दोस्ती भरे बंटवारे के 20 साल
३१ दिसम्बर २०१२दोनों देशों में मिल जुल कर ड्रामे तैयार होते हैं, साथ मिल कर प्रतिभाओं को खोजा जाता है, यहां तक कि सैनिक सहयोग भी किया जाता है.
1989 में बैंगनी क्रांति के साथ ही चेकोस्लोवाकिया में कम्युनिस्ट राज का अंत हुआ और तय किया गया कि देश को दो हिस्सों में बांट दिया जाएगा. एक जनवरी, 1993 को बिना किसी खून खराबे या विवाद के चेक गणराज्य और स्लोवाकिया नाम के दो देश बन गए.
समाजशास्त्री पावेल हॉलिक बताते हैं, "बंटवारा किसी समस्या की तरह नहीं हुआ. जब पहले विश्व युद्ध के बाद चेकोस्लोवाकिया का गठन किया गया, तो दोनों राष्ट्रों के रिश्तों के मुख्य मुद्दों को नहीं सुलझाया गया था."
ज्यादा आबादी वाला चेक गणराज्य केंद्रीय व्यवस्था पर नियंत्रण रखना चाहता था, जबकि स्लोवाक ज्यादा स्वायत्तता चाहते थे. इस मुद्दे पर कभी चर्चा नहीं हुई. लेकिन दोनों राष्ट्रों के बीच फिर भी अच्छे रिश्ते बने रहे. इनके बीच एक ही भाषा बोली जाती है, जो टेलीविजन और फिल्मों में काफी सहायक साबित होती है.
स्लोवाकिया के सरकारी टेलीविजन पर अभी भी चेक गणराज्य के लोकप्रिय शाम के समाचार दिखाए जाते हैं. दोनों देशों ने मिल कर कई मनोरंजन कार्यक्रम तैयार किए हैं, ताकि खर्चे पर लगाम लगाया जा सके.
मिसाल के तौर पर चेक गणराज्य के टेलीविजन नोवा और स्लोवाक टीवी मरकीजा ने मिल कर "चेक-स्लोवाक सुपर स्टार" कार्यक्रम तैयार किया. अमेरिकन आयडल का यह पहला यूरोपीय संस्करण था.
वो तो यूरोपीय फुटबॉल संघ यूएफा ने इनकार कर दिया, वर्ना दोनों देश मिल कर संयुक्त फुटबॉल लीग भी शुरू करना चाहते थे. अभी भी वे संयुक्त आइस हॉकी लीग की कोशिश कर रहे हैं.
दोनों देशों ने मिल कर कई देशों में नाटो के लिए संयुक्त सेना भेजी है और स्लोवाक सरकार का कहना है कि इस तरह का सहयोग आने वाले दिनों में और बढ़ने वाला है.
जानकारों का कहना है कि स्लोवाकिया को इस सहयोग की ज्यादा जरूरत है, जहां किसी भी मौके पर आसानी से चेक भाषा बोली जा सकती है. दोनों देशों की भाषाएं बिलकुल मिलती जुलती हैं, लिहाजा सरकारी स्तर पर भी इनके अनुवाद की जरूरत नहीं है. स्लोवाकिया में करीब 55 लाख लोग रहते हैं.
लेकिन चेक गणराज्य में स्थिति थोड़ी अलग है. डेढ़ लाख स्लोवाक अभी भी वहां रहते हैं. लुबिका स्वारोव्स्का जैसे लोगों के लिए चेक भाषा मादरी जुबान है. वह अल्पसंख्यक स्लोवाक लोगों के लिए चेक गणराज्य की राजधानी प्राग से खास रेडियो कार्यक्रम प्रसारित करती हैं. इसमें स्लोवाक लोगों की आम जिंदगी की परेशानियों के बारे में चर्चा होती है.
चेक और स्लोवाक भाषाओं में कई शब्द समान हैं लेकिन चेक गणराज्य में कई बार स्लोवाक ड्रामे को डब किया जाता है. कुछ चेक नागरिक खुद को स्लोवाक भाषा के साथ सहज नहीं महसूस कर पाते. स्वारोव्स्का का कहना है, "जब पहली बार उनके पड़ोसियों ने उन्हें बोलते सुना तो उन्हें लगा कि जैसे हम क्रोएशिया के हैं."
बहरहाल, दोनों ही देश अलग होने की सालगिरह साथ मनाते हैं. इस मुद्दे पर एक जनमत संग्रह की कोशिश की गई थी, जो नहीं हो पाया. स्वारोव्स्का को इस पर गहरा अफसोस है, "चेकोस्लोवाकिया के टूटने से मुझे बहुत दुख हुआ. मुझे बहुत गुस्सा आया कि नेताओं ने आम लोगों से इस बारे में कुछ नहीं पूछा."
हालांकि इतिहासकार ओल्डरिच टूमा का कहना है कि जनमत संग्रह नहीं कराना ही उस समय सही फैसला लग रहा था, "उस समय कोई जनमत संग्रह नहीं चाहता था क्योंकि वे बंटवारे में किसी तरह का मतभेद नहीं देखना चाहते थे." टूमा प्राग इंस्टीट्यूट फॉर कंटेंपररी हिस्ट्री में पढ़ाते हैं. उनका कहना है, "आखिर में, देश अच्छे तरीके से टूटा. युगोस्लाविया से बिलकुल अलग तरीके से, बिना किसी हिंसा या झंझट के."
एजेए/एमजे (डीपीए)