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समाज

समलैंगिकों को सुप्रीम कोर्ट से आस

२७ जुलाई २०१८

भारत में समलैंगिकता को कानूनी रूप से अपराध माने जाने से एलजीबीटी समुदाय डर के साए में जी रहा है. उन्हें अक्सर ब्लैकमेलिंग, वसूली और यौन हिंसा का सामना करना पड़ता है.

लखनऊ का चंद्रशेखर आजाद पार्क समलैंगिक समुदाय के लोगों के जुटने की पसंदीदा जगह बना हुआ है.तस्वीर: DW/S.Phalnikar

हर शाम लखनऊ के चंद्रशेखर आजाद पार्क में कुछ युवा जुटते हैं और पेड़ों की छांव के पीछे खड़े होकर किसी का इंतजार करते हैं. इंतजार अपने गे पार्टनर का होता है. यह पार्क गे पार्टनर्स को ढूंढने के लिए मशहूर हो चुका है, लेकिन यहां हमेशा डर का साया बना रहता है कि कहीं पुलिस अरेस्ट न कर ले. 

36 वर्षीय राहुल (बदला हुआ नाम) कहते हैं, ''इस पार्क में आकर हम अपनी इच्छाओं को पूरा करते हैं.'' वह अपनी 12 साल की बेटी को ट्यूशन के लिए छोड़कर आने के बाद यहां आते हैं. राहुल जैसे कई पुरुष हैं जो पिता और पति हैं, और गे भी हैं. वे अपनी सच्चाई बता नहीं सकते क्योंकि समाज उन्हें स्वीकार नहीं करेगा. कई बार देखा गया है कि परिवार बदनामी के डर से जबरन शादी करा देता है. ऐसे में ये लोग घुटन में रहने और दोहरी जिंदगी जीने को मजबूर होते हैं. 

30 लाख की आबादी वाले लखनऊ में एलजीबीटी समुदाय की आवाज सुनने वाला कोई नहीं है. समलैंगिक अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले एक्टिविस्ट आरिफ जाफर कहते हैं, "एलजीबीटी लोगों की जिंदगी नर्क से कम नहीं होती. हमारी रिसर्च से मालूम चला है कि 40 फीसदी आत्महत्या के मामलों में कारण समलैंगिकता को अपराध मानना है. उन्हें पुलिस का और समाज से निकाले जाने का डर सताता रहता है."

विशाल (बदला हुआ नाम) पेशे से सेक्स वर्कर हैं. वह बताते हैं, ''कुछ साल पहले मैं एक होटल में गया जहां कमरे में दो पुलिसवाले और एक अन्य आदमी मौजूद थे. उन्होंने मेरे साथ रेप किया, भद्दी गालियां दी और मेरा फोन व पैसा लेकर भाग गए. उन्होंने धमकी दी कि वह मुझे गिरफ्तार कर जेल में डाल देंगे और परिवार वालों को बता देंगे कि मैं गे हूं.''

एलजीबीटी के अधिकारों की आवाज उठाने वाले संगठनों की माने तो समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी में लाए जाने से इन लोगों का शोषण हुआ है. मसलन, अगर वे ब्लैकमेल या यौन हिंसा का शिकार हुए, तो पुलिस के पास शिकायत दर्ज कराने से डरते हैं कि कहीं उन्हें ही जेल में न डाल दिया जाए.

जाफर के मुताबिक, "पुलिस खुद गे लोगों को पकड़कर उन्हें प्रताड़ित करती है. ऐसे में कानून से न्याय की उम्मीद करना बेकार है.'' 2001 में हुए एक वाकये का जिक्र कर जाफर बताते हैं, ''मैं गे और ट्रांसजेंडर लोगों को एचआईवी के प्रति जागरूक करने के लिए कार्यक्रम कर रहा था. पुलिस आई और मुझे व मेरे अन्य साथियों को धारा 377 के तहत जेल में डाल दिया. हम पर कुकर्म करने के आरोप लगे.''

आरिफ जाफर लखनऊ में समलैंगिक समुदाय के हकों की लड़ाई लड़ रहे हैं.तस्वीर: DW/S.Phalnikar

भारतीय समाज में समलैंगिकता कलंक माना जाता है और कानून में इसे अपराध माने जाने से संकट और बढ़ जाता है. मार्केटिंग में मास्टर्स करने के बाद प्राइवेट कंपनी में उच्च पद पर काम कर रहे 29 वर्षीय राज (बदला हुआ नाम) को अपने ऑफिस में दिक्कतों का सामना करना पड़ा और उन्होंने नौकरी छोड़ दी. वह कहते हैं, ''मैंने महसूस किया कि पढ़े-लिखे लोग भी मजाक उड़ाते हैं. मेरे साथ लंच करना उन्हें पसंद नहीं आता था. अब मैं समलैंगिक अधिकारों की लड़ाई से जुड़े लोगों के साथ काम करता हूं''

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रोजाना की प्रताड़ना और लोगों की हिकारत भरी नजरों का सामना करने वाले समलैंगिकों की आस अब सुप्रीम कोर्ट से है. समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर लाने की याचिका डालने वालों में से एक जाफर को उम्मीद है कि समुदाय को न्याय मिलेगा. वह कहते हैं, ''समलैंगिकों को अपराध माने जाने से हमारे मूल अधिकार का हनन होता है. हमारा घर के बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है.''

राहुल समेत लखनऊ के अन्य समलैंगिक युवाओं का मानना है कि अगर कानून बदलेगा तो कोई पुलिसवाला उन्हें ब्लैकमैल नहीं कर पाएगा, "लोग अगर हमारा मजाक उड़ाएंगे तो हम पलटकर जवाब दे पाएंगे. पूरे समाज की सोच बदलने में वक्त लगेगा, लेकिन कम से कम पहले के मुकाबले हमारा डर कम हो जाएगा."

सोनिया फलनिकर/वीसी

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