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सालों पुराने राज

३० सितम्बर २०१३

अंटार्कटिक में औसत तापमान शून्य से 50 डिग्री कम होता है. इसके बावजूद बर्फ की परत पतली होती जा रही है. जर्मनी के आल्फ्रेड वेगनर इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक लाखों साल पुरानी बर्फ की मदद से मौसम के बदलते मिजाज को भांप रहे हैं.

तस्वीर: Alexandra Segelken-Voigt

दुश्वार हालात में काम करना आल्फ्रेड वेगनर इंस्टीट्यूट (एडब्ल्यूआई) के वैज्ञानिकों के लिए पहली शर्त है. जर्मनी के ब्रेमरहाफन शहर में स्थित में स्थित की हाईटेक प्रयोगशाला में ध्रुवों और सागरों पर रिसर्च होती है. ट्रेनिंग के दौरान यहां के वैज्ञानिक हवा में उड़ते हैं, गहराई में गोता लगाते हैं और हड्डियां जमा देने वाली ठंड में भी रहते हैं.

ग्लेशियर विज्ञानी जेप किफश्टूल बर्फ के विशेषज्ञ हैं. वह आइस कोर यानी ध्रुवों से लाई गई बर्फ के नमूनों की जांच करते हैं. बाहर कितना ही सुहाना मौसम हो, लैब में उन्हें माइनस बीस से माइनस तीस डिग्री में काम करना पड़ता है. ग्लेशियर विज्ञानी अथाह पुरानी बर्फ की जांच कर लाखों साल पहले की जलवायु का अंदाजा लगाते हैं. डॉयचे वेले से बातचीत में जेप किफश्टूल ने बताया, "हमारे पास बर्फ के जो नमूने हैं, उनमें लाखों साल पुरानी हवा छिपी हुई है. इससे हम करीब 10 लाख साल पहले की ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा माप सकते हैं."

पतली हुई बर्फ की परत

ध्रुवों की पुरानी और नई बर्फ के नमूनों की तुलना करने के बाद ही वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन के दावे किए. अब जाकर इन दावों की गंभीरता समझ में आ रही है. हिमकणों से पता चला है कि बीते दस लाख साल की तुलना में हाल के बरसों में धरती पर कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा बढ़ी है.

जलवायु विज्ञानी मार्सेल निकोलाउस समय समय पर इंस्टीट्यूट के विशेष जहाज 'पोलारश्टैर्न' और रिसर्च एयरक्राफ्ट से ध्रुवों पर जाते हैं. पोलार शिप 120 मीटर लंबा है. इसमें बर्फ तोड़ने वाले उपकरणों के अलावा 50 वैज्ञानिकों के रहने और रिसर्च की जगह है. मार्सेल निकोलाउस ने डॉयचे वेले को बताया, "इसके जरिए हम आर्कटिक और अंटार्कटिक में सात से दस हफ्ते की यात्रा पर निकलते हैं. रिसर्चरों के कई ग्रुप होते हैं."

ध्रुवों की पुरानी और नई बर्फ के नमूनों की तुलना करने के बाद ही वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन के दावे किए.तस्वीर: Hamish Pritchard/BAS

इनमें जीव, समुद्र, जलवायु और मौसम विज्ञानी होते हैं, वे मिलकर अपने अपने प्रोजेक्ट पर काम करते हैं. सबकी रिसर्च को मिलाकर एक बड़ी तस्वीर उभरती है. निकोलाउस बताते हैं, "हम लोग 1991 से अंटार्कटिक में रिसर्च कर रहे हैं और देख रहे हैं कि बर्फ की परत पतली हुई है. हमारे पुराने डाटा में यह करीब दो मीटर मोटी थी और अब यह एक मीटर से कम, करीब 90 सेंटीमीटर हो गई है."

अंटार्कटिका में स्टेशन

मौसम विज्ञानी होल्गर श्मिडहुइजेन अंटार्कटिका में एडब्ल्यूआई के तीसरे स्टेशन नॉएमायर से लौटे हैं. स्टेशन दक्षिणी ध्रुव से 200 किलोमीटर दूर है और इसमें 40 वैज्ञानिकों के लिए जगह है. वैज्ञानिक इसमें कई महीनों तक आराम से रह कर काम कर सकते हैं. खेल कूद और फिटनेस के लिए भी वहां इंतजाम है. श्मिडहुइजेन ने बीती सर्दियां वहीं बिताई हैं, "नॉएमायर स्टेशन पर हम आदर्श जलवायु मानक मापते हैं, यानी तापमान, हवा और नमी. हम हर तीन घंटे पर मौसम जांचते हैं, बादलों पर नजर रखते हैं, विजिबिलिटी देखते हैं." जलवायु परिवर्तन पूरी दुनिया में हो रहा है. श्मिडहुइजेन कहते हैं कि अगर आप ग्लोबल जलवायु परिवर्तन के बारे में कुछ कहना चाहते हैं तो आपको ऐसे कई स्टेशनों के नतीजे देखने होंगे.

एडब्ल्यूआई के मौसम विज्ञानी सालों से यह करते आ रहे हैं. उनका दावा है कि ओजोन परत का छेद अब भी नहीं भरा है. यहां के वैज्ञानिकों की रिसर्च भले ही जलवायु परिवर्तन को सीधे तौर पर न रोके, लेकिन इनकी कोशिश दुनिया को जागरूक करने में बड़ी भूमिका निभा रही है. जर्मनी का ये संस्थान अपनी अंतरराष्ट्रीय भूमिका निभा रहा है.

रिपोर्ट: ओंकार सिंह जनौटी

संपादन: ईशा भाटिया

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