कई दशकों से वैज्ञानिक पृथ्वी से बाहर किसी एलीयन के संदेशों को सुनने की तमाम कोशिशें करते आए हैं. अमेरिकी एस्ट्रोफिजिसिस्ट्स का मानना है कि उनसे संपर्क साधने के लिए हमें खुद पृथ्वी से उन्हें शक्तिशाली सिग्नल भेजने चाहिए.
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कैलीफोर्निया के सर्च फॉर एक्स्ट्राटेरिस्ट्रियल इंटेलीजेंस (सेटी) के रिसर्चर जल्द ही 'एक्टिव सेटी' नामका प्रोजेक्ट शुरु करने वाले हैं. ब्रिटिश एस्ट्रोफिजिसिस्ट स्टीफन हॉकिंग जैसे कई बड़े वैज्ञानिक इस बात का डर जता रहे हैं कि ऐसा करने से शायद दूसरे ग्रहों के वासी धरती पर हमला कर दें. हॉकिंग ने कहा है कि सभ्यताओं के बीच हुए ऐसे कई टकरावों का दुखद इतिहास रहा है जिसमें कम विकसित सभ्यताएं कुचली गई हैं.
सेटी रिसर्चरों ने ऐसी आशंकाओं से इंकार किया है. सेटी इंस्टीट्यूट में इंटरस्टेलर मेसेज कॉम्पोजिशन के निदेशक डगलस वाकोख बताते हैं, "करीब पचास सालों से अंतरिक्षविज्ञानी तारों की ओर अपने रेडियो टेलिस्कोप साधे हुए दूसरी सभ्यताओं से आने वाले सिग्नलों की राह देख रहे हैं. एक्टिव सेटी प्रोजेक्ट में हम उस प्रक्रिया के उलट, खुद सक्रिय भूमिका निभाते हुए सोचे समझे, शक्तिशाली और सूचनाप्रद संदेश दूसरी सभ्यताओं को भेजेंगे, शायद जवाब आ जाए."
ये सिग्नल उस तारा समूहों तक भेजे जाएंगे जो धरती के सबसे आस पास हैं और ऐसे ग्रहों से बने हैं जहां जीवन की संभावना हो सकती है. रिसर्चरों का मानना है कि एलीयनों से संपर्क साधने के ये प्रयास पहले की सभी कोशिशों से बेहतर साबित हो सकते हैं. 1977 में दो वोयाजर स्पेसक्राफ्ट पर फोनोग्राफ रिकॉर्ड रख कर भेजे गए थे. इन रिकॉर्ड्स में धरती पर जीवन को दर्शाने वाले कुछ चुनिंदा दृश्य और आवाजें थीं. पहले भी अंतरिक्ष में रेडियो सिग्नल भेजे जा चुके हैं. साल 1999 में रूसी वैज्ञानिकों ने क्रीमिया स्थित एक टेलिस्कोप से अंतरिक्ष में संदेश भेजे थे. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने 2008 में बीटल्स के मशहूर गाने "एक्रास दि यूनिवर्स" को धरती से 430 प्रकाश वर्ष दूर स्थित तारे नॉर्थ स्टार तक भेजा था.
सेटी रिसर्चर सेथ शोस्ताक का मानना है कि आजकल के शक्तिशाली रेडियो टेलिस्कोप और पूरे इंटरनेट पर मौजूद सामग्री का इस्तेमाल कर तारों को संदेश भेजना चाहिए. इससे जिसे संदेश मिलता है वह इंसानी सभ्यता और इतिहास को जान पाएगा. प्रोजेक्ट काफी विवादास्पद है और कई वैज्ञानिक ऐसे कोई भी संदेश भेजने से पहले सर्वसम्मति बनाने पर जोर दे रहे हैं.
आरआर/एसएफ (एएफपी,एपी)
अंतरिक्ष में मंडराता खतरा
धरती के आस पास 10,000 क्षुद्र ग्रह मंडराते हैं. अंतरिक्ष के कई शोधों में इसका बार बार पता चला है. यूरोप में ऐसा सिस्टम बनाया जा रहा है जो क्षुद्र ग्रहों की टक्कर की पहले ही चेतावनी दे सकता है.
तस्वीर: AP
यूरोपीय चेतावनी सिस्टम
धरती के पास मंडराते क्षुद्र ग्रह कभी भी गंभीर खतरा बन सकते हैं. यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ईएसए इटली के फ्रासकाटी में इसकी चेतावनी देने का तंत्र बना रहा है. टेनेरिफ में बनी इस वेधशाला का डाटा इटली पहुंचेगा.
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धमाके की गूंज
15 फरवरी 2013 को रूस के चेलयाबिंस्क में उल्का पिंड टकराया. धमाके की ताकत 100 से 1,000 टन टीएनटी धमाके के बीच थी. 1,500 लोग जख्मी हुए. इस घटना से अर्ली वार्निंग सिस्टम की अहमियत समझी जा सकती है.
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टल गई आफत
पृथ्वी के वायुमंडल में घुसने से पहले क्षुद्र ग्रह का व्यास करीब 20 मीटर था. वायुमंडल में घुसते ही यह विखंडित हो गया और कोई टुकड़ा एक किलो से ज्यादा का नहीं बचा. इन टुकड़ों ने बर्फ में छह मीटर गहरा छेद कर दिया.
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जितना बड़ा, उतना खतरनाक
'2012डीए14' नाम का क्षुद्र ग्रह ज्यादा खतरनाक था. उसका वजन 1,30,000 टन था. 15 फरवरी 2013 के दिन ही ये धरती के बहुत करीब से गुजरा. इसकी धरती से दूरी 27,000 किलोमीटर थी. इससे दूर तो कई इंसानी उपग्रह हैं.
तस्वीर: NASA/Science dpa
टला नहीं खतरा
कई और क्षुद्र ग्रह और उल्का पिंड इस साल भी धरती के करीब आने वाले हैं. वैज्ञानिक इन पर बारीक नजर रखे हुए हैं. एक छोटा सा टुकड़ा भी घातक हो सकता है.
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उल्का पिंड और टूटते तारे
उल्का पिंड गैस, चट्टान और धूल के बने होते हैं. जब ये धरती के वायुमंडल में दाखिल होते हैं तो घर्षण की वजह से इनका तापमान 3,000 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है. ऐसा होते ही यह चमकने लगते हैं और टूटे तारे कहलाते हैं.
तस्वीर: picture alliance / dpa
तारों की मशहूर बरसात
चमकते हुए तेजी से गुजरते तारों को परसियड्स कहा जाता है. हर साल धरती की कक्षा पार करते उल्का पिण्डों से ऐसा नजारा दिखाई पड़ता है. परसियड्स का नाम उन तारामंडलों के आधार पर रखा जाता है, जिनके करीब ये देखे जाते हैं. यूनानी दंतकथाओं के पात्र परसियस के नाम पर इसे परसियड्स कहा जाता है.
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जब उल्का पिंड न जले
आम तौर पर छोटे मोटे क्षुद्र ग्रह हमारे वायुमंडल में जल जाते हैं. धरती पर गिरने के बाद भी ये आम तौर पर नुकसान नहीं करते. इनका आकार भी छोटे पत्थरों जितना होता है. लेकिन अगर आकार बड़ा हो, तो चिंता की बात है. 50,000 साल पहले अमेरिका के एरीजोना में एक क्षुद्र ग्रह ने 1,000 मीटर चौड़ा गड्ढा कर दिया.
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युग का अंत
6.5 करोड़ साल पहले एक विशाल क्षुद्र ग्रह युकाटान मेक्सिको के पास धरती से टकराया. इससे 180 किलोमीटर चौड़ा गड्ढा बना. विशेषज्ञों के मुताबिक इसी टक्कर ने धरती पर डायनासोर का जीवन खत्म कर दिया. हाल में आई जानकारी के मुताबिक दो क्षुद्र ग्रहों की 16 करोड़ साल पहले हुई टक्कर की वजह से यह घटना हुई.
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ब्रह्मांड से आई जली हुई चट्टानें
क्षुद्र ग्रह जली हुई चट्टानों से दिखते हैं. पृथ्वी के वायुमंडल में घुसते समय बाहरी आवरण जल जाने की वजह से परत बदल सी जाती है. क्षुद्र ग्रहों से दूसरे ग्रहों की भी टक्कर होती है. नासा के ऑपरच्यूनिटी रोवर ने 2005 में मंगल पर ऐसे ही बाहरी क्षुद्र ग्रहों को खोजा.
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धूल और गैस
उल्का पिंडों और क्षुद्र ग्रहों के साथ पृथ्वी पर धूल भी आती है. विशेषज्ञों को लगता है कि ग्रहों के निर्माण के दौरान बची खुची चीजों से ये बने. इनमें सौरमंडल के जन्म के राज भी छिपे हो सकते हैं.
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अंतरिक्ष से आए पत्थर
धरती पर मिलने वाले ज्यादातर धूमकेतु क्षुद्र ग्रहों का हिस्सा हैं. किसी ग्रह की उत्पत्ति के समय ही क्षुद्र ग्रह भी बनते हैं. उनका अपना वायुमंडल नहीं होता है और उनमें गुरुत्वाकर्षण बल भी नहीं के बराबर होता है.
तस्वीर: picture-alliance/ dpa
चैन की सांस
फिलहाल इंसान चैन की सांस ले सकता है. अगले 100 साल तक धरती से किसी क्षुद्र ग्रह के टकराने की संभावना बहुत कम है.