भारत में प्राचीन स्मारकों और धरोहरों की रक्षा का काम भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण एएसआई करता है. ताजमहल की सुरक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एएसआई की योग्यता पर सवाल उठाए हैं. जर्मनी के अनुभव भारत के काम आ सकते हैं.
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स्मारक इंसानों की बनाई गई वे रचनाएं हैं जो बीते समय की याद दिलाती है. ये इमारतें भी हो सकती हैं, बाग या कुछ और भी. जो पुरानी धरोहरों को संजो कर नहीं रखता, वह न सिर्फ उस प्राचीन ज्ञान को खो देता है बल्कि इंसानी कोशिशों का अनादर भी करता है. जर्मनी में करीब 13 लाख स्मारक हैं. उनमें महलों, किलों और गिरजाघरों के अलावा बाग, बगीचे और औद्योगिक इमारतें भी शामिल हैं. जर्मनी ने 2013 के आंकड़ों के हिसाब से करीब 50 करोड़ यूरो स्मारक संरक्षण पर खर्च किए. इसमें 48 प्रतिशत प्रांतीय स्तर पर, 35 प्रतिशत नगरपालिकाओं के स्तर पर और 17 प्रतिशत केंद्र सरकार के बजट से खर्च किए गए.
जर्मनी में स्मारकों के संरक्षण की लंबी परंपरा है. कम से कम 19वीं सदी से स्मारक संरक्षण शब्द का जिक्र सरकारी और अकादमिक लेखों में मिलता है. पहली बार इसका उल्लेख ऑस्ट्रिया के विदेश मंत्रालय के एक दस्तावेज में मिलता है जिसमें स्मारक संरक्षण से जुड़ी संस्थाओं के सम्मेलन की चर्चा है. वैसे स्थानीय निकायों के स्तर पर प्राचीन काल से इमारतों के संरक्षण के लिए नियम कायदे बनाए जाते रहे हैं. चौथी सदी के दस्तावेजों में खासकर शहरों से संगमरमर, खंभे और दूसरी कलात्मक चीजों को ले जाने पर रोक का जिक्र मिलता है. उस वक्त रोम में अंधविश्वास के खिलाफ चल रहे अभियान के बावजूद रोम के बाहर के मंदिरों को सुरक्षित रखने के आदेश दिए गए थे. पांचवी सदी में रोमन साम्राज्य में सार्वजनिक इस्तेमाल के लिए बनी इमारतों को नुकसान पहुंचाने पर रोक थी.
आधुनिक काल में स्मारकों की सुरक्षा के लिए बौद्धिक आधार तैयार करने का श्रेय जर्मन महाकवि गोएथे को दिया जा सकता है. गोएथे ने एक लेख में लिखा था, "जब मैं तुम्हारी कब्र के आसापास घूम रहा था कुलीन एरविन, तो कोई निशानी ना पाकर मुझे आत्मा की असीम गहराई तक दुःख हुआ, और मेरे दिल ने तुम्हारा स्मारक बनाने की शपथ ली.”
मशहूर जर्मन दार्शनिक फ्रीडरिष नीत्शे ने जीवन के लिए इतिहास के फायदों और नुकसान पर 1874 में लिखा था, "इतिहास उन संरक्षकों और आदर करने वालों का होता है जो वफादारी और प्यार के साथ वहां देखता है जहां से वह आया है, जहां वह पला बढ़ा है, इस श्रद्धा के साथ वह अपने अस्तित्व के लिए आभार व्यक्त करता है. पहले से मिली चीजों को सावधानी से संरक्षित कर वह उनके बनने की परिस्थितियों की सुरक्षा बाद में बनने वाली चीजों के लिए संरक्षित करता है, और इस तरह वह जीवन की सेवा करता है."
स्वाभाविक है कि ऐसी बहसों के बीच जर्मन समाज बेहतरीन वास्तुकार पैदा किए हैं. इन वास्तुकारों ने ना सिर्फ विश्व प्रसिद्ध इमारतें बनाईं और वास्तुकला के विकास में गहन योगदान दिया बल्कि ऐसे संरक्षण की कला को भी परवान चढ़ाया. प्रसिद्ध जर्मन आर्किटेक्ट शिंकेल ने शिकायत की थी, "अकसर ऐसा होता है कि इन दफ्तरों में कोई आवाज नहीं सुनाई देती थी जो इन चीजों के महत्व के लिए भावनाओं से प्रेरित हो या उसके बचाव की जिम्मेदारी लेने के लिए पर्याप्त रूप से सशक्त महसूस करती हो. इसकी वजह से हमारी पितृभूमि ने अपने बहुत से खूबसूरत गहनों को खो दिया है, जिस पर हमें अफसोस होना चाहिए." उनकी पहल पर ही पहली बार सरकारी स्मारक संरक्षण की संरचना बनी.
दूसरे विश्वयुद्ध में बहुत बर्बादी हुई थी. शहर के शहर नष्ट हो गए थे और सारी इमारतों को फिर से पुराने प्लान के हिसाब से बनाना संभव नहीं था. ऐसे में बहुत से वास्तुकार नष्ट इमारतों से विदा लेने की हिम्मत दिखाने की वकालत कर रहे थे. लेकिन बहुत से वास्तुकार पुरानी धरोहरों की रक्षा को जरूरी मानते थे. 1964 में इटली के वेनिस शहर में हुए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में सांस्कृतिक धरोहरों को बचाने और उनके जीर्णोद्धार पर एक अंतरराष्ट्रीय संधि हुई. इसमें सिर्फ एकल इमारतों को ही धरोहर नहीं माना गया बल्कि सांस्कृतिक विकास दिखाने वाले इलाकों को भी संरक्षण योग्य धरोहर माना गया. जर्मनी में 1975 में स्मारक संरक्षण साल मनाने के साथ धरोहरों को बचाने के आंदोलन में तेजी आई. लेकिन आर्थिक विकास के साथ स्मारक संरक्षण और पुरानी इमारतों को तोड़कर आधुनिक इमारतें बनाने की दुविधा भी सामने आया है.
जर्मनी में स्मारक संरक्षण कानून देश भर में स्मारकों के संरक्षण और रखरखाव का कानूनी आधार देता है. इस पर अमल करने की जिम्मेदारी नगरपालिका और जिला स्तर के स्मारक संरक्षण अधिकारियों की है जबकि निगरानी की जिम्मेदारी राज्य स्तरीय संरक्षण दफ्तर और संस्कृति मंत्रालय पर होती है. स्मारक संरक्षण के लिए सरकार बजटीय संसाधनों का प्रावधान कर रही है और साथ ही इसे प्रोत्साहित करने के लिए करों में छूट भी देती है. 1985 से जर्मनी में स्मारक संरक्षण न्यास है जो पिछले तीन दशकों में जर्मनी में स्मारक संरक्षण की सबसे बड़ी गैरसरकारी पहल है. स्मारक संरक्षण के लिए उचित माहौल बनाने और उसके लिए ट्रेनिंग मुहैया कराने के अलावा यह अबतक हजारों स्मारकों के जीर्णोद्धार में मदद भी कर चुका है.
देखिए, ये हैं भारत में मौजूद विश्व धरोहर
यूनेस्को सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, वैज्ञानिक और सामाजिक महत्व के स्थलों को अपनी विश्व धरोहर सूची में शामिल करती है. भारत में अभी ऐसे 36 स्थल है जिन्हें विश्व धरोहर घोषित किया गया है. एक नजर इनमें से कुछ अहम स्थलों पर.
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काजीरंगा नेशनल पार्क
असम में काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान दुनिया भर में एक सींग वाले गैंडों के लिए मशहूर है. वैसे यहां बाघ और अन्य जीव भी खूब पाए जाते हैं.
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ताज महल
सफेद संगमरमर से बनी यह इमारत दुनिया भर में मोहब्बत की निशानी के तौर पर मशहूर है. 1983 में इसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया.
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बोध गया
बिहार में स्थित बोध गया दुनिया भर के बौद्ध श्रद्धालुओं के सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में गिना जाता है. बताते हैं कि यहीं गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था.
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हुमायूं का मकबरा
मुगल बादशाह हुमायूं का मकबरा 1993 में विश्व धरोहर घोषित किया गया. दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में स्थित इस इमारत को हुमायूं की पहली रानी बेगा बेगम ने बनवाया था.
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कुतुब मीनार
दिल्ली के महरौली में स्थित कुतुब मीनार का निर्माण 1192 में दिल्ली सल्तनत के संस्थापक कुतुबद्दीन ऐबक ने शुरू कराया जिसे 1220 में उसके उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने पूरा कराया.
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दिल्ली का लाल किला
मुगल बादशाह शाहजहां ने 1639 में लाल किले का निर्माण कराया. इसे 2007 में विश्व धरोहर घोषित किया गया. भारत के स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से ही प्रधानमंत्री का संबोधन होता है.
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हम्पी
कर्नाटक में स्थित हम्पी 14वीं सदी में विजयनगर साम्राज्य का केंद्र हुआ करता था. आज भी यहां मौजूद मंदिर और परिसर गौरवशाली अतीत की याद दिलाते हैं.
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खजुराहो
खजुराहो के विश्व प्रसिद्ध मंदिर भारत के मध्य प्रदेश राज्य में हैं. कामुक प्रतिमाओं वाले ये मंदिर दुनिया भर के सैलानियों को अपनी तरफ खींचते हैं. इनका निर्माण चंदेल साम्राज्य के शासनकाल में 950 से 1050 ईसवी के बीच हुआ.
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छत्रपति शिवाजी टर्मिनस
मुंबई के इस ऐतिहासिक रेलवे स्टेशन का नाम पहले विक्टोरिया टर्मिनस था. 1887 में बना यह स्टेशन आज सेंट्रल रेलवे का मुख्यालय है. 2004 से यह यूनेस्को विश्व धरोहर सूची में है.
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महाबलीपुरम
तमिलनाडु में स्थित महाबलीपुरम में 400 प्राचीन स्मारक और हिंदू मंदिर हैं. इनका निर्माण पल्लव साम्राज्य के शासनकाल के दौरान सातवीं और आठवीं सदी के बीच हुआ था.
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नालंदा
बिहार में स्थित नालंदा में प्राचीन विश्वविद्यालय के अवशेष मौजूद हैं जो पांचवी सदी से 1200 तक ज्ञान का एक महत्वपूर्ण केंद्र था. इसका निर्माण गुप्तकाल में किया गया था.
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कंचनजंघा
कंचनजंघा दुनिया में तीसरा सबसे ऊंचा पर्वत है जिसका एक हिस्सा नेपाल में और दूसरा हिस्सा सिक्किम में है. समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 8,586 मीटर है.
अहमदाबाद शहर का पुराना और ऐतिहासिक हिस्सा जुलाई 2017 से विश्व धरोहर है. इसे गुजरात सल्तनत के अहमद शाह प्रथम ने बसाया था. यह गुजरात सल्तनत की राजधानी था.
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पश्चिमी घाट
पश्चिमी घाट पर्वतों की एक श्रृंखला है जो भारतीय प्रायद्वीप के पश्चिमी तट के साथ समांतर रूप से चलती है. ये श्रृंखला गुजरात और महाराष्ट्र की सीमा से शुरू हो कर गोवा, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु तक फैली है.
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सुंदरबन
बंगाल की खाड़ी के तटीय इलाकों में फैले विशाल वनों को सुंदरबन कहा जाता है. इसे 1997 में बांग्लादेश से यूनेस्को विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया. लेकिन इसका काफी हिस्सा भारत में भी है.
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नंदा देवी
नंदा देवी भारत की दूसरी सबसे ऊंची पर्वत चोटी है जबकि दुनिया में सबसे ऊंची चोटियों के मामले में यह 23वें नंबर पर आती है. 1988 में इसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया.
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सांची का स्तूप
सांची स्तूप का निर्माण ईसा पूर्व तीसरी सदी में सम्राट अशोक ने कराया था. भोपाल से पूर्वोत्तर में 46 किलोमीटर दूर स्थित ईटों से बना यह स्तूप एक अहम बौद्ध तीर्थ स्थल है.
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अजंता की गुफाएं
अजंता की गुफाएं महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित हैं. गुफाओं की दीवारों पर बने चित्र और आकृतियां प्राचीन भारतीय कला की बेहतरीन मिसाल पेश करती हैं.
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एलोरा की गुफाएं
एरोला दुनिया भर में चट्टानों को काट कर बनाए गए सबसे बड़े मंदिर और गुफा परिसरों में से एक है. इनका निर्माण 600 से 1000 ईसवी के बीच हुआ और इन्हें विश्व धरोहर का दर्जा 1983 में मिला.
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एलिफेंटा गुफाएं
एलिफेंटा में भी चट्टानों को काट कर बनाए मंदिर और गुफाएं हैं. यहां स्थित मंदिर मुख्य रूप से हिंदू देवता शिव को समर्पित हैं. ये गुफाएं मुंबई के पास ही स्थित हैं.
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सूर्य मंदिर
ओडिशा के कोणार्क में स्थित सूर्य मंदिर का निर्माण 13वीं सदी में हुआ था. मंदिर सूर्य को समर्पित है और इसे रथ की आकृति में बनाया गया है. 1984 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी.
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जंतर मंतर
जयपुर का जंतर मंतर 19 खगोलीय इमारतों का समूह है जिनका निर्माण राजपूत राजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने कराया था. ये यंत्र समय मापने, तारों की गति और स्थिति जानने और ग्रहण की भविष्यवाणी करने में सहायक हैं.
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आगरा का किला
भारत के मुगल सम्राट बाबर, हुमायुं, अकबर, जहांगीर, शाहजहां और औरंगजेब इसी किले में रहा करते थे और यहीं से पूरे भारत पर शासन करते थे. यह ताजमहल से लगभग ढाई किलोमीटर दूर स्थित है.
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फतेहपुर सीकरी
मुगल बादशाह अकबर ने 1571 में मुगल साम्राज्य की राजधानी के तौर पर फतेहपुर सीकरी की स्थापना की थी. लेकिन 1610 में पानी की कमी के कारण राजधानी फिर से आगरा ले जानी पड़ी.
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गोवा को चर्च
कभी पुर्तगाली उपनिनेश रहे गोवा के चर्च भी यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल हैं. ओल्ड गोवा इलाके में कई पुराने चर्च हैं, जिनकी वास्तुकला दुनिया भर के सैलानियों को खींचती है.