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ध्रुवीय बर्फ के नीचे ऊंचे पहाड़

११ मई २००९

पृथ्वी के बर्फीले महाद्वीप अंटार्कटिका (दक्षिणी ध्रुव) की किलोमीटर मोटी बर्फ के नीचे उंचे-ऊंचे पहाड़ों वाली एक पूरी पर्वतमाला छिपी हुई है. उसका पता 1958 में रूसी वैज्ञानिक ग्रिगोरी गाम्बुर्त्सेव ने लगाया था.

दक्षिणी ध्रुव पर जर्मन खोजी जहाज़ पोलार श्टेर्नतस्वीर: dpa

यूरोप के आल्प्स पर्वतों जितनी बड़ी गाम्बुर्त्सेव पर्वतमाला अंटार्कटिका कहलाने वाले दक्षिणी ध्रुवप्रदेश के पूर्वी हिस्से में पड़ती है, बहुत ही दुर्गम है और कोई एक किलोमीटर मोटी बर्फ से ढकी रहती है. दुर्गमता के कारण ही जहां वह है, उस जगह को "दुर्गमता का ध्रुव" कहा जाता है. सबसे नज़दीकी वैज्ञानिक स्टेशन भी इस "दुर्गमता ध्रुव" से सौ किलोमीटर दूर है.

वहां गर्मियों में भी तापमान ऋण 35 डिग्री सेल्ज़ियस से ऊपर नहीं पहुंच पाता. हवा पूरी तरह शुष्क होती है. समुद्रतल से वह 3.500 मीटर, यानी साढ़े तीन किलोमीटर ऊपर है. जर्मन वैज्ञानिक यह जानने में लगे हैं कि यह हिमाच्छादित पर्वतमाला बर्फ के नीचे कैसी है. हनोवर में जर्मन भूविज्ञान और खनिज पदार्थ संस्थान के डेटलेफ़ दामास्के बताते हैं:

"वायुदबाव दिखाने वाला बैरोमीटर वहां की काफ़ी पतली हवा के आधार पर जो ऊँचाई दिखाता है, वह सामान्य तौर पर चार हज़ार मीटर के बराबर होगी. इसलिए अपने शिविर में जाने से पहले हम सब कम से कम तीन दिन तक अपने आप को ऊंचाई का अभ्यस्त बनाते हैं. साढ़े तीन हज़ार मीटर वाले अगले चरण से पहले एक बार फिर दो दिन तक ऐसा ही करते हैं."

अदृश्य पर्वतमाला

शिविर का जीवन काफ़ी कठिन तो ज़रूर होता है, लेकिन जर्मन वैज्ञानिक बर्फ के आरपार, पहली बार, अंटार्कटिका की किसी भूत की तरह अदृश्य इस पर्वतमाला की पैमाइश कर सके हैं:

"प्रारंभिक परिणामों के आधार पर हम कह सकते हैं कि यह पर्वतमाला आल्प्स पर्वतों से बहुत भिन्न नहीं है. वहां बर्फ के नीचे सीधे ऊपर उठते पहाड़ और गहरी घाटियां हैं. इस क्षेत्र का विस्तार भी आल्प्स जैसा ही है. बाक़ी चीज़ों के लिए हमें अभी देखना होगा कि हमारे आंकड़े क्या कहते हैं."

बर्फ के नीचे बहता पानी

जलवायु परिवर्तन से दक्षिणी ध्रुव की बर्फ भी पिघल रही हैतस्वीर: AP

गाम्बुर्त्सेव पर्वतमाला क़रीब 1200 किलोमीटर लंबी है. जर्मन भूभौतिकशास्त्री अपने दो शिविरों से तरह तरह के सर्वेक्षण और मापन उपकरणों वाले दो विमानों में इस पर्वतमाला के ऊपर उड़े. उन्होंने उस के ऊपर के चुंबकीय क्षेत्र और गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र को मापा और राडार से किलोमीटर मोटी बर्फ को भेद कर उसके नीचे की बनावटों को जानने का प्रयास किया.

आश्चर्य की बात यह है कि इन मापनों से पता चलता है कि बर्फ से ढकी घाटियों में बर्फ के नीचे तरल पानी बहता है. एक बड़ी झील भी मिली हैः "इस झील की लंबाई तो 20 किलोमीटर तक ज़रूर होनी चाहिये," कहना है डेटलेफ़ दामास्के का.

नदियों और झीलों का जाल

संभावना यही व्यक्त की जाती है कि अंटार्कटिका के बर्फीले ग्लेशियरों, यानी हिमनदों के नीचे बहते पानी वाली नदियों और झीलों का जाल छिपा हो सकता है. यह भी संभव है कि यह जाल बर्फ के नीचे छिपी अब तक ज्ञात सबसे बड़ी झील (वोस्तोक झील) से भी जुड़ा हो. वोस्तोक झील कोई दस लाख वर्षों से बाहरी दुनिया से कट गयी है. आरंभिक नतीजे यह भी कहते हैं कि गाम्बुर्त्सेव पर्वतमाला की सबसे ऊंची चोटियों के ऊपर बर्फ की परत सब जगह एक जैसी मोटी नहीं हैः

" बर्फ की मोटाई निश्चित रूप से एक हज़ार मीटर से कम है. स्वयं एक हज़ार मीटर भी बहुत ज़्यादा नहीं है. मैंने सारे आंकड़े अभी देखे नहीं हैं, लेकिन अपने सहयोगियों से सुना है कि कहीं-कहीं यह मोटाई 500 मीटर या केवल 300 मीटर ही है."

यदि ये अनुमान सही निकले, तो कम बर्फ वाली चोटियों की बोरिंग भी की जा सकती है. चीनी ऐसी बोरिंगों की योजना बना रहे हैं, ताकि पता लगा सकें कि ये पहाड़ कितने पुराने हैं. इस समय समझा जाता है कि यह पर्वतमाला भी आल्प्स पर्वतों जितनी ही पुरानी है. इतनी पुरानी कि लगभग तीन करोड़ साल पहले इसी पर्वतमाला के बीच दक्षिणी ध्रुव पर बर्फ जमना शुरू हुई.

रिपोर्ट- डागमार रौएरिश / राम यादव

संपादन- उज्ज्वल भट्टाचार्य

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