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धार्मिक स्वतंत्रता का सवाल

३१ जनवरी २०१५

गणतंत्र दिवस के मौके पर जारी एक विज्ञापन में संविधान की तस्वीर से धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्दों के गायब होने को भूल बताया गया था. अब उस पर राजनीतिक बहस शुरू हो गई है.

Indien Wahlen 2014 BJP Narendra Modi Rangoli
तस्वीर: Reuters

गणतंत्र दिवस पर नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा जारी एक विज्ञापन के बाद एक बार फिर भारत में धर्मनिरपेक्षता के भविष्य के बारे में बहस तेज हो गयी है. सरकार द्वारा जारी विज्ञापन में संविधान की प्रस्तावना को पृष्ठभूमि में दिखाया गया है लेकिन उसमें से 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवादी' शब्द गायब हैं. जब इस पर कांग्रेस की ओर से आपत्ति की गयी तो पहले तो सरकार की ओर से स्पष्टीकरण दिया गया कि यह गलती जानबूझकर नहीं, बल्कि अनजाने में हुई है और विज्ञापन में मूल संविधान का चित्र है जबकि धर्मनिरपेक्ष और 'समाजवादी' शब्द 1976 में तब जोड़े गये थे जब देश में इमर्जेंसी लागू थी.

लेकिन इसके ठीक बाद वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद का यह बयान आ गया कि जवाहरलाल नेहरू और भीमराव अंबेडकर जैसे नेताओं ने सूझबूझ कर ही इन शब्दों को संविधान में नहीं रखा था. इन्हें तो इमर्जेंसी में जोड़ा गया. अब अगर इन पर बहस होती है तो इसमें बुराई क्या है? भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी शिव सेना के सांसद संजय राहत ने विज्ञापन को बिलकुल ठीक बताते हुए कहा कि भारत हमेशा से हिंदू राष्ट्र रहा है और रहेगा. वह धर्मनिरपेक्ष देश नहीं है और न समाजवादी है. इसके पहले भाजपा के मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर्वोच्च नेता मोहन भागवत भी संघ की मूल प्रतिज्ञा दुहरा चुके हैं कि भारत हिंदू राष्ट्र है. उधर विश्व हिंदू परिषद और हिंदू जागरण मंच जैसे संघ से जुड़े संगठन मुसलमानों और ईसाइयों को 'घर वापसी' के नाम पर हिंदू बनाने का अभियान छेड़े हुए हैं. इसी बीच तमिलनाडु से खबर आयी है कि वरिष्ठ आईएएस अधिकारी सी. उमाशंकर को राज्य सरकार ने निर्देश दिया है कि वे ईसाई धर्म के बारे में प्रवचन करना बंद कर दें क्योंकि यह सरकारी सेवा नियमों का उल्लंघन है. उधर उमाशंकर का कहना है कि संविधान में अपने धर्म का प्रचार करने का अधिकार दिया गया है और वह किसी भी तरह से सेवा नियमों का उल्लंघन नहीं कर रहे हैं. उन्हें राज्य सरकार का आदेश 24 जनवरी को मिला और 26 जनवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने नयी दिल्ली के सीरी फोर्ट सभागार में बोलते हुए भारतीय संविधान की धारा 25 का उल्लेख किया जिसमें हर नागरिक को अपने धर्म का पालन करने और उसका प्रचार-प्रसार करने की आजादी दी गयी है. ओबामा ने यह भी कहा कि जब तक भारत धार्मिक या अन्य किसी आधार पर नहीं बंटता, तब तक उसकी अखंडता को कोई खतरा नहीं है.

क्या है सरकार का इरादा?

इस पृष्ठभूमि में यह आशंका पैदा होना स्वाभाविक है कि नरेंद्र मोदी सरकार क्या भारत के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को बदलने का प्रयास कर रही है? क्या केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद का यह कहकर सरकार द्वारा जारी विज्ञापन का बचाव करना कि मूल संविधान में 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द नहीं है और इस पर बहस होनी चाहिए, इस कोशिश की ओर इशारा नहीं करता? क्या यह उचित है कि जिस संविधान की शपथ लेकर वे मंत्री बने, अब उसी की वे नुक्ताचानी करें? क्या सरकार ने लोगों की प्रतिक्रिया भांपने के लिए विज्ञापन जारी किया था? यूं भी पिछले कुछ समय से हिंदुत्ववादी लगातार उग्र बयानबाजी कर रहे हैं. भाजपा सांसद साक्षी महाराज समेत कई भाजपा नेता हिंदुओं से अपील कर चुके हैं कि वे चार-पांच, यहां तक कि दस बच्चे पैदा करें क्योंकि मुसलमानों और ईसाइयों की तादाद बढ़ती जा रही है और हिंदुओं की कम होती जा रही है. चुनाव प्रचार के दौरान भी मतदाताओं से 'रामजादों' और 'हरामजादों' के बीच चुनने की अपील की जा रही है. इस सबके कारण देश में सांप्रदायिक माहौल पैदा हो रहा है और धर्मनिपेक्षताविरोधी प्रवृत्तियों को बल मिल रहा है. केंद्र में पहली बार भाजपा के बहुमत वाली सरकार सत्ता में है जिसकी नकेल उस आरएसएस के हाथ में है जो भारत को हिंदू राष्ट्र मानता आया है. यदि संविधान में संशोधन करके धर्मनिरपेक्षता को उसमें से न भी हटाया गया, तब भी भारत अघोषित तौर पर तो हिंदू राष्ट्र बन ही जाएगा यदि उसमें रहने वाले अल्पसंख्यकों से उनकी धार्मिक आजादी छीन ली गयी. क्या ऐसा होगा? इस समय यही यक्ष प्रश्न है जिसका उत्तर किसी को नहीं सूझ रहा.

ब्लॉग: कुलदीप कुमार

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