धरती को धरोहर का इंतजार
६ दिसम्बर २०१३नेल्सन मंडेला के अंतिम संस्कार की जानकारी देते हुए दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति जैकब जूमा ने कहा, "15 दिसंबर को रंगभेद से लड़ने वाले हीरो को उनके पैतृक घर ईस्टर्न केप में दफनाया जाएगा."
इससे पहले 10 दिसंबर को मंडेला का पार्थिव शरीर जोहानिसबर्ग के फुटबॉल स्टेडियम में रखा जाएगा. इस दौरान लोग आखिरी बार टाटा मदीबा को देख सकेंगे. इसी स्टेडियम में 2010 के फुटबॉल विश्व कप का फाइनल खेला गया था. तब मंडेला खुद दर्शक दीर्घा में थे. स्पेन के खिलाड़ियों के साथ वर्ल्ड कप ट्रॉफी हाथ में लिए मंडेला की उन्मुक्त हंसी, तब दुनिया भर के अखबारों की सुर्खियां बनी थीं.
स्टेडियम से मंडेला की अंतिम यात्रा ईस्टर्न केप के कुनू गांव का रुख करेगी. जोहानिसबर्ग से 700 किलोमीटर दूर इसी गांव में 18 जुलाई 1918 को मंडेला पैदा हुए. मां बाप ने नाम दिया, रोहिललाला यानी शरारती. नेल्सन नाम तो पहली बार स्कूल जाने पर उन्हें टीचर ने दिया. गांव का ये भोला नौजवान जब कानून की पढ़ाई के लिए जोहानिसबर्ग पहुंचा तब उसे पता चला कि ब्रिटिश हुकूमत उनके देश में कैसे अत्याचार कर रही है. युवा नेल्सन ने हथियार भी उठाए. मंडेला ने इसके बाद दक्षिण अफ्रीका में रह चुके अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी के बारे में जाना. बस वह दिन था मदीबा ने हिंसा का रास्ता छोड़ दिया. और इसी दिन उनके संघर्ष ने असीमित समर्थन हासिल करना शुरू कर दिया. कैद, कोड़े, उतार चढ़ाव, अपमान और खुशी के आंसुओं के बीच अब जाकर इस यात्रा पर पूर्ण विराम लगा है.
कुनू से शुरू हुआ सफर कुनू में पूरा हो रहा है. लेकिन यह परिक्रमा सिर्फ गांव से शहर तक की नहीं रही, बल्कि सीमाओं को तोड़ती वैश्विक स्तर पर पहुंच चुकी है. गांधी के बाद अन्याय के खिलाफ अहिंसक आंदोलन करने वालों में मंडेला का नाम सबसे ऊपर आता है. मंडेला परिवार के पास आज भी गांव में थोड़ी जमीन है. इसी जमीन में नेल्सन मंडेला के तीन बच्चे और कुछ दूसरे करीबी रिश्तेदार भी चिर निद्रा में हैं. अब मंडेला भी इसी मिट्टी में हमेशा के लिए उनके साथ हो जाएंगे. ऐसी मिट्टी, जिसने कभी अपनी संतानों में काले, गोरे, अमीर, गरीब या ऊंच, नीच का फर्क नहीं किया.
रिपोर्टः ओंकार सिंह जनौटी (रॉयटर्स)
संपादनः अनवर जे अशरफ