1986 के बाद पहली बार देश में नई शिक्षा नीति की घोषणा की गई है. इस नीति को बनने में आधिकारिक रूप से पांच साल लग गए लेकिन इसके पीछे विचारों, शोध, सुझावों, चर्चा और बहस की बरसों की कोशिश है.
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एनडीए सरकार की महत्त्वाकांक्षी राष्ट्रीय शिक्षा नीति की व्यापक समीक्षा अभी तक विशेषज्ञ नहीं कर पाए हैं, लेकिन इसके प्रावधानों ने कई महत्वपूर्ण विषयों पर एक बार फिर देश में बहस शुरू कर दी है. बच्चों की शिक्षा की शुरुआत किस भाषा में की जानी चाहिए, परीक्षाओं को कितना महत्व देना चाहिए, उच्च शिक्षा में किस तरह के विकल्प होने चाहिए जैसे कई सवाल हैं जिन पर एक बार फिर देश में बहस शुरू हो गई है.
1986 के बाद पहली बार देश में नई शिक्षा नीति की घोषणा की गई है. इस नीति को बनने में आधिकारिक रूप से पांच साल लग गए लेकिन इसके पीछे विचार, शोध, सुझाव, चर्चा और बहस की बरसों की कोशिश है. इसे लागू करने के लिए मौजूदा शिक्षा नीति में कई मौलिक बदलाव करने पड़ेंगे.
कैसे बड़े बदलाव
नई नीति में भारत की 10 + 2 शिक्षा पद्धति को बदलकर उसकी जगह 5+3+3+4 पद्धति अपनाने की अनुशंसा की गई है. इसके तहत तीन साल से ले कर आठ साल की उम्र तक बुनियादी स्तर की पढ़ाई होगी, आठ से 11 तक प्री-प्राइमरी, 11 से 14 तक प्रेपरेटरी और 14 से 18 तक सेकेंडरी.
कम से कम पांचवी कक्षा तक की शिक्षा बच्चे की मातृभाषा या प्रांतीय भाषा में दी जाएगी, और उसके बाद दूसरी भाषाओं में पढ़ने का विकल्प दिया जाएगा. छोटी कक्षाओं में सालाना परीक्षाएं बंद कर दी जाएंगी और सिर्फ तीसरी, पांचवी और आठवीं कक्षा में इम्तिहान होंगे.
वोकेशनल शिक्षा शामिल
छठी कक्षा से ही व्यावसायिक यानी वोकेशनल शिक्षा की शुरुआत हो जाएगी और दौरान बच्चे इंटर्नशिप भी करेंगे ताकि स्कूल से निकलते निकलते वो कम से कम एक कौशल सीख ही लें. इसके अलावा विज्ञान और ह्यूमैनिटीज के बीच कोई कड़ा वर्गीकरण नहीं होगा और विद्यार्थियों को सभी तरह के विषय पढ़ने की सुविधा दी जाएगी.
स्नातक की पढ़ाई को तीन की जगह चार साल का कर दिया जाएगा, जिसमें हर स्तर पर कोर्स से निकलने का भी विकल्प होगा. जिस साल भी छात्र कोर्स से निकलेगा उसे उस स्तर के अनुसार डिग्री या डिप्लोमा दिया जाएगा. नीति के तहत मानव संसाधन मंत्रालय का नाम भी बदल दिया जाएगा. मंत्रालय का नया नाम शिक्षा मंत्रालय होगा.
क्या है शिक्षाविदों की शिकायत
शिक्षाविद शिकायत कर रहे हैं कि सरकार द्वारा नीति का सिर्फ संक्षिप्त विवरण जारी किए जाने की वजह से नीति का विस्तृत विवरण अभी तक उन्हें नहीं मिल पाया है. नीति के आधिकारिक विस्तृत दस्तावेज के अभाव में उसके कई प्रारूप सोशल मीडिया और व्हाट्सऐप पर भेजे जा रहे हैं.
इसी बीच नीति पर राजनीति भी शुरू हो चुकी है. सीपीएम जैसे दलों ने नीति का यह कह कर विरोध किया है कि इसे संसद के समक्ष नहीं रखा गया और इस पर संसद में चर्चा नहीं हुई.
शिक्षा और साक्षरता के मामले में विकसित देशों में फिनलैंड का स्थान काफी ऊंचा है. इसका कारण फिनलैंड की असाधारण शिक्षा प्रणाली को बताया जाता है. देखिए क्या हैं वे खास बातें.
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देर से शुरुआत
अंतरराष्ट्रीय स्कूलों की रैंकिंग में लगातार टॉप पर रहने वाले फिनलैंड के स्कूलों की सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली को आदर्श माना जाता है. पहला कारण बच्चों को ज्यादा लंबे समय तक बच्चे बने रहने देना है. यहां बच्चे करीब सात साल की उम्र में स्कूल जाना शुरु करते हैं जबकि भारत में 3 साल में.
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खेल खेल में पढ़ाई
बच्चों को हर घंटे के हिसाब से कम से कम 15 मिनट खेल के मैदान में बिताने ही होते हैं. ऐसा पाया गया है कि खेल के बाद बच्चों का पढ़ाई में काफी ध्यान लगता है. जिसको ध्यान में रखते हुए फिनलैंड में बच्चों को लगातार कक्षा में नहीं बैठाया जाता.
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परीक्षा का बोझ नहीं
फिनलैंड का राष्ट्रीय शिक्षा बोर्ड बताता है कि "शिक्षा का जोर परखने से अधिक सिखाने पर है." यहां हाई स्कूल में स्कूल छोड़ने के पहले एक अनिवार्य परीक्षा देनी होती है. उसके पहले की क्लासों में शिक्षक बच्चों के असाइनमेंट पर विस्तार से केवल अपना फीडबैक देते हैं, कोई ग्रेड या अंक नहीं.
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शिक्षक का सम्मान
फिनलैंड में शिक्षकों को नए नए प्रयोग करने की पूरी आजादी होती है. शिक्षक का पेशा बहुत इज्जत से देखा जाता है और इसके लिए आपको कम से कम मास्टर्स डिग्री लेना जरूरी होता है. ओईसीडी का सर्वे दिखाता है कि शिक्षक बच्चों पर होमवर्क का बोझ भी नहीं डालते. फिनलैंड के किशोर हफ्ते में औसतन 2.8 घंटे ही होमवर्क में लगाते हैं.
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हर हुनर की कीमत
फिनलैंड में 1960 के दशक में नए शिक्षा सुधार लाए गए. यह सबके लिए मुफ्त और उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा मुहैया कराने के सिद्धांत पर आधारित है. यहां हर बच्चे पर ध्यान देकर उसके किसी खास हुनर को पहचानने और उसे बढ़ावा देने पर जोर होता है.
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डिजिटल दुनिया के लिए तैयार
दुनिया में कुछ ही देशों में बच्चों को डिजिटल युग के लिए ठीक से तैयार किया जा रहा है. फिनलैंड उनमें से एक है क्योंकि 2016 तक ही यहां के सभी प्राइमरी स्कूलों में कोडिंग उनके पाठ्यक्रम का एक मुख्य विषय होगा. कोडिंग की मदद से ही कंप्यूटर सॉफ्टवेयर, ऐप और वेबसाइटें बनाई जाती हैं.
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मुफ्त पर बहुमूल्य शिक्षा
फिनलैंड में केवल स्कूल ही नहीं बल्कि कॉलेज की पढ़ाई भी मुफ्त है. यहां प्राइवेट स्कूल नहीं होते. धीमी गति से सीखने वाले बच्चों के लिए खास संस्थान हैं. सालाना करीब दो प्रतिशत बच्चे इन विशेष संस्थानों में जाते हैं.