पूर्व सचिव भारती डे कहती हैं, "सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार यौनकर्मियों के पेशे को मान्यता दी है, यह हमारे लिए बेहद सम्मान की बात है. लेकिन इसे संसद में कानून की शक्ल मिल जाए तो और बेहतर होगा."

जमीनी स्तर पर फैसले  को लागू करने की चुनौती

महाश्वेता मुखर्जी कहती हैं, "अदालती फैसला अपनी जगह है और उसे जमीन पर लागू करना अलग बात है. पुलिस और स्थानीय असामाजिक तत्वों की ओर से होने वाले उत्पीड़न और परेशानी तो अभी रहेगी ही. इसके अलावा पुलिस समय-समय पर छापे मार कर धर-पकड़ करती रहती है. यह समस्या भी गंभीर है. इससे ग्राहक आने से डरते हैं."

समिति की पूर्व सचिव भारती दे भी महाश्वेता की बातों से सहमति जताते हुए कहती हैं कि अदालत ने चाहे जो कहा  जमीनी स्तर पर लागू करने की जिम्मेदारी स्थानीय प्रशासन की है. कुछ तबके के लिए यह पेशा दुधारू गाय है जहां से जब मर्जी पैसे ऐंठे जा सकते हैं. इस पहलू पर ध्यान देना जरूरी है.

यौनकर्मियों को वोटर आईडी कार्ड जैसी सहूलियत मिली हैतस्वीर: Prabhakar Mani Tiwari

सोनागाछी के एक कोठे में रहने वाली नमिता (बदला हुआ नाम) कहती है, "अदालत के फैसले से जमीन पर चीजें बदलेंगी, इसकी उम्मीद कम ही है. हमें स्थानीय पुलिस और असामाजिक तत्वों के रहमोकरम पर ही जीना पड़ेगा. इस धंधे से होने वाली कमाई में उन सबका हिस्सा होता है."

एशिया में देह व्यापार की सबसे बड़ी मंडी कहे जाने वाले कोलकाता के सोनागाछी इलाके में हाल तक काफी रौनक थी लेकिन कोरोना के दौरान काम लगभग ठप होने की वजह से यहां रहने वाली यौनकर्मियों के सामने भूखों मरने की नौबत आ गई. ऐसे मौके पर कुछ समाजसेवी संगठन और राज्य सरकार इनकी सहायता के लिए आगे आई थी और इनके लिए मुफ्त राशन का इंतजाम किया गया था.

कोरोना की मार से यह बस्ती अब तक उबर नहीं सकी है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने उसके जख्मों पर मरहम लगाने का काम किया है. लेकिन जैसा कि महाश्वेता कहती हैं, "उनकी यह लड़ाई अभी बहुत लंबी है."

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें