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देह व्यापार से मुक्त होंगे नट और कंजर!

८ मार्च २०११

राजस्थान में हजारों पर्यटक भव्य महलों, रंगबिरंगे पहनावे, रेगिस्तान और ऐतिहासिक स्थलों को अपनी यादों में कैद करने के लिए आते हैं. लेकिन इस चमक दमक के पीछे यह सच भी छिपा है कि कुछ समुदाय यहां देह व्यापार के लिए मजबूर हैं.

तस्वीर: Lauren Farrow

राजस्थान भारत के सबसे गरीब राज्यों में है. राज्य की 40 फीसदी आबादी अब भी अनपढ़ है और औसत कमाई प्रतिदिन 60 रुपये है. गरीबी की वजह से राजस्थान में नट और कंजर समुदाय की अनेक लड़कियां देह व्यापार के लिए मजबूर होती रही है.

कई पीढ़ियों से 14 साल की उम्र से ही लड़कियों को इस व्यापार में उतरना पड़ता है. लेकिन अब कुछ ऐसे स्कूल सामने आए हैं कि यह लगने लगा है कि उनकी मदद से अब ये लड़कियां अपने भविष्य के लिए सपने देखने के अलावा उन्हें सच भी कर सकती हैं.

तस्वीर: Lauren Farrow

मुंबई की मालवाड़ी झुग्गी में रहने वाली पिंकी अपना असली नाम नहीं बताती. 10 साल पहले राजस्थान में अपना गांव छोड़कर वह मुंबई आई और तब से बस इसी नाम को अपना लिया है. पिछले कई सालों से वह मुंबई में एक वेश्या के तौर पर काम कर रही है.

पिंकी ने डॉयचे वेले को बताया, "जब पहले ग्राहक आते तो मैं उनके लिए गाती. चाहे गरीब हो या अमीर, मैं सबको खुश करती. हम ज्यादा से ज्यादा एक या दो आदमियों के साथ ही शारीरिक सुख ले पाते हैं लेकिन हमारे पास इतने लोग आते हैं कि क्या करें. हम यह सब पैसे के लिए करते हैं. यह सिर्फ शारीरिक सुख पाने का जरिया नहीं है."

तस्वीर: Lauren Farrow

एक एनजीओ के मुताबिक राजस्थान से मुंबई में करीब 1,200 लड़कियां सेक्स वर्कर के रूप में काम कर रही हैं. इस पेशे में जेल जाने, एचआईवी वायरस से संक्रमित होने और अन्य सेक्स बीमारियां लगने का खतरा लगातार बना रहता है.

पिंकी तो अब "रिटायर" हो रही है लेकिन उसकी तीन बहनें और 16 साल की बेटी अब अपने परिवार का खर्च चलाने के लिए इस पेशे में उतर गई हैं. ये सभी राजस्थान के कंजर समुदाय से हैं और नटों की तरह पेट पालने के लिए अब वेश्यावृति का ही सहारा लेती हैं.

ये समुदाय पारंपरिक रूप से लोगों का खेल और नाच दिखा कर मनोरंजन करते रहे हैं लेकिन ब्रिटिश शासन के समय में उन्हें आपराधिक जाति करार दिया गया. इस वजह से उनका बड़े गांवों में आना मुश्किल हो गया और फिर उन्हें वेश्वावृति की राह पकड़नी पड़ी.

समुदाय में 12 साल के बाद की उम्र में ही तय हो जाता है कि लड़की को वेश्या बनाना है या नहीं. अगर लड़की बोलचाल और देखने में अच्छी है तो उसे वेश्या बनने के लिए मजबूर किया जाता है और अगर ऐसा नहीं है तो फिर उसकी शादी की जाती है.

तस्वीर: Lauren Farrow

सामाजिक कार्यकर्ता निर्वाण बोधिसत्व को जब इस समस्या का पता चला तो उन्होंने 2001 में निर्वाणवन फाउंडेशन को स्थापित किया. निर्वाण अलवर में 12 प्राइमरी स्कूल का संचालन कर रहे हैं जिसमें से 10 स्कूल विशेष रूप से नट और कंजर समुदाय के लिए ही हैं. इन स्कूलों में 5 से 10 साल के बच्चों को मुफ्त शिक्षा दी जाती है.

निर्वाण ने बताया, "इन बच्चों को प्राथमिक शिक्षा नहीं मिल पाती इसलिए हम उन्हें शुरुआती शिक्षा प्रदान करने की कोशिश कर रहे हैं. उसके बाद अगर उन्हें मुंबई या दुबई जाना पड़ता है तो कम से कम वे थोड़ा बहुत तो शिक्षित होते हैं.

शायद वे अपनी जिंदगी के बारे में, कुछ नया काम शुरू करने के बारे में सोच सकें." लेकिन फंड के अभाव में स्कूलों का संचालन एक चुनौती है. ऐसे शिक्षकों को ढूंढ पाना भी आसान नहीं है जो इन समुदायों के बच्चों को पढ़ाने के इच्छुक हैं.

वैसे ये समुदाय भी अपने बच्चों को स्कूल भेजने में आनाकानी करते हैं. उन्हें महसूस होता है कि अगर बच्चों को शिक्षा मिली तो फिर उनके विचार बदल जाएंगे जिससे फिर वे वेश्यावृत्ति को नहीं अपनाएंगे. हालांकि अब लोगों की सोच बदल रही है.

कुछ बच्चे डॉक्टर बनना चाहते हैं और लड़के भी आगे अपनी पढ़ाई को जारी रखने और बड़ा आदमी बनने का सपना देख रहे हैं. माता पिताओं को भी अपने बच्चों की पढ़ाई के फायदे नजर आने लगे हैं. अब वो सपना सच सा लगने लगा है कि नट और कंजर समुदाय की देह व्यापार से अलग भी एक जिंदगी हो सकती है.

रिपोर्ट: लॉरेन फैरो/एस गौड़

संपादन: उज्ज्वल भट्टाचार्य

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