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"धर्म की आलोचना करें, नफ़रत नहीं"

७ जनवरी २०१०

मुंबई हाई कोर्ट ने अपने अहम फ़ैसले में कहा है कि इस्लाम या किसी अन्य धर्म की आलोचना की जा सकती है लेकिन घृणा पर आधारित आलोचना की इजाज़त नहीं है जिससे सांप्रदायिक तनाव भड़के या पूरा समुदाय कटघरे में खड़ा होता हो.

तस्वीर: Wikipedia/LegalEagle

मुंबई हाई कोर्ट की खंडपीठ ने अपने फ़ैसले में एडवोकेट आरवी भसीन की किताब "इस्लाम: ए कंसेप्ट ऑफ़ पॉलिटिकल वर्ल्ड इन्वेज़न बाय मुस्लिम्स" पर लगी पाबंदी को बरक़रार रखा है. इस किताब पर महाराष्ट्र सरकार ने 2007 में प्रतिबंध लगाया था.

तस्वीर: AP

सरकार का कहना था कि इस किताब में इस्लाम धर्म और पैगम्बर मोहम्मद के ख़िलाफ़ अपमानजनक बातें लिखी गई हैं जिससे मुस्लिम समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचती है. लेखक आरवी भसीन ने किताब पर प्रतिबंध को अदालत में चुनौती दी थी और इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन बताया था.

तीन सदस्यीय खंडपीठ ने अपने फ़ैसले में कहा," हमारे संवैधानिक ढांचे में हर किसी की आलोचना की जा सकती है और धर्म अपवाद नहीं है. हिंदू, इस्लाम, ईसाई या किसी अन्य धर्म की आलोचना हो सकती है. अगर कोई लेखक ग़लत है तो उसे ग़लत होने का भी अधिकार है. लेकिन यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि कहीं लेखक ने जानबूझकर तो किसी धर्म की आलोचना नहीं की."

हाई कोर्ट के मुताबिक़ भसीन ने अपनी किताब में इस्लाम धर्म की तर्कपूर्ण आलोचना नहीं की है और इससे सांप्रदायिक तनाव भड़क सकता है. प्रतिबंधित किताब में दलील दी गई है कि इस्लाम धर्म आतंकवाद को प्रेरित करता है और अन्य धर्मों को स्वीकार नहीं करता.

कोर्ट का कहना है कि धार्मिक ग्रंथों में कही गई बातों के कई मायने निकाले जा सकते हैं. " यह सही है कि क़ुरान में कुछ आयतों में कठोर शब्दों का इस्तेमाल किया गया है और ये आयतें मूर्ति उपासना करने वालों के ख़िलाफ़ हैं. लेकिन हो सकता है कि ये आयतें ऐसे समय में लिखी गई जब मुस्लिम समुदाय पर मूर्तिपूजक हमले कर रहे थे."

कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि एक लेखक को यह भी कहने का अधिकार है कि कोई धर्म धर्मनिरपेक्ष नहीं है लेकिन भसीन के मामले में आलोचना तर्कपूर्ण नज़र नहीं आती. "भसीन ने अपनी किताब में मुस्लिमों ख़ासकर भारतीय मुस्लिमों के ख़िलाफ़ अपमानजनक बातें कही हैं."

कोर्ट ने कहा कि यह ज़रूर है कि कुछ मुस्लिम युवक सही दिशा के अभाव में आतंकवाद के रास्ते पर जा रहे हैं लेकिन दिशाहीन युवक हर धर्म में हैं. इसलिए किसी किताब के ज़रिए नफ़रत फैलाने की इजाज़त नहीं दी जा सकती.

रिपोर्ट: एजेंसियां/एस गौड़

संपादन: आभा मोंढे

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