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नए अमेरिकी राष्ट्रपति से यूरोपीय संघ की उम्मीदें

बारबरा वेजेल
२० जनवरी २०२१

जो बाइडेन के साथ एक नए राष्ट्रपति ने व्हाइट हाउस संभाला है. यूरोपीय संघ में ट्रांस-अटलांटिक संबंधों के लिए इसके मायने निकाले जा रहे हैं. इन संबंधों को ट्रंप युग में काफी झटका लगा है, अब उसके सामान्य होने की उम्मीद है.

USA Washington | Amtseinführung: Joe Biden
तस्वीर: Patrick Semansky/REUTERS

कोई संदेह नहीं है कि नए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से यूरोपीय संघ की बड़ी उम्मीदें हैं. संघ के नेता इस आशा के बीच बंटे हैं कि ट्रांस-अटलांटिक संबंध बहाल होंगे और अमेरिका के साथ संबंध सामान्य हो जाएंगे तो दूसरी ओर रास्ते में खड़ी बाधाओं का बढ़ता हुआ एहसास भी है. फ्रांस के यूरोपीय मामलों के मंत्री क्लेमों बोन का मानना है कि विभाजित अमेरिका में कोई बड़ा बदलाव देखने को नहीं मिलेगा. वे कहते हैं, "यूरोप को और अधिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए." बोन "रणनीतिक स्वायत्तता" की अवधारणा के समर्थक हैं लेकिन यह महसूस करते हैं कि सहयोग बढ़ना चाहिए. वे कहते हैं, "यूरोप को अपने हितों, अपने मूल्यों को परिभाषित करना चाहिए. निश्चित रूप से अमेरिका के खिलाफ नहीं, हमें मिलकर काम करना चाहिए." फ्रांसीसी मंत्री का मानना है कि पर्यावरण नीति, सुरक्षा और व्यापार के मामलों में संबंधों में विशेष रूप से सुधार होगा.

क्लेमों बोन फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों के करीबी सहयोगी हैं. माक्रों ने "रणनीतिक स्वायत्तता" के विचार को बढ़ावा देकर विदेश नीति में पेरिस को बर्लिन और वारसॉ से दूर कर दिया है. बोन यह नहीं सोचते कि यूरोपीय संघ को अमेरिका और नाटो के साथ अपनी साझेदारी की उपेक्षा करनी चाहिए, लेकिन उनका मानना है कि भविष्य के बारे में सोचना जरूरी है, "अमेरिका हमें और अधिक स्वायत्त होने के लिए कहता रहेगा, हमें और अधिक जिम्मेदारी लेने के लिए कहेगा, प्रतिरक्षा पर अधिक खर्च करने को कहेगा.” उन्होंने यूरोपीय संघ और चीन के विवादित निवेश समझौते का बचाव करते हुए कहा, "यह सोचना अजीब होगा कि यूरोपीय संघ के रूप में हमें समझौतों पर हस्ताक्षर करने का कोई अधिकार नहीं है." राष्ट्रीय परंपरा को ध्यान में रखते हुए फ्रांस की सरकार ट्रांस-अटलांटिक संबंधों के प्रति एक निश्चित संशय बनाए रखना चाहती है और यूरोप के लिए अधिक स्वायत्तता चाहती है.

2013 में बर्लिन में जो बाइडेन और अंगेला मैर्केलतस्वीर: Maurizio Gambarini/dpa/picture alliance

समाधान का हिस्सा

विदेश नीति परिषद की बर्लिन दफ्तर की प्रमुख याना पुग्लियरिन का कहना है कि वाशिंगटन और यूरोप को ट्रंप प्रशासन की नीतियों से फौरन किनारा कर लेना चाहिए. वे कहती हैं, "यह कठिन चार साल थे, लेकिन अब हम फिर से एक लहर पर हैं और हम नए राष्ट्रपति का खुले दिल से स्वागत करते हैं." उन्होंने कहा कि बाइडेन को एक स्पष्ट संदेश जाना चाहिए, "हम दास नहीं हैं और घड़ी की सूई वापस नहीं कर सकते हैं लेकिन नई सरकार को दिखाना चाहिए कि यूरोपीय संघ की बहुपक्षवाद में दिलचस्पी है और वह जिम्मेदारी लेना चाहता है."

याना पुग्लियरिन कहती हैं, "हमें समाधान का हिस्सा होना चाहिए और समस्या का नहीं." वे रणनीतिक स्वायत्तता के विचार का भी समर्थन करती हैं क्योंकि यह यूरोपीय लोगों को बेहतर साझेदार बनाने का मौका देता है. पुग्लियरिन की सिफारिश है कि यूरोपीय संघ को शुरू में "हल्के विषयों" पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जिसमें जल्दी कामयाबी संभव है, जैसे जलवायु परिवर्तन, ईरान के साथ बातचीत या नाटो की भूमिका जैसे मुद्दे. व्यापार नीति जैसे विषय कठिन हैं और उसके प्रति दृष्टिकोण क्रमिक होना चाहिए. जिस तरह से ईयू-चीन डील हड़बड़ी में हुई थी, वे उसकी आलोचना करती हैं.

ट्रंप और माक्रों, असहज संबंधतस्वीर: Imago-Images/M. Trammer

तिरस्कार का अंत

कार्नेगी यूरोप की सीनियर फेलो जूडी डेम्पसी के लिए बाइडेन युग की शुरुआत काफी उम्मीदों के साथ हो रही है. वे कहती हैं, "यूरोप के लिए ट्रंप के तिरस्कार का अंत हुआ है." उनका कहना है कि नए राष्ट्रपति यूरोपीय महाद्वीप को समझते हैं और जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल के साथ उनके घनिष्ठ संबंध हैं. जूडी डेम्पसी मानती हैं कि यूरोपीय संघ को सुरक्षा और रक्षा नीति के मामले में कदम बढ़ाना होगा और इससे परमाणु हथियारों को नियंत्रण में रखने पर बातचीत के नए अवसर मिल सकते हैं. उसका सुझाव है कि कनाडा से जापान तक अन्य लोकतांत्रिक देशों के साथ ट्रांस-अटलांटिक संबंधों का विस्तार किया जाना चाहिए. वे कहती हैं कि चीन, भारत और लैटिन अमेरिका के संबंध में साझा सुरक्षा, प्रतिरक्षा और व्यापार रणनीतियों पर सहमत होना संभव है.

जूडी डेम्पसी का कहना है कि ट्रंप वाला दुःस्वप्न दूर करना तभी संभव होगा जब यह समझने का असल प्रयास हो कि वैकल्पिक दक्षिणपंथ और दूसरे पॉपुलिस्ट आंदोलनों की प्रेरणा क्या थी. वे मानती हैं कि लोकतंत्रों को कमजोर करने की कोशिश करते निरंकुश नेतृत्व वाले देशों ने वित्तीय समर्थन और साइबर गतिविधियों के जरिए सरकार विरोधी आंदोलनों को हवा दी है. वे कहती हैं कि सोशल मीडिया साइटों के नियमन के तरीकों पर गौर करना महत्वपूर्ण है. जूडी डेम्पसी के अनुसार, "ट्रंप प्रशासन ने लोकतांत्रिक संस्थानों की नजाकत और उनकी ताकत को भी दिखाया है."

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