दो साल में तालिबानी शासन ने छीन ली महिलाओं की आजादी
शबनम फॉन हाइन
१५ अगस्त २०२३
अफगानी लोगों महसूस करते हैं कि उन्हें अकेले छोड़ दिया गया है. जब से तालिबान ने सत्ता पर कब्जा किया है तब से ऐसी सामाजिक पाबंदियां लगाई गई हैं कि महिलाओं और लड़कियों की आजादी खतरे में पड़ गई है.
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ईमानदारी से कहूं तो मुझे लगता है कि मैं एक बुरा सपना जी रही हूं. यह कहना मुश्किल है कि पिछले दो सालों में हमने क्या झेला है. 29 साल की मारूफ ने यह बात डीडब्ल्यू से फोन पर कही. काबुल की रहने वाली मारूफ ने महिलाओं और बच्चों के लिए एक गैर-सरकारी संगठन बनाया था लेकिन 15 अगस्त 2021 में तालिबान ने जब काबुल में कदम रखा तो उनकी संस्था बंद कर दी गई. 20 साल तक अफगानिस्तान में रहने के बाद नाटो सेनाओं के बाहर निकलने का वक्त आया तो कट्टरपंथी इस्लामिक गुट तालिबान ने बहुत तेजी के साथ आगे बढ़ते हुए पूरे देश में पांव पसार लिए. यह महज कुछ हफ्तों के अंदर हुआ.
तालिबान ने इस वादे के साथ सत्ता पर कब्जा किया था कि इस्लामिक कानून यानी शरिया के दायरे में महिला अधिकारों का सम्मान होगा लेकिन पिछले दो सालों में तस्वीर इसके उलट रही है. ऐसी तमाम पाबंदियां और बैन लगाए गए हैं जिन्होंने सार्वजनिक जीवन में महिलाओंकी हिस्सेदारी खत्म कर दी है जैसे शिक्षण संस्थाओं और दफ्तर जाने की शर्तें.
तालिबान की 'होली' में जलाये गए गिटार, हारमोनियम, तबला
तालिबान ने अफगानिस्तान में सत्ता में आते ही सार्वजनिक स्थानों पर संगीत बजाने पर पाबंदी लगा दी थी. अब वाद्य यंत्रों को जला कर तालिबान ने संगीत के प्रति अपनी नफरत का और भी वीभत्स चेहरा दिखाया है. देखिये तस्वीरों में.
तस्वीर: Afghanistan's Ministry for the Propagation of Virtue and the Prevention of Vice/AFP
वाद्य यंत्रों की 'होली'
तालिबान सरकार के नैतिकता मंत्रालय ने जब्त किये हुए वाद्य यंत्रों और उपकरणों की 'होली' जलाई है. यह 'होली' 30 जुलाई को को हेरात प्रांत में जलाई गई.
तस्वीर: Afghanistan's Ministry for the Propagation of Virtue and the Prevention of Vice/AFP
गिटार, हारमोनियम, तबला - सब खाक
जिन चीजों को आग लगाई गई उनमें एक गिटार, दो और तार वाले वाद्य यन्त्र, एक हारमोनियम, एक तबला, एम्पलीफायर और स्पीकर भी शामिल थे. इनमें से अधिकांश चीजों को हेरात के वेडिंग हॉलों से जब्त किया गया था.
तस्वीर: Afghanistan's Ministry for the Propagation of Virtue and the Prevention of Vice/AFP
सैकड़ों डॉलर का सामान
जला दिए गए समाना की कीमत सैकड़ों डॉलर थी, लेकिन संगीत प्रेमियों के लिए यह सब बेशकीमती सामान था. तालिबान संगीत को अनैतिक मानता है.
तस्वीर: Hussein Malla/AP Photo/picture alliance
क्या कहा तालिबान ने
'सदाचार को बढ़ावा देने और दुराचार को रोकने' के मंत्रालय के हेरात विभाग के मुखिया अजीज अल-रहमान अल-मुहाजिर ने कहा, "संगीत को बढ़ावा देने से नैतिक भ्रष्टाचार होता है और उसे बजाने से युवा भटक जाएंगे."
तस्वीर: Bernat Armangue/AP Photo/picture alliance
इस्लाम के बहाने
अगस्त 2021 में सत्ता हथियाने के बाद से तालिबान के अधिकारियों का इस्लाम के जिस कट्टर रूप में विश्वास है उसे लागू करने के लिए कई नियम और कानूनों की घोषणा की है. इनमें सार्वजनिक स्थानों पर संगीत बजाने पर बैन भी शामिल है.
तस्वीर: Bernat Armangue/AP/picture alliance
महिलाओं पर गिरी गाज
नए नियमों का सबसे बड़ा खामियाजा महिलाओं को भुगतना पड़ा है. वो बिना हिजाब पहने घर से बाहर नहीं का सकतीं. किशोर लड़कियों और महिलाओं को स्कूलों और विश्वविद्यालयों से प्रतिबंधित कर दिया है. देशभर में हजारों ब्यूटी पार्लरों को भी बहुत खर्चीली या गैर-इस्लामी बता कर बंद कर दिया गया है.
सीके/एए (एएफपी)
तस्वीर: ALI KHARA/REUTERS
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कब्जेसेपहलेचेतावनी
मारूफ कहती हैं, मुझे समझ नहीं आता कि इस बात की उम्मीद कहां से जगी कि तालिबान बदल गए हैं या बेहतर हुए हैं. हमें हमेशा से मालूम था कि उनके शासन में हम वो सब खो देगें जो हमने हासिल किया है.
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वह आगे कहती हैं, "सत्ता पर कब्जे के बीस दिन पहले, काबुल में हम जैसी महिला कार्यकर्ताओं ने एक प्रेस कांफ्रेस की थी ताकि लोगों को हालात के बारे में फिर से बताया जा सके. हमने कहा कि आप उन इलाकों की तरफ देखिए जो तालिबान के कब्जे में हैं और कैसे वो महिला अधिकारों से चिढ़ते हैं लेकिन हमारी किसी ने नहीं सुनी.”
काबुल पर कब्जे पर से पहले ही अफगानिस्तान के कई ग्रामीण इलाकों पर तालिबान जमे हुए थे. इन क्षेत्रों में महिलाओं और लड़कियां घरों में बंद रहती हैं. उनके हिस्से में बेटी, पत्नी और मां की परंपरागत भूमिका है. यह हालात बिल्कुल वैसे ही हैं जैसे 1996 से 2001 के बीच पहले रह चुके हैं. उस वक्त भी अफगानी महिलाओं और लड़कियों को पढ़ने या काम करने की इजाजत नहीं थी. किसी पुरुष के बिना वह घर से बाहर नहीं निकल सकती थीं. तालिबानी आदेशों को तोड़ने वाली महिलाओं पर सार्वजनिक रूप से कोड़े बरसाए जाते थे.
अफगानिस्तान के भीतर शांति समझौतों के लिए जिम्मेदार रहे शांति मंत्रालय में उप-मंत्री अलेमा अलेमा ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि 1990 के दशक वाले तालिबान और आज में कोई फर्क नहीं है. बस वह पहले से ज्यादा सतर्क और अनुभवी हैं. अलेमा कहती हैं, सत्ता में आने के बाद से उन्होंने 51 बैन लगाए हैं जिनसे महिलाएं प्रभावित हैं. इसका मतलब है हर महीने एक बैन. उन्होंने एक साथ इन सबका ऐलान नहीं किया क्योंकि वह लोगों को डराना नहीं चाहते थे. अफगानिस्तान में भी उन्हें थोड़ा संभलकर चलना पड़ रहा है जिससे ताकत हासिल करने से पहले वह समाज को अपना दुश्मन ना बना लें.
नाटोसेनाओंकीवापसी
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की अगुआई वाली अमेरिकी सरकार ने 2018 में तालिबान के साथ सीधे बातचीत शुरू की. अब जर्मनी में रहने वाली अलेमा को लगता है कि अगर ट्रंप प्रशासन ने राष्ट्रपति गनी और स्थानीय विशेषज्ञों को बातचीत में शामिल किया होता शायद नतीजा दूसरा होता. अमेरिका और उसके साथी तालिबान के साथ कतर की राजधानी दोहा में बातचीत करना चाहते थे. इसका लक्ष्य था कि अफगानिस्तान से सेनाओं की शांति से वापसी हो सके जहां तालिबान ने लड़ाई शुरू कर दी थी.
इस लड़ाई में हजारो अफगानी लोग और सैनिक मारे गए. हालांकि बातचीत का नतीजा यह हुआ कि 29 फरवरी 2020 को सेनाओं की वापसी का वक्त तय करने में सफलता मिली. अलेमा कहती हैं, फरवरी 2020 के समझौते में अफगानिस्तान के भीतर ही शांति वार्ता की बात कही गई जिसमें तालिबान सरकार से सीधे सौदेबाजी करे...हालांकि तालिबान ने हमसे बातचीत में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई.
समझौतानेतोड़ाअफगानहौसला
तालिबान के साथ अमेरिका की सीधी बातचीत ने उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में मदद की. अपने दोहा दफ्तर में उन्होंने वह समझौता किया जिससे अफगानिस्तान में शांति की उम्मीद थी लेकिन उसी डील ने अफगान सेना का हौसला तोड़ा. तालिबान के बढ़ते कदमों को रोकने की जद्दोजहद थम गई.
अफगानिस्तानी पत्रकार और अरियाना रेडियो ऐंड टेलीविजन के पूर्व प्रबंध निदेशक खुशाल आसेफी कहते हैं, "अगस्त 2021 में अफगानिस्तान में जो हुआ वह तालिबान की सैन्य जीत नहीं थी बल्कि एक राजनैतिक फैसला था. तालिबान के साथ पर्दे के पीछे क्या समझौता हुआ, यह किसी को नहीं पता. ऐसा लगा कि पश्चिमी देशों ने सरकार से समर्थन खींच लिया था.” आसेफी को भी देश छोड़ना पड़ा क्योंकि उन्हें कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा था और जान का खतरा भी था. वह कहते हैं, "पिछले दो साल का घटनाक्रम इस अहसास को गहरा कर देता है कि देश को तालिबान के हाथों में छोड़ दिया गया है. अब इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह देश में किस तरह की तहस-नहस मचाए हुए हैं. अब तालिबानी नीतियों की निंदा करने से ज्यादा कुछ नहीं होता. अर्थव्यवस्था तबाह है और 20 लाख से ज्यादा लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं. लोग सिर्फ जीने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.”
अफगानिस्तान: ब्यूटी पार्लर बैन होने से 60,000 महिलाओं के सामने खड़ा हुआ संकट
तालिबान के आदेश के बाद अफगानिस्तान के हजारों ब्यूटी पार्लर 25 जुलाई से बंद कर दिए गए. इन ब्यूटी पार्लरों के बंद होने से वहां काम करने वाली महिलाओं की आय का जरिया तो बंद ही हो गया,साथ ही अन्य महिलाओं से संपर्क भी टूट गया.
तस्वीर: ALI KHARA/REUTERS
ब्यूटी पार्लर आय का एक जरिया
अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था की हालत तो पहले से ही पतली है, लेकिन तालिबान के आदेश के बाद 25 जुलाई को देश के सभी ब्यूटी पार्लर बंद कर दिए गए. उद्योग से जुड़े जानकारों का अनुमान है कि देश में कुल 12 हजार ब्यूटी पार्लर हैं.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
खत्म हो गई आर्थिक आजादी
34 साल की मरजिया रेयाजी पिछले आठ साल से अफगानिस्तान में केवल महिलाओं का ब्यूटी पार्लर चलाती आ रही थीं. ब्यूटी पार्लर के सहारे वो अपने परिवार का समर्थन करती रही हैं लेकिन अब ब्यूटी पार्लर का बिजनेस बंद होने से उनके पास कोई और विकल्प नहीं बचेगा. उन्होंने अपना बिजनेस शुरू करने के लिए करीब 18 हजार डॉलर खर्च किए थे.
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"हम काम करना चाहते हैं"
रेयाजी कहती हैं, "अब हम यहां काम नहीं कर पाएंगे. हम अपने परिवार का पेट नहीं पाल पाएंगे. हम काम करना चाहते हैं." रेयाजी अफगानिस्तान में महिलाओं के लिए महिलाओं द्वारा ब्यूटी पार्लर चलाने वाली हजारों महिलाओं में से एक हैं. एक अनुमान के मुताबिक तालिबान के इस आदेश के बाद इस सेक्टर से जुड़ीं 60,000 महिलाएं प्रभावित होंगी.
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तालिबान छीन रहा अधिकार
काबुल के एक ब्यूटी पार्लर में बहारा नाम की ग्राहक ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "हम यहां आकर अपने भविष्य के बारे में बातें कर समय बिताते थे. लेकिन अब हमसे यह अधिकार भी छीन लिया गया है."
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अफगान समाज से गायब होती महिलायें
ब्यूटी सलून में बतौर मेक अप आर्टिस्टि काम करने वाली एक महिला ने नम आंखों से कहा, "तालिबान दिन-ब-दिन महिलाओं को समाज से खत्म करने की कोशिश कर रहा है. हम भी तो इंसान हैं." इस महिला ने सुरक्षा कारणों से अपना नाम नहीं बताया.
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देश की महिला उद्यमियों का क्या होगा
अफगानिस्तान के लिए संयुक्त राष्ट्र महासचिव की विशेष प्रतिनिधि रोजा इसाकोवना ओटुनबायेवा ने तालिबान के आदेश पर चिंता जताते हुए कहा, "यह महिला उद्यमियों पर प्रभाव डालेगा, गरीबी में कमी लाने के कदम और आर्थिक सुधार के लिए यह एक झटका है."
तस्वीर: Rahmat Gul/AP/picture alliance
कम हो जाएंगी कमकाजी महिलाएं
अंतरराष्ट्रीय श्रम संघ (आईएलओ) ने रॉयटर्स को बताया कि प्रतिबंध से महिलाओं के रोजगार में भी "महत्वपूर्ण" कमी आएगी. आईएलओ के मुताबिक अफगानिस्तान की विदेश समर्थित सरकार के शासन के दौरान औपचारिक कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी 23 प्रतिशत के आसपास थी.
तस्वीर: ALI KHARA/REUTERS
तालिबान का बेतुका तर्क
अफगानिस्तान के नैतिकता मंत्रालय की ओर से चार जुलाई को ब्यूटी पार्लर को बैन करने संबंधी आदेश में कहा गया था कि उसने यह आदेश इसलिए दिया क्योंकि मेकअप पर बहुत ज्यादा खर्च हो रहा है और गरीब परिवारों को कठिनाई होती है. तालिबान का कहना है कि सैलून में होने वाले कुछ ट्रीटमेंट गैर-इस्लामी हैं.
तस्वीर: ALI KHARA/REUTERS
महिलाओं के लिए बदतर होते हालात
अगस्त 2021 में सत्ता कब्जाने के बाद से तालिबान ने महिलाओं पर कई तरह की पाबंदियां लगाई हैं. उनका हाई स्कूलों और विश्वविद्यालयों में पढ़ना बंद कर दिया गया है. उन्हें पार्कों, मेलों और जिम आदि सार्वजनिक स्थानों पर जाने की मनाही है.
तस्वीर: Felipe Dana/AP Photo/picture alliance
महिलाओं के लिए क्या है तालिबान की सोच
तालिबान के सुप्रीम लीडर अखुंदजादा ने जून 2023 में कहा था कि इस्लामिक नियमों को अपनाकर महिलाओं को पारंपरिक अत्याचारों से बचाया जा रहा है और उनके "सम्मानित और स्वतंत्र इंसान" के दर्जे को फिर से स्थापित किया जा रहा है. तालिबान का कहना है कि वह इस्लामी कानून और अफगान संस्कृति की अपनी व्याख्या के मुताबिक ही महिलाओं के अधिकारों का सम्मान करता है.