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धरती को मायूस कर गए नेता

२३ जून २०१२

रियो पृथ्वी सम्मेलन के फैसलों से अगर देशों को खुशी हुई है तो वह शायद केवल इसलिए कि भविष्य में इस बारे में बातचीत जारी रहेगी. लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि नए फैसले में कोई नई बात नहीं.

तस्वीर: REUTERS

शिखर सम्मेलन के बाद निकाले गए दस्तावेज में लिखा है कि विकासशील देशों को अपने उधार चुकाने के लिए मदद मिलनी चाहिए और इसके लिए नए वित्तीय तंत्रों को बनाने की जरूरत है. जहां तक ग्रीन इकोनमी का सवाल है, रियो घोषणा पत्र में लिखा है कि इस नीति के तहत हर देश के अपने प्राकृतिक संसाधनों को ध्यान में रखना होगा और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना होगा. साथ ही सहयोग में शर्तों से पीछे हटना होगा और विकसित और गरीब देशों के बीच तकनीक में अंतर को भी ध्यान में रखना होगा.

बैठक पर बैठक

रियो सम्मेलन के महासचिव शा जूकांग ने कहा कि यह ऐसी घोषणा है जिससे कोई खुश नहीं हो रहा. उन्होंने कहा, "मेरा काम था, सब को एक समान दुखी करना." यानी बैठक मायूसी भरी रही. यह एक ऐसी बैठक है जिसमें तय किया गया कि इस मुद्दे पर और बैठकें होंगी. हालांकि बैठक में आए 100 देशों के प्रमुखों ने इसे सफल कहा है. कार्बन डाइ ऑक्साइड के उत्सर्जन को लेकर अन्य बैठकें भी असफल रहीं, उनके हवाला देते हुए रियो को अच्छी कोशिश करार दिया गाय. लेकिन रियो में आए पर्यावरण कार्यकर्ता दस्तावेज में और मुद्दों को देखना चाहते थे. वे चाहते थे कि कच्चे तेल में सब्सिडी कम किए जाएं और महिलाओं के प्रजनन संबंधी अधिकारों को और ठोस किया जाए. साथ ही समुद्रों की रक्षा पर भी और कानून बनाने की मांग रखी गई है.

तस्वीर: REUTERS

पर्यावरण संगठन ग्रीनपीस के प्रमुख कुमी नायडू ने साफ साफ कहा है कि हमें जिस तरह का भविष्य चाहिए, वह हमारे नेता हमें नहीं दे सकते और रियो सम्मेलन ने यह बात साबित कर दी है. संयुक्त राष्ट्र विकास नीति समिति के सदस्य मार्टिन खोर ने रियो से अपनी निराशा को साफ शब्दों में कहा है, "हमारी उम्मीदें इतनी कम हो गई हैं कि जो वादा हमनें 20 साल पहले किया था, उस पर दोबारा अमल करने की बात सफलता मानी जाती है."

भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बैठक से संतुष्टि तो जताई है, लेकिन अपने भाषण में कहा, "अगर और वित्तीय और तकनीकी सहायता मिले तो कई देश और बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं. यह दुख की बात है कि उत्सर्जन के क्षेत्र में विकसित देशों से सहयोग ज्यादा नहीं है. आर्थिक संकट ने हालात ज्यादा बिगाड़े हैं."

कोई रास्ता नहीं

"द फ्यूचर वी वॉन्ट" नाम के रियो घोषणा पत्र में पुराने फैसलों पर दोबारा अमल करने की बात लगभग 59 बार कही गई है. 49 पन्नों के दस्तावेज में लिखा है कि टिकाऊ विकास को बढ़ावा देना होगा, लेकिन यह नहीं लिखा है कि इसके लिए क्या करना होगा. अंतरराष्ट्रीय सहयोग को और पुख्ता करने की बात है, लेकिन इस वक्त नहीं और जहां तक आर्थिक स्थिरता की बात है, उसकी जरूरत पर बात तो हुई है लेकिन गरीब देशों के लिए आर्थिक सहायता के बारे में कुछ नहीं लिखा है.

विश्लेषकों का मानना है कि रियो में आ रहे देश अब भी उत्तर और दक्षिण कैंप में बंटे हुए हैं जिसमें उत्तरी ध्रुव के अमीर देश दक्षिणी ध्रुव से ईंधन और प्राकृतिक संसाधन का इस्तेमाल कर रहे हैं. गरीब देशों के गुट जी-77 ने कहा है कि अमेरिका और यूरोपीय देशों को इतिहास याद करना चाहिए और सोचना चाहिए कि औद्योगिक क्रांति से लेकर अब तक उन्होंने कितने प्राकृतिक संसाधन खत्म किए हैं. उनका कहना है कि गरीब देशों में पर्यावरण के सुधार के लिए अमीर देशों को आर्थिक सहायता देनी चाहिए.

एमजी/ओएसजे(एपी, डीपीए)

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