पहले बागों में तितलियां दिखा करती थीं लेकिन अब शहर में रहने वाले बच्चे सिर्फ तस्वीरों में ही तितलियां देख पाते हैं. जर्मनी की एक छात्रा को इस बात का अहसास हुआ और वह निकल पड़ी तितलियों को जानने समझने.
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16 साल की अना मुलर अपने घर के आसपास तितलियों की तलाश करती रहती है. पिछले पांच सालों में अना ने अपने इलाके की जैव विविधता का काफी ब्यौरा जमा किया. यह कहना मुश्किल है कि इलाके में पाई जाने वाली पाई जाने वाली प्रजातियां घट रही हैं या गायब हो रही है, लेकिन अना को तितलियों की कुछ नई प्रजातियां जरूर दिखी हैं. अना मुलर बताती हैं, "बीस साल पहले यहां ब्रेंथिस डाफ्ने तितलियां नहीं हुआ करती थीं. आजकल मैं उन्हें गर्मियों में हमेशा देखती हूं. इससे साफ है कि जलवायु परिवर्तन का असर हो रहा है."
तितलियों को देखने के शौक ने पर्यावरण संरक्षण के लिए अना की प्रतिबद्धता बढ़ा दी है. बीते साल गर्मियों में अना ने पर्यावरण सेमिनार 2 डिग्री कैंपस में हिस्सा लिया. इसका आयोजन वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड ने किया था. यह प्रोग्राम युवा लोगों को फील्डवर्क के लिए भेजता है ताकि वे जलवायु परिवर्तन से लड़ना सीख सकें. अना की टीम का फोकस पोषण पर है. खेतीबाड़ी से कई तरह की ग्रीनगाउस गैसें बनती हैं. एक ऑर्गेनिक फार्म में उन्हें पर्यावरण के लिए उपयुक्त खेती के तरीकों के बारे में बताया गया. अना ने कहा, "पर्यावरण संरक्षण मजे का काम है, क्योंकि इससे मुझे तसल्ली मिलती है. मुझे लगता है कि मैं कुछ सार्थक कर रही हूं. मुझे मजा आता है."
ऑर्गेनिक फार्म की सैर के दौरान छात्रों को पता चलता है कि जानवर क्या खाते हैं, कौन सी फसल कब होती है. छात्र इन सूचनाओं को अपने दोस्तों के लिए रिकॉर्ड करते हैं. कई बच्चों की पर्यावरण सुरक्षा में दिलचस्पी होती है, लेकिन उनके आसपास के बहुत से लोगों को अभी भी संशय है. कई बार आपको लोगों से बहस करनी पड़ती है. बहुत से लोगों को जलवायु परिवर्तन पर विश्वास नहीं है.
2 डिग्री कैंपस का मकसद जलवायु परिवर्तन के लिए जागरूकता बढ़ाना है. इस साल का प्रोग्राम अक्टूबर तक चलेगा. अना बताती हैं, "2 डिग्री प्रोग्राम के जरिए मैंने अपनी खाने पीने की आदतों, दूसरे देशों और हम पर उसके असर के बारे में बहुत कुछ सीखा है. जरूरतों को कम करना मुश्किल है, खासकर जब आप दूसरे लोगों के साथ हों, वे सब मीट खाते हैं. लेकिन कुल मिलाकर यदि आप चाहते हैं तो पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं."
अना तितलियों की तस्वीरें प्रजातियों की जानकारी वाले ऑनलाइन डाटाबेस आर्टेनफिंडर में अपलोड करती है. यहां जर्मनी के राइनलैंड पलेटिनेट प्रांत के लोग पेड़ पौधों और जीव जंतुओं के बारे में जानकारी साझा करते हैं. अना ने भी करीब 700 जानकारियां दी हैं. वह कहती, "एक बार हम एक चरागाह में थे, नम चरागाह में. हम लार्ज कॉपर तितली की खोज में थे. और वह हमें मिल गई. बहुत अच्छा लगता है जब आप कुछ खोज रहे हों और वह आपको मिल जाए."
जल्द ही अना के पास तितलियों के पीछे भागने का समय नहीं होगा. खासकर हफ्ते के दिनों में जब वह स्कूल में होगी. वीकएंड में वह अपने अभियानों पर जा पाएगी, तितलियों की खोज में.
रिपोर्ट: माबेल गुंडलाख
कहां गई तितलियां?
हरे भरे मैदानों में इठलाती घूमती तितलियों की तादाद यूरोप में एकदम कम हो गई है. ताजा शोध के मुताबिक 1990 की तुलना में तितलियों की संख्या आधी हो गई है.
तस्वीर: Chris van Swaay
द कॉमन ब्लू
इस नाम से मशहूर तितली का जूलॉजिकल नाम पोलियोम्मैटस इकैरस है. यह कभी पूरे यूरोप, उत्तरी अफ्रीका और एशिया में मिलती थी. नदी किनारे निचले मैदानों या फिर पहाड़ों के मैदानों में ये पाई जाती हैं. हालांकि ये बहुत अच्छे से खुद को बदलती है, लेकिन ये भी अब खतरे में आ गई हैं. कारण मैदानों का खेतों और घरों में तब्दील हो जाना.
तस्वीर: Chris van Swaay
नुकसान
घास वाले मैदानों पर खूब जंगली फूल होते हैं. यहां द ऑरेंजटिप, द कॉमन ब्लू और ललवर्थ स्किपर नाम की तितलियां मिलती हैं. ये अलग अलग पौधों से रस लेती हैं. कुछ तितलियां मैदान पर बैठती हैं, तो कुछ खुद को बचाने के लिए पत्तों और फूलों के पीछे छिप जाती हैं. .
तस्वीर: Fotolia/hjschneider
बहुत खेती
बहुत ज्यादा खेती, ताकतवर कीटनाशकों और खाद के इस्तेमाल ने यूरोपीय संघ के कई इलाकों को बहुत जहरीला बना दिया है. यूरोपीय संघ में सामान्य कृषि नीति के तहत इन मैदानों की सुरक्षा के नियम तो हैं, लेकिन निर्देश साफ नहीं है और किसानों को फायदा नहीं के बराबर.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
सीधा असर
तितलियों के गायब होने का असर पक्षियों सहित उन जीवों पर भी पड़ता है जो तितलियां खा कर जिंदा रहते हैं. इस बात के काफी सबूत हैं कि तितलियों की संख्या जब भी कम होती है तो खाद्य श्रृंखला में ऊपर के जीव भी कम होने लगते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/ZB
रंग बिरंगी
ऑरेंज टिप नाम की इस तितली को विज्ञान की भाषा में एंथोकैरिस कार्डेमिनेस कहते हैं. इसने खेती में बढ़ोतरी के दौर में खुद को बचा लिया. इस प्रजाति की नर तितली के पंख भड़कीले रंग के होते हैं. ये जंगली फूलों का रस चूसती हैं और खुला पानी भी पी सकती हैं.
तस्वीर: cc-by-sa-Michael H. Lemmer
परागण कम
शोधकर्ताओं ने तितलियों की 17 प्रजातियों पर दो दशक तक शोध किया. इस दौरान उन्होंने तितलियों की संख्या, प्रजनन और खाने पर ध्यान दिया. उन्होंने चेतावनी दी कि तितलियां जरूरी हैं क्योंकि वे फूलों के परागण में मदद करती हैं और मधुमक्खियों की तरह कई कीटों का खाना होती हैं.
तस्वीर: AP
तितलियों के अंडे
तितलियां घास के तिनके या फूलों पर अंडे देती हैं या फिर ऊंची घास वाले मैदानों में. कैटरपिलर को बढ़ने के लिए जगह की जरूरत होती है और कोकून में बंद प्यूपा को सर्दियों में जिंदा रहने के लिए भी.
तस्वीर: cc-by-sa-Jörg Hempel
दो की सत्ता
मैदानों में पाई जाने वाली तितलियों की दो प्रजातियों की संख्या थोड़ी बढ़ी है, खासकर यूरोप में. रेड अंडरविंग स्किपर (स्पियालिया सर्टोरियस) और माजारीन ब्लू (सियानिरिस सेमियार्गस) की संख्या बढ़ी है. हालांकि ये भी बहुत ज्यादा खेती से बच नहीं पाएंगी. 20वीं सदी की शुरुआत में माजारीन ब्लू ब्रिटेन के मैदानों से बिलकुल गायब हो गई.
तस्वीर: entomart
बचने का मौका
यूरोप की कॉमन एग्रीकल्चरल पॉलिसी (कैप) में इन तितलियों को बचाने की संभावना है. कैप में संशोधन किया जा रहा है. अगर मैदान की विस्तृत परिभाषा को इस नीति में शामिल किया जाए, तो जंगली मैदानों को सुरक्षित रखने के लिए किसानों को सीधे पैसे दिए जा सकेंगे.
तस्वीर: picture alliance/Bildagentur-online/DP
टूटे पंख
यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी ईईए के मुताबिक जंगली घास वाले मैदानों के खत्म होने के कारण तितलियों की संख्या में एकदम कमी आई है. .