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धरती बचाने के लिए ऊंट मारो प्रस्ताव

९ जून २०११

ऑस्ट्रेलिया में प्रदूषण कम करने के लिए ऊंटों को मारने का फैसला लिया जा रहा है. ऊंटों के कारण पर्यावरण में मीथेन गैस बढ़ जाती है जो धरती के तापमान को बढाती है. ऊंटों की मौत के बदले कंपनियों को मिलेगा कार्बन क्रेडिट.

Thema: Das Sultanat Oman setzt für die Zeit nach dem Öl auf Tourismus BU: Tausenundein Kamel: Ob dieses Kamel schont ahnt, dass es bald Touristen wird tragen müssen? Foto: Sven Töniges
तस्वीर: DW/Töniges

ऑस्ट्रेलिया की संसद में अगले हफ्ते एक अजीबोगरीब कानून को मंजूरी मिल सकती है. संसद में प्रस्ताव दिया जा रहा है कि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए ऊंटों की हत्या करनी जरूरी है. इस प्रस्ताव के अनुसार हर ऊंट के बदले 75 डॉलर का कार्बन क्रेडिट दिया जाएगा.

क्या है कार्बन क्रेडिट?

कार्बन क्रेडिट उस अनुमति को कहते हैं जिस के तहत कंपनियों या देशों को कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन के लिए एक सीमा तय की जाती है और इसके लिए सर्टिफिकेट दिया जाता है. एक कार्बन क्रेडिट का मतलब है एक टन कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन की अनुमति. यानी एक ऊंट को मारने के बदले कंपनियों को एक टन अधिक कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जान करने की अनुमति मिल सकेगी.

धरती का तापमान बढ़ने की सबसे बड़ी वजह कार्बन डाई ऑक्साइड को ही बताया जाता है. कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2) के अलावा मीथेन (CH4) भी एक ऐसी गैस है जिसके कारण धरती का तापमान बढ़ता है. इसलिए इन गैसों को ग्रीन हाउस गैसों के नाम से जाना जाता है. ग्लोबल वॉर्मिंग में मीथेन का असर कार्बन डाय ऑक्साइड के मुकाबले 23 प्रतिशत अधिक होता है. जहां कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन कारखानों से उठे धुंए से होता है, वहां दूसरी ओर वातारवरण में मीथेन का उत्सर्जन अधिकतर चारा खाने वाले जानवरों के कारण होता है.

तस्वीर: picture-alliance/ ZB

जानवारों से मीथेन?

ऑस्ट्रेलिया में करीब 12 लाख ऊंट हैं और हर सात साल में इनकी संख्या दोगुनी हो जाती है. गाय, भैंस और भेड़ बकरियों की ही तरह ऊंट भी चारा खाते हैं. इंसानों से अलग इन जानवरों का पेट कई भागों में बंटा होता है, जिस कारण वह एक ही बार में खूब सारा खाना खा सकते हैं और बाद में जुगाली कर सकते हैं. जुगाली करने के कारण ही मीथेन पैदा होती है.

जानकार मानते हैं कि 20 फीसदी मीथेन जानवरों की जुगाली के कारण बनती है और इनमें सबसे ज्यादा ऊंटों के कारण बनती है. एक ऊंट एक साल में एक कार्बन क्रेडिट के बराबर मीथेन पैदा करता है. इसीलिए ऑस्ट्रेलिया सरकार चाहती है कि ऊंटों से छुटकारा पा लिया जाए.

तस्वीर: Marion Beckhäuser

बात ऊंटों की नहीं, फायदे की

अजीब बात यह है सरकार ऊंटों को मार कर धरती के तापमान को कम करने के बारे में नहीं सोच रही, बल्कि इस से औद्योगिक फायदा कैसे हो सकता है इस पर चर्चा हो रही है. ऊंटों को मारने के बदले कारखानों को अधिक कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन की अनुमति मिलेगी. इन क्रेडिट्स को केवल ऑस्ट्रेलिया में ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी इस्तेमाल किया जा सकेगा. सरकार की दलील है कि इस से संतुलन बना रहेगा. यानी जानवर कारखानों की भेंट चढ़ जाएंगे.

मरे हुए ऊंटों के मांस से कुत्तों का खाना बनाया जाएगा. मतलब यहां भी कारोबारी मुनाफा. विकसित देश ग्रीन हाउस गैसों और ग्लोबल वॉर्मिंग से लड़ने के लिए हर तरह के पैंतरे अपनाने को तैयार हैं. जाहिर है बेकसूर जानवरों की जान लेना औद्योगीकरण के कारण होने वाले प्रदूषण पर काबू पाने की तुलना में एक सरल उपाय माना जा रहा है. इस बारे में कोई चर्चा नहीं की जा रही कि ऊंटों से पैदा होने वाली मीथेन को इकट्ठा करके ऊर्जा बनाने के बारे में विचार किया जा सकता है. अर्जेंटीना में गायों की पीठ पर प्लास्टिक बांध कर मीथेन गैस इकट्ठा करने का प्रयोग हो रहा है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/ईशा भाटिया

संपादन: आभा एम

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