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दो महीने में तीसरी बार बदली भारत की वैक्सीन नीति

७ जून २०२१

दूसरी लहर से उबरते भारत में वैक्सीन के तीन चौथाई की खरीद अब केंद्र सरकार करेगी, बाकी 25 प्रतिशत वैक्सीन प्राइवेट सेक्टर खरीद सकेगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित कर वैक्सीन नीति में बदलाव की जानकारी दी.

Indien Narendra Modi Rede Menschenansammlungen
तस्वीर: Anuwar Hazarika/NurPhoto/picture alliance

भारत सरकार ने पिछले दो महीने में तीसरी बार अपनी वैक्सीन नीति में बदलाव किया है. सरकार ने 21 जून से 18 साल से ऊपर के सभी भारतीयों के लिए राज्यों को मुफ्त वैक्सीन मुहैया कराने की बात कही है. प्रधानमंत्री मोदी ने देश को संबोधित कर वैक्सीन नीति में किए गए इन बदलाव की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि देश में निर्मित कुल वैक्सीन के 75 फीसदी हिस्से की खरीद अब केंद्र सरकार करेगी, बाकी 25 फीसदी वैक्सीन की खरीद प्राइवेट सेक्टर कर सकेगा. अप्रैल तक केंद्र सरकार ही सभी निर्माताओं से वैक्सीन लेकर राज्यों और प्राइवेट सेक्टर को मुहैया करा रही थी.

अप्रैल के अंत में केंद्र ने नीति में बदलाव करते हुए केंद्र और राज्य के लिए आधे-आधे वैक्सीन खरीद की बात कही थी. लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट में दिए सरकार के हलफनामे के मुताबिक वास्तव में यह फॉर्मूला केंद्र-राज्य और प्राइवेट सेक्टर के लिए क्रमश: 50-25-25 फीसदी खरीद का था. सोमवार को तीसरी बार नीति में बदलाव के बाद अब वैक्सीन खरीद का फॉर्मूला केंद्र सरकार और प्राइवेट सेक्टर के लिए 75-25 हो जाएगा.

शोक मनाते संबंधीतस्वीर: Samuel Rajkumar/REUTERS

राज्यों को खरीद का अधिकार देने से फैली अव्यवस्था

जब केंद्र वैक्सीन की अकेली खरीदार थी, तब मैन्युफैक्चरिंग यूनिट से लोगों तक वैक्सीन पहुंचाने का एक मजबूत सिस्टम था. पुणे से सीरम इंस्टीट्यूट में तैयार कोवीशील्ड और हैदराबाद-बेंगलुरु के भारत बायोटेक सेंटर में तैयार कोवैक्सीन को एयरपोर्ट ले जाकर केंद्र सरकार की ओर से तय विमानों पर चढ़ा दिया जाता था. 16 जनवरी से ही भारत की विमानन कंपनियां वैक्सीन ढुलाई कर रही थीं. हालांकि हवाई ढुलाई महंगी होने के चलते बाद में इन्हें सड़क मार्ग से ले जाया गया. ये वैक्सीन नई दिल्ली, मुंबई, करनाल, कोलकाता और चेन्नई में केंद्र के बड़े स्टोरेज डिपो में स्टोर रहती थीं, जिन्हें बाद में 29 हजार कोल्ड चेन प्वाइंट नेटवर्क के जरिए राज्यों को भेजा जाता था. केंद्र तय करता था कि किस राज्य को कितनी वैक्सीन दी जानी है.

राज्यों के पास खरीद का अधिकार आते ही गड़बड़ी शुरू हो गई. उनके लिए वैक्सीन का ट्रांसपोर्टेशन और स्टोरेज आसान नहीं था. साथ ही यह नागरिकों तक पहुंचने वाली वैक्सीन का खर्च भी बढ़ा रहा था. इसके अलावा राज्यों में वैक्सीन खरीद की होड़ लग गई. वैक्सीन निर्माता राज्यों के ऑर्डर तुरंत डिलिवर कर पाने में असमर्थ थे. ऐसे में कई राज्यों ने वैक्सीन खरीद के लिए ग्लोबल टेंडर भी निकाले. नए फॉर्मूले से उपजी इन अव्यवस्थाओं के चलते ही मई में वैक्सीनेशन में भारी कमी आई. हाउ इंडिया लिव्स डॉट कॉम की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1 अप्रैल को हुए वैक्सीनेशन के मुकाबले कम से कम 22 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में वैक्सीनेशन में कमी आई. केरल में रोजाना 66 फीसदी और तेलंगाना में 64 फीसदी कम लोगों को वैक्सीन लग रही थी.

इस स्ट्रेन ने मचाया कहरतस्वीर: Christian Ohde/CHROMORANGE/picture alliance

सुप्रीम कोर्ट की लताड़ के बाद वैक्सीन नीति में बदलाव

पिछले हफ्ते वैक्सीन से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने केंद्र की टीकाकरण नीति को मनमाना और तर्कहीन कहा था. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट देश भर में वैक्सीन की कीमत एक समान होने की बात भी कह चुका था. लेकिन पिछले हफ्ते केंद्र की टीकाकरण नीति की आलोचना करते हुए उसने कहा कि अदालतें मूक दर्शक नहीं बनी रह सकतीं.

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से टीकाकरण नीति पर विस्तृत रिपोर्ट भी मांगी थी और यह भी पूछा था कि वैक्सीन कब-कब खरीदी गई है. और इसके लिए साल 2021-22 के बजट में निर्धारित 35 हजार करोड़ रुपये में से अब तक हुए खर्च का हिसाब देने को भी कहा गया था. यह भी पूछा गया था कि 18-44 आयु के नागरिकों के लिए यह बजट क्यों इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. इन सभी सवालों का जवाब देने के लिए केंद्र को 2 हफ्ते का समय दिया गया था.

कोरोना के कारण बेहाल अस्पतालतस्वीर: Uma Shankar Mishra/AFP/Getty Images

यूपी चुनावों से पहले आया फैसला

भारत में ओम थानवी सहित कई बुद्धिजीवी इस फैसले के लिए जहां सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी को जिम्मेदार मान रहे हैं, राजनीतिक विश्लेषक अभय कुमार दुबे इसका राजनीतिक महत्व भी देखते हैं. उनके मुताबिक, "बंगाल की हार के बाद उत्तर प्रदेश के चुनाव बीजेपी के लिए लिटमस टेस्ट हैं. इसी बीच कोरोना की दूसरी लहर के गांव में गंभीर असर के चलते सिर्फ उत्तर प्रदेश में लाखों मौतें हुई हैं. सरकार ने आंकड़ों का मैनेजमेंट करने की भरपूर कोशिश की है लेकिन वायरस की मार झेलने वाली जनता के अंदर तो दुख, क्षोभ और निराशा है. ऐसे में निश्चित रूप से फैसले का राजनीतिक महत्व है."

अभय दुबे कहते हैं, "नरेंद्र मोदी की छवि अब तक 'टेफ्लॉन कोटेड' मानी जाती थी लेकिन यह भ्रम भी टूटा है. तमाम सर्वे यह बात साबित कर चुके हैं." ऐसे में केंद्र सरकार के फैसले को राजनीतिक फैसला माना जा रहा है. सरकार पर टीके की खरीद को लेकर बहुत दबाव था. कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियां राज्यों को सीधे टीका बेचने से मना कर चुकी थी. बहुत से राज्य ये अतिरिक्त खर्च उठाने की स्थिति में भी नहीं थे. उन पर 350 से 500 अरब रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ता. इसके अलावा कोविड से विश्वव्यापी संघर्ष में भारत की भूमिका को देखते हुए अमेरिका ने उसे बड़े पैमाने पर अतिरिक्त टीका मुहैया कराने की पेशकश की है.

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